Indian History: प्रोफेसर अंगस मेडिसन के नाम का उल्लेख 'भारतीय ज्ञान का खजाना' में हुआ है. प्रोफेसर मेडिसन (1926 - 2010) मूलतः ब्रिटिश थे, लेकिन वह अनेक वर्षों तक नीदरलैंड के ग्रोनिंगन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रमुख रहे. दुनिया उनको जानती है, उनके अर्थशास्त्र के इतिहास के संदर्भ में किए हुए शोध के लिए. अंगस मेडिसिन ने अनेक वर्ष, अथक परिश्रम करके दुनिया का आर्थिक इतिहास तैयार किया. पूरे विश्व में मान्यता मिली है, ऐसी उनकी अनेक पुस्तके है. उनमें से 'द वर्ल्ड इकोनॉमी: ए मिलेनियल पर्स्पेक्टीव्ह' यह पुस्तक बहुत प्रसिद्ध है. इसमें उन्होंने आंकड़े देकर, किस शताब्दी में दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था में और व्यापार में कौन से देश आगे थे, और कौन से देश पीछे, इसका विस्तार से वर्णन किया है.
अर्थात ईसा पूर्व कालखंड का अध्ययन किया, तो साधारणतः दो हजार से ढाई हजार वर्ष, हम वैश्विक व्यापार में निर्विवाद रूप से सर्वोच्च स्थान पर थे. हमारा निर्यात जबरदस्त था.
हजारों वर्ष पहले हम नौकायन क्षेत्र में अत्यंत प्रगत थे. उस समय के अत्याधुनिक जहाज हम बनाते थे. हम तैयार किए हुए जहाज अन्य देशों को बेचते भी थे. हमारा समुद्र का दिशा-ज्ञान बहुत अच्छा था. लगभग सवा दो हजार वर्ष पूर्व, भारतीय नाविक जिस 'दिशा दर्शक' (मरीन कंपास) का उपयोग करते थे, वह उपलब्ध है. उसे 'मच्छ यंत्र' कहते थे. ऐसे ही दिशा की अचूकता नापने के लिए, दो बिंदुओं के बीच के कोण का मूल्य निकालना होता है. यह काम करने वाला यंत्र, वर्तमान में सेक्सटंट (Sextant) कहलाता है. हमारे नविक ऐसे यंत्र का उपयोग करते थे. इसका नाम था, 'वृत्त शंख भाग'.
कुल मिलाकर, व्यापार के लिए हमारे उद्योगपति, व्यापारी और नाविकों ने दुनिया भर में संचार किया. विश्व में अनेक स्थानों पर पहली बार हमारे व्यापारी गए हैं. प्राचीन भारत के व्यापार के संदर्भ में कई लोगों ने लिखकर रखा है. उसमें पश्चिमात्य प्रवासी प्रमुखता से है.
इजिप्ट में उस समय दो प्रमुख बंदरगाह थे. मायोस हार्मोस (Mayos Hormos) और बेरेनिके (Berenike / Berenice). इनमें से बेरेनिके का उल्लेख 'भारतीय ज्ञान का खजाना' में आया है. बेरेनिके इजिप्त का प्राचीन बंदरगाह था. टोलेमी (द्वितीय) ने अपनी मां की स्मृति में इसको बनवाया था. नब्बे के दशक में यहां उत्खनन प्रारंभ हुआ. अनेक देश और अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं मिलकर यह उत्खनन कर रहे हैं. विश्व के सभी उत्खननों में यह सबसे बड़ी परियोजना है. यहां अभी भी उत्खनन चल रहा है.
कोरोना के बाद प्रारंभ हुए उत्खनन में, मार्च 2022 में, बेरेनिके में बुद्ध की एक मूर्ति मिली. आधुनिक तकनीकी का उपयोग करते हुए उस मूर्ति की आयु निकाली गई. वह वर्ष 90 से वर्ष 140 (पहले और दूसरे सदी के मध्य) इस कालखंड की निकली. इसी स्थान पर संस्कृत में लिखा हुआ एक शिलालेख मिला है, जो तत्कालीन रोमन सम्राट 'फिलिप द अरब' (वर्ष 204 से 249. इसमे सम्राट पद का कालखंड है - वर्ष 244 से 249, अर्थात तीसरी सदी) को संबोधित करते हुए लिखा है. साथ ही यहां सातवाहन राजवंश के सिक्के मिले हैं, जो दूसरे सदी के है.
