31 मार्च 2026... नक्सलवाद जड़ से खत्म हो जाएगा. केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह का ये ऐलान... दावा और वादा को पूरा करने के लिए यहां से शुरू हुई नक्सलवाद की उल्टी गिनती...
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद एक बड़ी समस्या है. इसी समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम कर रही हैं. दावे और वादे को पूरा करने लिए सरकारों ने पूरी ताकत झोंक दी है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल सबके जहन में इस बात का जरूर है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद कई सालों की समस्या है. बीजेपी की सरकार प्रदेश में तब (साल 2003-2018 तक) भी थी और अब भी है. पुलिस-फोर्स, हथियार तब भी थे और अब भी हैं, लेकिन तब ऐसी कौन सी कमीं थी जो इस समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए कामयाब नहीं हो पा रही थी.
बस्तर में 14 सालों की पत्रकारिता में नक्सलवाद और सरकारों के काम को मैनें करीब से देखा है. निजी अनुभव और रिसर्च में भी ये बात सामने आई है कि अब ज्वाइंट ऑपरेशन्स, समन्वय और जवानों की संख्या ने नक्सलवाद की कमर तोड़ दी है.
ज्वाइंट ऑपरेशन: जिलों और राज्यों की पुलिस, सुरक्षा बलों के साथ मिलकर ज्वाइंट ऑपरेशन चला रही है. इसी संयुक्त अभियान का नतीजा है कि नक्सलवाद कमजोर पड़ रहा है.
समन्वय : नक्सलवाद को मात देने के लिए सरकार की जो ट्रिक सबसे ज्यादा काम कर रही है वो है बस्तर में तैनात सुरक्षा बलों, जिले, पड़ोसी राज्यों की पुलिस का बॉर्डर इलाकों में सबसे बड़ा समन्वय है. ये नक्सलियों के छक्के छुड़ा रहा है.
संख्या: नक्सलियों को घेरने के लिए इस बार जवान 50-100 की संख्या में नहीं निकल रहे हैं बल्कि हर बड़े ऑपरेशन्स में 1000-1500 जवान एक साथ निकल रहे हैं. नक्सलियों को घेरकर उनका एनकाउंटर कर रहे हैं. इन बड़ी मजबूत प्लानिंग ने नक्सलियों की हालत पतली कर रखी है.
महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश की सीमा पर लांच होने वाले ऑपरेशन्स में ये राज्य भी शामिल हो रहे हैं. नक्सलियों को भागने का मौका नहीं मिल रहा है. इनके बड़े कैडर्स ढेर हो रहे हैं. नक्सलवाद का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है. नए लड़ाके नहीं मिल रहे हैं. उनके लड़ाके संगठन छोड़ रहे हैं. बड़े कैडर्स ढेर हो रहे हैं. रहने के लिए सुरक्षित ठिकाना नहीं बचा. सप्लाई चेन ध्वस्त हो रही है.
पहले ये समस्या थी
सुरक्षा बलों और स्थानीय पुलिस के बीच आपसी समन्य का सबसे बड़ा अभाव रहा है. यहां तक की जिले और पड़ोसी राज्यों की पुलिस भी समन्वय की कमीं से जूझ रही थी. बस्तर में तैनात सुरक्षा बलों के जवान अपने स्तर पर ऑपरेशन्स चलाते थे. जिले की पुलिस अपने स्तर पर नक्सलियों को घेरकर मारने का प्रयास करती थी. इन छोटे ऑपरेशन्स में नक्सली घिरते नहीं थे, बल्कि भाग जाते थे. सबसे ज्यादा नुकसान जवानों को ही झेलना पड़ता था. अफसरों के बीच अंदरुनी कलह होती थी. ये बात कई दफा हाईलेवल तक भी पहुंची, लेकिन निपटारे का प्रयास नहीं होता था. नक्सलियों के खिलाफ बिना किसी ठोस रणनीति के ऑपरेशन्स लांच होते जरूर थे लेकिन इसका खामियाजा सबसे ज्यादा फोर्स के जवानों को भुगतना पड़ता था.
साल 2023 को छत्तीसगढ़ में फिर से बीजेपी की सरकार बनी. लोकसभा चुनाव के साल 2024 को जब गृहमंत्री अमित शाह छत्तीसगढ़ पहुंचे तो ऐलान कर दिया कि प्रदेश की सबसे बड़ा समस्या नक्सलवाद को जड़ से खत्म कर देंगे. यहां से नक्सलियों की उलटी गिनती शुरू होने लगी.
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ये हैं कुछ बड़े उदाहरण
गरियाबंद और ओडिशा पुलिस ने एक करोड़ के इनामी नक्सली चलपति सहित 16 से ज्यादा नक्सलियों को ढेर किया था.
अबूझमाड़ के थुलथुली में दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बस्तर ,बीजापुर पुलिस और सुरक्षा बलों के जवानों ने 38 नक्सलियों को मार गिराया था.
बीजापुर-सुकमा, दंतेवाड़ा की पुलिस और सुरक्षा बलों के जवानों ने मिलकर दो अलग-अलग मुठभेड़ों में 50 नक्सलियों को मार गिराया है.
ऐसे कई उदाहरण हैं जो इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि ज्वाइंट ऑपरेशन्स, सुरक्षा बलों और पुलिस का मजबूत समन्वय और बड़ी संख्या में एक साथ जवानों का नक्सलियों के कोर इलाके में घुसकर उन्हें घेरना ही सफलता का कारण है.
खुद नक्सलियों ने भी माना
इस बात को खुद नक्सलियों ने भी मान लिया है. हाल में नक्सल संगठन के टॉप लीडर्स ने कैडर्स को लेटर लिख इस बात को स्वीकारा था कि सरकार ज्वाइंट ऑपरेशन चला रही है.बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों और पुलिस के जवान चारों ओर से उन्हें घेर रहे हैं.ऐसे में उनके लिए कोई भी ठिकाना सुरक्षित नहीं रहा है. खुद को कमजोर होते देख नक्सलियों ने सरकार से शांति वार्ता की पहल कर दी है. अगर नक्सल खात्मे के लिए सरकारों का रुख ऐसा ही रहा तो बस्तर से नक्सलवाद का सफाया तय है.
लेखक अंबु शर्मा छत्तीसगढ़ के बस्तर की रहने वाली हैं. उन्होंने 14 सालों तक नक्सल प्रभावित बस्तर में तमाम चुनौतियों के बीच पत्रकारिता की हैं. यहां की परिस्थितियों, समस्याओं, मुद्दों की अच्छी समझ है.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.