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UNESCO ने ग्वालियर के किले को अस्थायी सूची में किया शामिल, जानें इसकी खासियत?

Gwalior Fort: मध्य प्रदेश के ग्वालियर में मौजूद ग्वालियर किले का निर्माण 8वीं शताब्दी में किया गया था. ये किला मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूनों में से एक है. ये ग्वालियर शहर के गोपांचल नामक छोटी पहाड़ी पर स्थित है. ये किला लाल बलुए पत्थर से निर्मित है.

UNESCO ने ग्वालियर के किले को अस्थायी सूची में किया शामिल, जानें इसकी खासियत?
ग्वालियर के किले का इतिहास

संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक व सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को (UNESCO) ने मध्य प्रदेश की जिन आधा दर्जन धरोहरों को अपनी अस्थायी सूची में शामिल किया है उनमें ग्वालियर का भव्य और ऐतिहासिक दुर्ग (Gwalior Fort) भी शामिल है. महज एक वर्ष के अंतराल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्वालियर (Gwalior) को ये दूसरा गौरव मिला है. इससे पहले ग्वालियर की यूनेस्को ने म्यूजिक सिटी के रूप में घोषित कर चुका है. वहीं यूनेस्को की ओर से अस्थायी सूची में शामिल करने के बाद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव (CM Mohan Yadav) ने इस पर खुशी जाहिर की है. 

क्यों खास है ग्वालियर किला?

ग्वालियर का दुर्ग न केवल देश बल्कि दुनियाभर में सबसे खूबसूरत, भव्य और अपनी शानदार रक्षा पंक्ति के कारण शताब्दियों से लोकप्रिय रहा है. छठवीं शताब्दी के इस किले की खूबसूरती का जिक्र बाबरनामा में भी किया गया है. उसमें लिखा है, 'ग्वालियर का दुर्ग अद्भुत वास्तुकला का नमूना है. यह भारत के दुर्ग की माला का एक नायाब मोती है.'

शूरसेन ने रखी थी इसकी नींव

 ग्वालियर के किले की नींव छठवीं शताब्दी में एक क्षत्रीय राजपूत योद्धा सूरसेन या सूरज सेन ने रखी थी. कालांतर में इस पर अनेक शासकों ने कब्जा और आक्रमण किया, लेकिन इसे वर्तमान आकार देने में सबसे बड़ा योगदान तोमर राजवंश ने दिया. तोमरों ने सन 1398 में इस दुर्ग पर कब्जा कर लिया था. वहीं तोमरों के सबसे प्रसिद्ध शासक राजा मानसिंह तोमर ने इसे सांस्कृतिक और संगीत के साथ धार्मिक केंद्र बनाया. तोमर राजा स्वयं भी शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ थे. उन्होंने ध्रुपद की रचना की और सुर सम्राट तानसेन को संरक्षण दिया, जिन्हें बाद में अकबर ने अपने नव रत्नों में शामिल किया.

हिन्दू और जैन प्रतिमाओं से सुसज्जित है ग्वालियर का किला

ग्वालियर का ये शानदार किला एक विशाल पहाड़ी पर स्थित है, जिसे अपनी अभेद्य सुरक्षा व्यवस्था के लिए इतिहास में जाना जाता है. इस पर खड़े होकर न केवल शहर बल्कि आसपास के इलाके के मनोहारी खूबसूरत नजारे को भी देखा जाता है. बता दें कि पहले इसकी प्राचीर से आगरा भी दिखाई देता था. तीस मील दूर की गतिविधि यहां से नजर आ जाती थी.

ग्वालियर का किला न केवल हिन्दू बल्कि भव्य जैन  प्राचीन प्रतिमाओं से भी सुसज्जित अद्भुत वास्तु का नमूना है, बल्कि यहां अनेक महल बने है और सबकी कोई न कोई कहानी है. राजा मानसिंह द्वारा अपनी रानी मृगनयनी के लिए बनाया गया महल हो या मान मंदिर आज भी लोगो को आकर्षित करता है.

किले पर स्थित चतुर्भुज मंदिर के बारे में हुए शोध में माना गया कि दुनिया को शून्य का अंक इसी से मिला. इसके अलावा मान मंदिर, तेली की लाट, जौहर ताल जैसे अनेक स्थल है जो अपने अद्भुत वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं.

1857 की पहली क्रांति का भी साक्षी है ग्वालियर दुर्ग

ग्वालियर का ये किला 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ शुरू हुए पहले संघर्ष का साक्षी ही नहीं है बल्कि यही पर इसकी निर्णायक लड़ाई लड़ी गयी थी. 1857 में झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर पहली क्रांति का सूत्रपात किया था और वो अंग्रेजो से लड़ते हुए ग्वालियर पहुंची थी. दरअसल, ग्वालियर किले पर कब्जा कर अंग्रेजी सत्ता को सीधी चुनौती दे दी थी. हालांकि बाद में अंग्रेजी सेना ने किले को चारों तरफ से घेरकर हमला किया जिसके चलते रानी को अपने शरीर का बलिदान करना पड़ा. इसके अलावा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी इस दुर्ग का ऐतिहासिक संबंध हैं.

ये भी पढ़े: भोजेश्वर महादेव मंदिर से रॉक कला स्थल तक... MP के 6 धरोहरों को यूनेस्को ने अस्थायी सूची में किया शामिल

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