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Raksha bandhan: भाई की कलाई के बाद पर्यावरण को सहेजेंगी ये राखियां, जानिए इनकी खासियत

Gwalior News: मध्य प्रदेश के ग्वालियर की मोना ने ऐसी राखियां तैयार की हैं,जो भाइयों की कलाइयां सजाने के बाद पर्यावरण को भी सजाएंगी. आइए जानते हैं खासियत के बारे में.

Raksha bandhan: भाई की कलाई के बाद पर्यावरण को सहेजेंगी ये राखियां, जानिए इनकी खासियत

Raksha Bandhan Special : भाई और बहन के प्रेम और अटूट रिश्ते का त्योहार रक्षाबंधन आज मनाया जा रहा है.इस त्योहार का मुख्य आकर्षण राखियां ही होती हैं. हर बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और बदले में भाई से उपहार और रक्षा का वचन लेती हैं. रक्षा सूत्र से शुरू हुई राखी की परंपरा अब आकर्षक और डिजायनर राखियों तक पहुंच गई. लेकिन कलाई में बंधने के बाद यह राखियां फेंक दी जाती हैं. इससे पर्यावरण के लिए भी खतरा पैदा होता है. ग्वालियर की  क्रियेटर मोना शर्मा ने इसका रास्ता निकाला है. वे फल और सब्जी के बीज से ऐसी राखियां बनाती हैं. जो फेंकने के बाद भी प्रदूषण तो नहीं फैलाती बल्कि फसल उगाती हैं . 

ऐसे आया विचार 

ग्वालियर की रहने वाली मोना शर्मा क्रिएटिव काम करती है. कुछ साल पहले उन्होंने महसूस किया कि रक्षाबन्धन पर करोड़ों बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं. यह सब प्लास्टिक और रबर से बनी होती हैं. रक्षाबन्धन के बाद इन्हें बेकार मानकर फेंक दिया जाता है.

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इससे पैसे भी बर्बाद हो जाते हैं. लेकिन इससे भी ज्यादा ये कि इसका प्लास्टिक कचरा पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाता है इसलिए मोना ने कुछ ऐसा करने का सोचा कि यह राखियां जहां भी फेंकीं जाएं वहां बागवानी शुरू हो जाए.

इसलिए उन्होंने बीज राखी बनाना शुरू किया. अब उनकी इस बीज राखी के पर्यावरण प्रेमी दीवाने हैं, क्योंकि राखी से उनके घर में लौकी, तुरई , कद्दू, करेला और की सब्जियों का पौधे हैं. 

मोना बताती है कि वे राखियों  में सब्जियों के उच्च कोटि के बीजों का उपयोग करती हैं. उनकी राखियां फैंसी लुक में होती हैं. साथ ही उन पर ऊपर लिखा भी रहता है कि उसमें किस-किस के बीज हैं ?  उनकी राखियो में करेला और लौकी, तुरई, , कद्दू ,कुमहेड़ा भिंडी आदि सब्जियों के साथ फ्लॉवर्स के भी बीज इस्तेमाल होते है.

इन्हें अच्छी तरह से डेकोरेट करके बनाया जाता है और रक्षाबंधन के बाद इन्हें किसी गमले या क्यारी में फेंका जाएगा तो वहां उस सब्जी के पेड़ उग आते हैं. जो पूरे सीजन भर घर को सब्जियां और फूल देते हैं.

 इस तरह से इससे लोगों को दो तरह से फायदा होता है. इससे पर्यावरण को होने वाला नुकसान नहीं होता है. बल्कि पेड़ उगने से पर्यावरण को फायदा ही होता है. साथ ही राखी के पैसे सब्जी उगने के साथ ही वसूल हो जाते हैं.

जितनी डिमांड होती है उतनी तैयार नहीं

मोना का कहना है कि वे पांच छह साल से यह बीज राखियां बना रहीं हैं.  उनका मकसद धन कमाना नहीं बल्कि पर्यावरण को  बचाना है. वे लोगों को ऐसी राखी बनाना सिखाती भी हैं ताकि वे खुद इन्हें तैयार कर सकें. मोना कहती हैं कि उनके पास इनकी जितनी डिमांड होती है उतनी वे तैयार भी नहीं कर पातीं हैं.

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