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    नया अध्यक्ष कौन? भूपेश बघेल?

    बघेल 2014 से 2019 तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस ने संगठन के स्तर पर जो एकता व मजबूती दिखाई, उसका नतीजा यह रहा कि लगातार तीन चुनाव हारने के बाद पार्टी  2018 का विधान सभा चुनाव प्रचंड बहुमत से जीत गई हालांकि वह जीत की इस लय को वह कायम नहीं रख पाई.

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    बृजमोहन के लिए अंगूर फिलहाल खट्टे

    आठ बार के विधायक, प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री व लोकसभा चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीतने वाले बृजमोहन को  72 मंत्रियों की जंबो लिस्ट में शामिल कर लिया जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

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    लोकसभा चुनाव : छत्तीसगढ़ में फिर वही कहानी

    विधान सभा चुनाव में विशाल बहुमत के साथ मिली सत्ता को गंवाने के बाद भी कांग्रेस ने स्वयं को दुरूस्त करने के लिए ठोस उपाय नहीं किए. हार से सबक नहीं लिया.परिणामस्वरूप लोकसभा चुनाव में उसकी एक सीट और कम हो गई.अब अगले पांच-छह महीनों में होने वाले स्थानीय निकायों के चुनाव, उसे पुनः उठने का मौका देंगे बशर्ते वह आम लोगों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराए.

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    छत्तीसगढ़ में नक्सल मोर्चे पर अंतिम लड़ाई, क्या बस्तर में रुक पाएगी हिंसा?

    जनवरी 2024 से अब तक छत्तीसगढ़ में 110 से अधिक नक्सली मारे गए और करीब 300 ने आत्मसमर्पण किया.

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    रायपुर लोकसभा सीट: बृजमोहन अग्रवाल सांसद तो बन जाएंगे पर अंगूर खट्टे ही रहेंगे?

    छत्तीसगढ़ की प्रदेश सरकार में मंत्री पद छोड़कर कौन व्यक्ति सांसद बनना चाहेगा ? लेकिन पार्टी अनुशासन से बंधे बृजमोहन की यह मजबूरी है. बहरहाल पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भूमिका क्या रहेगी, यह संगठन तय करेगा. संगठन का मतलब है - मोदी-शाह की जोड़ी और इस जोड़ी के तेवर कैसे हैं , यह बृजमोहन से अधिक कौन जान सकता है?

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    छत्तीसगढ़ बीजेपी के लिए 2019 की तरह ये चुनाव आसान नहीं है, जानिए कहां-कहां फंसा है पेंच?

    छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए यह चुनाव 2019 के चुनाव की तरह आसान नहीं है. कांग्रेस को एक से अधिक सीटों का लाभ मिल सकता है.कांग्रेस ने अपनी समूची ताकत दोनों सीटों को बचाने और कुछ नया हासिल करने में लगा रखी है. मोदी-शाह के धुआंधार प्रचार के बावजूद उसे उम्मीद है कि वह इस बार बेहतर प्रदर्शन करेगी. जानिए किस सीट पर क्या समीकरण बैठ रहा है?

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    मुरैना में क्या पूर्व डकैत चुनाव में असर डाल पाएंगे ?

    मध्यप्रदेश के मुरैना लोकसभा क्षेत्र में 7 मई को चुनाव है. इस सीट पर बीजेपी के शिवमंगल सिंह तोमर, कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार और बीएसपी के रमेश गर्ग के बीच तिकोना मुकाबला है. करीब एक-डेढ़ महीना पहले पूर्व डकैत रमेश सिकरवार ने मुरैना सीट से कांग्रेस का टिकट मांगा था. रमेश ने दावा किया था कि 33 साल से इस सीट पर लगातार हार रही कांग्रेस को केवल वही जीत दिला सकते हैं. मुरैना में चंबल के बीहड़ और जंगल अब पहले की तरह नहीं रहे लेकिन सामाजिक रूप से अब भी एक बड़ा दबाव समूह यहां की राजनीति को प्रभावित करता है.

