Ambedkar Jayanti: डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी का भारत की राष्ट्रीय धारा का भरपूर अभ्यास था. उनके प्रबंध का विषय ही था, ‘भारत के राष्ट्रीय लाभांश का इतिहासात्मक और विश्लेषणात्मक अध्ययन' (The National Divident of India – A Historical and Analytical Study). अर्थात, भारत का इतिहास, उस इतिहास की विभिन्न सामाजिक धाराएं, उनमे आयी हुई विकृतियां, मुस्लिम आक्रांता, उन आक्रान्ताओंने किया हुआ विध्वंस, इन सभी विषयों पर बाबासाहब का गहरा अध्ययन था. और इन विषयों पर उन्होंने अपनी राय हमेशा ही बेबाक ढंग से रखी हैं.

Photo Credit: NDTV Marathi

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28 दिसंबर, 1940 को उनका Thought on Pakistan यह पुस्तक प्रकाशित हुआ. उस समय तक पाकिस्तान का मुद्दा गरमाया तो था, लेकिन राष्ट्रीय बहस का विषय नहीं बना था. पुस्तक प्रकाशित होने के समय दूसरा विश्वयुध्द प्रारंभ हो चुका था. इस पृष्ठभूमि पर इस पुस्तक में बाबासाहब ने इस्लाम और पकिस्तान के बारे में किसी की परवाह न करते हुए, निर्भीकता के साथ खरी खरी सुनायी हैं. उन्होंने विभाजन का समर्थन किया हैं. इस्लाम से ‘छुटकारा' पाने के लिए विभाजन कितना आवश्यक हैं, इस बात को बार बार दृढ़ता के साथ रखा हैं. मुसलमानों के साथ हिन्दुओं का सह अस्तित्व संभव ही नहीं हैं, इस बात को दमदारी के साथ प्रतिपादित किया हैं. और इसीलिए विभाजन के समय जनसंख्या के अदला-बदली की शर्त को वे अनिवार्य मानते हैं.
पाकिस्तान पर पुस्तक प्रकाशित होने के लगभग 15 वर्ष बाद लिखे एक लेख में बाबासाहब ने मुस्लिमों को ‘अभिशाप' इस शब्द से संबोधित किया हैं. महाराष्ट्र शासन द्वारा प्रकाशित उनके ‘Dr. Babasaheb Ambedkar – Writing and Speeches' इस ग्रन्थ साहित्य के पहले खंड के 146वें पृष्ठ पर इस सन्दर्भ में बड़ा स्पष्ट उल्लेख हैं. बाबासाहब लिखते हैं - ”When partition took place, I felt that God was willing to lift his curse and let India be one, great and prosperous” (जब विभाजन हुआ, तब मुझे ऐसा लगा, मानो ईश्वर ने इस देश को दिया हुआ ‘अभिशाप' वापस ले लिया हैं और अब अपने देश को एक रखने का, महान और समृध्दशाली बनने का रास्ता साफ़ हो गया हैं.)
ये आगे भी दिखाई देता हैं - उनकी मृत्यु से मात्र छह माह पहले, अर्थात २३ जून, १९५६ को दिल्ली में अखिल भारतीय बौध्दजन समिति के प्रकट सभा में बाबासाहब ने अपने यही विचार स्पष्टता से रखे हैं - “I was glad that India was seperated from Pakistan. I was the philosopher so to say, of Pakistan. I advocated Pakistan because I felt that it was only by partition that Hindus would not only be independent, but free.”
अपने पाकिस्तान पर लिखे गए पुस्तक में ऊपर कही गयी सभी बातों का विस्तृत विवरण आता हैं. चूंकि बाबासाहब वकील थे, इसलिए उन्होंने ‘पाकिस्तान' इस विषय के दोनों पक्षों का प्रतिपादन किया हैं.
पुस्तक के अगले तीन अध्याय ‘हिन्दू केस अगेंस्ट पाकिस्तान' इस शीर्षक के अंतर्गत हैं. ‘खंडित एकता', सुरक्षा की दुर्बलता' और पाकिस्तान तथा धार्मिक एकता' इन विषयों द्वारा पाकिस्तान के निर्माण के विरोध में हिन्दू समाज के तर्कों को रखा गया हैं.
आगे ‘पाकिस्तान नहीं बना तो' इस शीर्षक के अंतर्गत तीन अध्याय हैं. इसमें पाकिस्तान का विकल्प, हिन्दू और मुस्लिमों के दृष्टिकोण से दिया हैं.
अंतिम तीन अध्याय ‘पाकिस्तान के निर्माण की बेचैनी' इस शीर्षक के अंतर्गत हैं. इनमे सामाजिक मुद्दे, जातिगत संघर्ष, राष्ट्रीय अवसाद आदि विषयों की चर्चा हैं. और सबसे अंत में पूरे पुस्तक का सार, संक्षेप में दिया हैं.