दक्षिण भारत में पुडुचेरी (पांडिचेरी) के पास एक बंदरगाह है, अरिकामेडू (Arikamedu). इसका प्राचीन नाम है पोदुके (Poduke). यहां नब्बे के दशक में उत्खनन प्रारंभ हुआ, और भारत रोम व्यापार के अनेक प्रमाण मिले. रोमन शैली में बने हुए सोने के मणी, कांच सामान, दिए और अनगिनत रोमन सिक्के मिले. आरिकामेडू भारत के दक्षिण-पूर्व दिशा में है. इसका अर्थ, यहां से भी रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार होता था.भारतीय जहाज श्रीलंका होते हुए हिंद महासागर में जाते थे, और वहां से इजिप्त की दिशा में प्रस्थान करते थे.
सन 2007 में जब यहां उत्खनन प्रारंभ हुआ तब से भारत - रोमन व्यापार के अनेक प्रमाण मिलने लगे. कुछ इतिहासकार इस जगह को प्राचीन काल का मुझिरिस शहर मानते हैं, तो कुछ इतिहासकार केरल के त्रिशूर जिले के कोंडुगल्लूर गांव को मुझिरिस मानते हैं. इस मुझिरिस का इतना महत्व क्यों है?रोमन साम्राज्य के कालखंड में, अर्थात पहली सदी में, लिखे गए 'पेरीप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी' ( एरिथ्रियन समुद्र में भ्रमण) इस पुस्तक में मुझिरिस का भारत - रोमन व्यापार में एक महत्वपूर्ण केंद्र होने का उल्लेख आया है. भारत - रोमन व्यापार के मसाला मार्ग का मुझिरिस यह एक आवश्यक बंदरगाह था.
महत्वपूर्ण व्यापारिक व्यवहार (बही खाता) लिखकर रखने के लिए इजिप्ट में पेपरस (या पपाईरस) नाम के मोटे कागज का उपयोग किया जाता था. केरल में दूसरे सदी के प्रारंभ के कुछ कागज मिले हैं, जिन्हें 'मुझिरिस पेपिरस' नाम से जाना जाता है. यह 'मुझिरिस पेपिरस' यानी अलेक्जेंड्रिया में रहने वाले एक रोमन इजिप्शियन व्यापारी के, भारत से किए गए व्यापार का लेखा जोखा है. उस व्यापारी का एक जहाज मुझिरिस से इटली आने वाला था, उसका नाम था 'हर्मापोलन'. इस जहाज में काली मिर्च और अन्य मसाले थे, जो यह व्यापारी भारत से आयात करता था.
केवल एक जहाज में इतना बेशकिमती माल होगा, तो भारत का कितना बड़ा व्यापार उस समय रोमन साम्राज्य के साथ होता होगा? अकेले इजिप्त में ही भारत के बड़े-बड़े ऐसे लगभग 120 जहाज, ठसाठस माल भर के, साल भर में जाते थे, ऐसा स्ट्राबो इस इतिहासकार ने लिखकर रखा है. आगे चलकर इन जहाजों की संख्या दोगुनी हुई.
भारत में से आने वाले माल के कर से रोमन साम्राज्य को जितनी कमाई होती थी, वह कमाई उनके सरकारी तिजोरी की, अर्थात कुल कमाई की, एक तिहाई थी..!
कुल मिलाकर, केवल रोमन साम्राज्य से भारत इतना प्रचंड व्यापार करता था. फिर अन्य देशों के साथ हो रहे व्यापार को इससे जोड़ दे, तो भारत के समृद्धि का कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है. कुछ कल्पना की जा सकती है.
(क्रमशः)
(आगामी प्रकाशित खजाने की शोधयात्रा पुस्तक के अंश)
प्रशांत पोळ, राष्ट्रीय चिन्तक, विचारक, लेखक. व्यवसाय से अभियंता (आई. टी. व टेलिकॉम). तकनिकी एवं प्रबंधन सलाहकार हैं.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.