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    आज भी सीख देती है रायपुर में आचार्य कृपलानी की हार

    लोकतंत्र में जनमत सर्वोपरि है. जनता ही मालिक है और वही अपने जनप्रतिनिधियों को चुनती है. लेकिन, कभी-कभी जनता का फैसला ऐसा होता है कि उस पर दिल यकीन नहीं कर पाता.अब जैसे 1967 में रायपुर लोकसभा चुनाव के नतीजे की ही बात कर ली जाय. आचार्य जेबी कृपलानी ने आदिवासी समुदाय के हक-हुकूक के लिए रायपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था.लेकिन वे हार गए. आखिर इससे क्या सीख मिलती है?

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    छोटे राज्य का बड़ा चुनाव

    छत्तीसगढ़ में चुनावी घमासान को देखते हुए सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि जो कोई जीतेगा, हार-जीत का अंतर मामूली रहेगा. अलबता यदि कांग्रेस दो से अधिक सीटें जीत पाती हैं तो यह एक उपलब्धि होगी और यदि भाजपा के सभी प्रत्याशी जीत दर्ज करते हैं तो यह विशुद्ध रूप से केवल मोदी-गारंटी की जीत होगी, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की. मोदी-शाह के छत्तीसगढ़ मिशन की.

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    कांकेर में करीबी मुकाबला, बीजेपी बचा पाएगी सीट?

    छत्तीसगढ़ का कांकेर लोकसभा क्षेत्र उत्तरी बस्तर का हिस्सा है. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है.024 में बीजेपी ने आम जनता की नाराजगी से बचने के लिए अपने सीटिंग एमपी मोहन मंडावी का टिकट काट कर नया चेहरा उतारा है. पूर्व विधायक भोजराज नाग कांकेर से बीजेपी के उम्मीदवार हैं.कांग्रेस ने उनके सामने वीरेश ठाकुर को उतारा है जो उन्हें कड़ी टक्कर दे सकते हैं.

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    बस्तर : जो जीतेगा वो सिकंदर

    छत्तीसगढ़ की बस्तर लोकसभा सीट पर क्या इस बार भी कडे़ मुकाबले की उम्मीद की जा सकती है ?  पिछले चुनाव में यह सीट कांग्रेस ने महज 38 हजार 982 वोटों से जीती थी किंतु यह जीत इसलिए भी मायने रखती थी क्योंकि 2019 के चुनाव के समय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का जलवा चरम पर था. उनकी लहर के बावजूद कांग्रेस ने बस्तर व कोरबा सीट जीतकर यह सिद्ध कर दिया था कि कोई भी लहर कितनी भी तेज गति से क्यों न चल रही हो, प्रत्येक पेड़ को जड़ से उखाड़कर बहा ले जाना संभव नहीं है.

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    मध्य प्रदेश में पहले चरण की छह सीटों पर बीजेपी का दबदबा

    MP Lok Sabha Election 2024: पहले चरण में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर चुनाव होने हैं, जहां कांग्रेस ने कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को एक बार फिर उम्मीदवार बनाया. वहीं बीजेपी 2024 में कांग्रेस की जीती हुई इस इकलौती सीट को भी छीनने को आतुर है.

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    छत्तीसगढ़ की कोरबा लोकसभा सीट पर सरोज पांडे और ज्योत्सना महंत के बीच जोरदार मुकाबले के हैं आसार

    छत्तीसगढ़ की सभी 11 लोकसभा सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ चुनाव प्रचार अभियान में जुटी भाजपा के लिए कम से कम आधा दर्जन सीटों पर कांग्रेस के चक्रव्यूह को तोड़ना आसान नहीं होगा. कांग्रेस ने सभी सीटों पर ऐसे नेताओं को टिकट दी है जिनकी जमीनी पकड़ मजबूत है तथा वे मोदी की गारंटी के नाम पर भाजपा के संकल्प को ध्वस्त कर सकते हैं. प्रदेश की राजनांदगांव लोकसभा सीट के बाद दूसरी हाई-प्रोफाइल सीट है - कोरबा. यहां सरोज पांडे और ज्योत्सना महंत की प्रतिष्ठा दांव पर हैं.

