Gwalior High Court News: अब तक कार्यशालाओं में व्याख्यान और पीपीटी के जरिये तथ्यों की जानकारी दी जाती थी, लेकिन मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के ग्वालियर (Gwalior) जिले में एक अनूठी कार्यशाला हुई. इसमें मंच से फिल्म के सीन दिखाए गए और फिर उसकी बारीकियों पर चर्चा की गई. यह कार्यशाला कोई सामान्य नहीं थी, बल्कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (MP High Court) की ग्वालियर खंडपीठ (Gwalior Bench) में आयोजित की गई थी. इसमें चर्चित बॉलीवुड फिल्म शोले (Sholay) के सीन दिखाकर न्याय की दृश्यम विधि की जानकारी दी गई. कानूनी प्रक्रिया को फिल्म के दृष्य के माध्यम से समझने और अलग-अलग दृष्टिकोण निर्मित करने की दृश्यम विधि पर उच्च न्यायालय खंडपीठ परिसर में प्रशासनिक न्यायाधिपति न्यायमूर्ति आनंद पाठक के मार्गदर्शन में शनिवार को कार्यशाला आयोजित की गई.
शोले फिल्म के इस सीन की मदद से वकीलों को समझाया गया कानून
हाईकोर्ट में आयोजित कार्यशाला में 12 मिनट की शोले फिल्म की क्लिप दिखाई गई. इसमें डाकुओं का ट्रेन का पीछा करना व लूटना और फिल्म के पात्रों का डाकुओं के साथ लड़ना दिखाया गया था. घटनाओं को कानूनी नजरिये से देखने की विधि के बारे में न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि एक ही घटना है, लेकिन उसे पुलिस के अधिकारी एक अलग दृष्टिकोण से देखते है, अभियुक्त का अधिवक्ता एक अलग दृष्टिकोण से, अभियोजन अलग दृष्टिकोण से और न्यायिक अधिकारी अलग दृष्टिकोण से देखते हैं. इसी विधि को दृश्यम नाम दिया गया है.
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दृष्यम के बारे में दी गई विस्तृत जानकारी
न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने बताया कि यह दृष्यम का पहला चरण है. आगामी चरणों में अधिवक्ता, पुलिस अधिकारी, न्यायिक अधिकारी तथा अभियोजन अधिकारियों के अलग-अलग समूह बनाकर प्रशिक्षण दिलाया जायेगा. जिसमें कानूनी प्रक्रिया पर दृश्यम विधि अनुसार ओपन डिस्कशन आयोजित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि कानून के लिहाज से फिल्में देखने एवं किताबें पढ़ने से हमारे दृष्टिकोण को नये आयाम मिलते हैं. उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार हितेन्द्र द्विवेदी ने बताया कि दृश्यम विधि ज्ञान के आधार पर अनुभव का बोधगम्य है. यह एक सीखने की प्रक्रिया है और अर्जित किये गये ज्ञान से अनुभव का साक्षात्कार है. साथ ही उन्होंने न्यायमूर्ति पाठक द्वारा अपने न्याय निर्णयों के माध्यम से सामाजिक उत्थान में अभिनव पहल करने का उल्लेख भी किया.
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