यह पुस्तक अनेक अर्थों में महत्वपूर्ण हैं. यह पुस्तक किसी हिन्दुत्ववादी चिन्तक ने लिखी हुई नहीं हैं. वरन बाबासाहब जैसे अत्यंत कुशाग्र बुध्दी के व्यक्ति ने, हिन्दू - मुस्लिम मसले के सभी पहलुओं पर सारगर्भित विचार कर यह पुस्तक लिखी हैं. इसलिए यह एकपक्षीय होने का प्रश्न ही नहीं उठता. बाबासाहब ने अनेकों बार हिन्दू धर्म पर प्रखर टिप्पणी की हैं. इसलिए ऐसे हिन्दू समाज के पक्षधर न रहने वाले व्यक्ति ने, संविधान के निर्माता ने यह ग्रन्थ लिखा हैं, यह महत्वपूर्ण हैं.
बाबासाहब मुस्लिम धर्म के बारे में भी विस्तार से लिखते हैं, “मुसलमानों में समता नहीं हैं. इस धर्म में महिलाओं के साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया जाता. मुसलमानों के अलावा वें सभी को काफिर मानते हैं. और ‘मुसलमानों के देश में / समाज में काफिरों के साथ दोयम दर्जे का हीन व्यवहार होना चाहिए' यह उनके धर्म में ही लिखा हैं.” इस सन्दर्भ में बाबासाहब ने अनेक उदाहरण दिए हैं. तैमुरलंग की मिसाल देकर वे बताते हैं की उसने कैसे पाशविक अत्याचार हिन्दुओं पर किये थे.
तो फिर ऐसे मुसलमानों के साथ हिन्दुओं की एकता संभव हैं क्या..? अगर हैं, तो कैसे..? इस बारे में पुस्तक के अंत में बाबासाहब लिखते हैं, “हिन्दू – मुस्लिम एकता यह ‘तुष्टिकरण' (appeasement) या ‘समझौता' (settlement) इन दो ही रास्तों से संभव हैं. (If Hindu – Moslem unity is possible, should it be reached by appeasement or settlement..? – Chapter IV, Page 264).
इसमें उल्लेख किया गया तुष्टिकरण (appeasement) यह शब्द बाबासाहब ने मुसलमानों के सन्दर्भ में अनेकों बार प्रयोग किया हैं. ‘कांग्रेस पार्टी मुसलमानों का तुष्टिकरण करती हैं, जो देश के लिए घातक हैं', यह कहते हुए बाबासाहब लिखते हैं - Congress has failed to realize is the fact that there is a difference between appeasement and settlement and that the difference is an essential one (Chapter IV, Page 264).
अर्थात ‘कितना भी तुष्टिकरण किया जाय, आक्रांता का कितना भी अनुनय किया जाय, उनकी मांगों का कोई अंत नहीं होता...'
बाबासाहब की यह राय आगे भी कायम रही हैं. भारत स्वतंत्रता के दहलीज पर हैं, और ऐसे समय, 20 जुलाई, 1947 में प्रकाशित अपने वक्तव्य में बाबासाहब कहते हैं – “बंगाल और पंजाब का विभाजन यह केवल उन प्रान्तों के निवासियों का प्रश्न नहीं हैं. यह राष्ट्रीय प्रश्न हैं. इन प्रान्तों की सीमा रेषा तय करना यह सुरक्षा और व्यवस्थापन इन मुद्दों के आधार पर ही संभव हैं. जनसंख्या के अदला-बदली को यदी कांग्रेस और लीग मानती, तो यह समस्या खड़ी ही नहीं होती. (खंड 17, पृष्ठ 355)
बाद में बाबासाहब का झुकाव बौद्ध धर्म के पक्ष में होने पर उन्होंने ‘बौध्द और इस्लाम' संबंधों पर विस्तार से लिखा हैं. इस्लामी आक्रान्ताओं ने कितनी बर्बरता से बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतारा, बौद्ध विहारों को उध्वस्त किया, इस बारे में बाबासाहब लिखते हैं, “इस्लाम में ‘बुत शिकन' यह सम्मान से बोला जाने वाला शब्द हैं. इसका अर्थ हैं, ‘मूर्ती फोड़ने वाला'. इसमें जो ‘बुत' हैं, वह ‘बुद्ध' शब्द का अपभ्रंश (परिवर्तित रूप) हैं.” ‘बौद्ध धर्म को समाप्त करने में मुस्लिम आक्रान्ताओं की भूमिका प्रमुख हैं', ऐसा बाबासाहब ने अनेक स्थानों पर लिखा हैं.
इस्लाम और पाकिस्तान के बारे में बाबासाहब की सोच ऐसे सीधी, सरल और सपाट हैं. एकदम स्पष्ट. कही कोई संभ्रमावस्था नहीं हैं. जीवन के अलग अलग मुकाम पर भूमिका बदलनेका भी प्रयास नहीं हैं. ‘हिन्दू – मुस्लिम एक साथ नहीं रह सकते इसलिए विभाजन आवश्यक हैं' ऐसा स्पष्ट प्रतिपादन.
हम बाबासाहब की विभाजन की भूमिका से सहमत होंगे या नहीं होंगे. किन्तु उनकी दूरदृष्टि और सोच की स्पष्टता देखकर मन अचंभित रह जाता हैं..!
प्रशांत पोळ, राष्ट्रीय चिन्तक, विचारक, लेखक. व्यवसाय से अभियंता (आई. टी. व टेलिकॉम). तकनिकी एवं प्रबंधन सलाहकार हैं.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.