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This Article is From Sep 23, 2024

गुमनाम हुई गोंडी बोली को मिला सहारा ! MP की रिटायर्ड टीचर यूं दे रही नया जीवन

मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले की रहने वाली एक शिक्षिका ने कमाल की पहल शुरू की है. इस महिला टीचर ने आदिवासी समाज से जुड़ी एक अनोखी भाषा को बचाने के लिए मुफ्त में शिक्षा प्रदान करने का फैसला किया है. काफी समय से ये महिला टीचर कई सारे लोगों को इस भाषा का ज्ञान देने का काम कर रही हैं.

गुमनाम हुई गोंडी बोली को मिला सहारा ! MP की रिटायर्ड टीचर यूं दे रही नया जीवन
Madhya Pradesh Aaj ki Taaza Khabar 

MP Today News in Hindi : मध्य प्रदेश के कई जिलों में गोंडी भाषा बोली जाती है. लेकिन समय बीतने के साथ इस भाषा का अस्तित्व खत्म होने के कगार पर है.... लेकिन प्रदेश के बालाघाट की एक रिटायर्ड शिक्षिका ने इस भाषा को बचाने और सिखाने का फैसला किया है. इस भाषा का इतिहास देश की पुरानी सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है. गोंडी भाषा में कई लोकसाहित्य जैसे विवाह-गीत और कहावतें हैं. बालाघाट में रहने वाली चम्मी मेरावी नाम की शिक्षिका ने इस भाषा के प्रचार-प्रसार का जिम्मा उठाया है.

कहां की हैं ये टीचर ?

यह शिक्षिका बालाघाट जिले के आदिवासी इलाके मलाजखंड में रहती हैं. अपनी शिक्षिका की नौकरी से रिटायर हो होकर चम्मी ने गांव में रहकर गोंडी भाषा की शिक्षा प्रदान करने का फैसला किया. उन्होंने अप्रैल 2024 से गोंडी भाषा की मुफ्त कक्षाएं शुरू की जो अब तक सफलतापूर्वक चल रही हैं.

भाषा के बारे में जानिए

चम्मी मेरावी का कहना है कि नई पीढ़ी गोंडी भाषा से दूर होती जा रही है, और वे इस भाषा को भूलने लगे हैं. उन्होंने देखा कि कई घरों में गोंडी भाषा का इस्तेमाल नहीं हो रहा है, खासकर नई पीढ़ी तो इस भाषा को बोलती ही नहीं है. इससे आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर खतरे में पड़ रही है. इस चुनौती को देखते हुए चम्मी ने गोंडी भाषा सिखाने का फैसला लिया.

मुफ्त में दे रही ज्ञान

शुरुआत में गोंडी सीखने के लिए दो-तीन महिलाएं ही आईं, लेकिन धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ने लगी. आज उनकी कक्षा में सुहाना नगर, भीमजोरी, बंजारीटोला और रेहंगी जैसे गांवों से महिलाएं और बच्चे बड़ी संख्या में आ रहे हैं. चम्मी उन्हें न केवल गोंडी भाषा सिखाती हैं, बल्कि पढ़ाई से जुड़ी जरूरी कॉपी-किताब व कलम आदि भी फ्री में मुहैया कराती हैं.

कैसे पढ़ाती हैं ये टीचर ?

उनकी कक्षाओं का ढांचा भी सरल और प्रभावी है. चम्मी मेरावी कक्षा में बोर्ड पर पहले हिंदी शब्द लिखती हैं और फिर उनके सामने गोंडी भाषा के शब्द. इससे बच्चों और महिलाओं को दोनों भाषाओं में अंतर समझने और सीखने में आसानी होती है. चम्मी का यह प्रयास न केवल महिलाओं और बच्चों को गोंडी भाषा सिखा रहा है, बल्कि उन्हें अपनी संस्कृति और विरासत से जोड़ने का भी काम कर रहा है.

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कई लोग हुए जागरुक

बालाघाट जिले का बैहर विधानसभा क्षेत्र पूरा आदिवासी बहुल क्षेत्र है, लेकिन नई पीढ़ी में गोंडी भाषा का इस्तेमाल घटता जा रहा है. चम्मी मेरावी इसी चिंता को दूर करने के लिए लगातार काम कर रही हैं. उनके इस प्रयास ने समाज के कई लोगों को जागरुक किया है और गोंडी भाषा सीखने के प्रति रुचि बढ़ाई है.

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