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    भूपेश बघेल की प्रतिष्ठा दांव पर

    छत्तीसगढ़ की सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा देश का ध्यान आकर्षित करने वाली सीट है राजनांदगांव लोकसभा जहां कांग्रेस ने पूर्व मुख्य मंत्री भूपेश बघेल को चुनाव मैदान में उतारा है. इस बार कांग्रेस न केवल भाजपा के सभी 11 सीटें जीतने के लक्ष्य को ध्वस्त करना चाहती है वरन इतिहास के उस अध्याय पर भी पूर्णविराम लगाना चाहती है जो वर्ष 2000 में नया छत्तीसगढ़ बनने के बाद भाजपा के नाम दर्ज है. भाजपा ने पिछले चार चुनावों में कांग्रेस को कभी एक या दो सीटों से आगे नहीं बढ़ने दिया.

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    आधी आबादी से पूरी आबादी तक का सफर

    Women in Indian Society: भारतीय समाज में हमेशा से महिलाओं को कमजोर आंका गया. लेकिन, आज के समय में महिलाओं की स्थिति काफी बेहतर हुई हैं. खुद के दम पर आज महिलाओं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने का दम रखती हैं.

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    छत्तीसगढ़: कड़े मुकाबले में भाजपा

    Lok Sabha elections 2024: इससे पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 11 में से 10, दूसरे में भी 10, तीसरे में 9 और चौथे 8 सीटें जीती थीं. हालांकि इस बार छत्तीसगढ़ में जीत हासिल करने की जिम्मेदारी साय सरकार की कंधों पर है.

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    गाजा का युद्ध हो या हिटलर का दौर... कैसे महिलाएं रही हैं सबसे ज्यादा शोषित

    Internationl Women's Day 2024: अफगानिस्तान, सीरिया, यमन, पाकिस्तान, इराक, दक्षिण सूडान में महिलाओं के हालात मध्यकाल से भी बदतर है. आंकड़ों के अनुसार, 24.5 करोड़ महिलाएं या युवतियां अपने ही साथी से हर साल शारीरिक/यौन हिंसा का शिकार बनती हैं. आखिर हर दौर में जुल्म क्यों?

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    बृजमोहन ही क्यों ?

    भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ एवं लोकप्रिय नेता  बृजमोहन अग्रवाल को राज्य की राजनीति से बाहर करते हुए  दिल्ली ले जाने का निर्णय घोषित कर दिया है. केन्द्रीय चुनाव समिति ने दो मार्च को जारी अपनी पहली सूची में  जिन 195 उम्मीदवारों के नाम जाहिर किए थे, उनमें छत्तीसगढ़ की 11 सीटें भी शामिल हैं. बृजमोहन अग्रवाल को रायपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया गया है.

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    इस रेस में कांग्रेस कहां

    वर्ष 2018 के विधान सभा चुनाव में बुरी हार के बाद भाजपा जिस तरह हौसला खो चुकी थी लगभग वैसी ही स्थिति में कांग्रेस 2023 का चुनाव हारने के बाद नज़र आ रही है. भाजपा मात्र 15 विधायकों तक सिमटने के बाद हार के सदमे से उबर नहीं पाई थी लिहाजा लगभग चार वर्षों तक निष्क्रिय बनी रही. इसकी तुलना में 2023 के चुनाव के परिणाम कांगेस के लिए अप्रत्याशित व कल्पना से परे थे. फिर भी उसकी वह पराजय ऐसी नहीं थी कि हौसला पस्त हो जाए.

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    अपनी अधूरी प्रेम कहानी को बड़े पर्दे पर उतारने में सफल रहे भंसाली

    संजय लीला भंसाली जब भी अपनी फिल्म के लिए कहानी लेते हैं तो उसमें बेहद गहराइयां होती हैं. जो कई सालों से उनके दिलों-दिमाग में बसी हुई होती है. इसके बाद वो बेहतरीन तरीके से स्टार कास्ट, भव्यता और संवादों के जरिए उसे जीवन के चरम सौंदर्य तक ले जाते हैं.

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