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जब घर-घर जा रहा था बारूद तब क्या कर रहा था प्रशासन? हरदा की उपजाऊ मिट्टी में होती रही विस्फोटकों की खेती

MP Harda Factory Fire News: हरदा हादसे की आग भले ही ठंडी पड़ रही हो लेकिन एक बड़ा व ज्वलंत सवाल मौत के आंकड़ों पर है. हरदा हादसे में मृतकों का आधिकारिक आंकड़ा 12 है, 217 घायल और 4 लापता बताए जा रहे हैं, लेकिन मलबे के नीचे क्या है?

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जब घर-घर जा रहा था बारूद तब क्या कर रहा था प्रशासन? हरदा की उपजाऊ मिट्टी में होती रही विस्फोटकों की खेती

Harda factory Blast: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 150 किलोमीटर दूर हरदा शहर के बाहरी इलाके बैरागढ़ में स्थित पटाखा कारखाने में मंगलवार को विस्फोट और भयानक आग लगने की घटना (Harda Fireworks Factory Blasts) में मौत का आंकड़ा बढ़कर 12 हो गया है. जबकि 200 से अधिक लोगों के घायल होने की खबर है. इस घटना के बाद जो बातें सामने निकलकर आयी हैं, उनको देख और सुनकर ऐसा लगता है कि मानो हरदा की उपजाऊ मिट्टी में विस्फोटकों की जो खेती हो रही थी, उसको रोकने के लिये कई बार प्रशासन ने ही पहल की, लेकिन सिस्टम (प्रशासन) ने ही सियासी रसूख की वजह से जांच के बावजूद कार्रवाई से इंकार कर दिया. आइए जानते हैं NDTV की इस रिपोर्ट में कैसे सरकारी नौकरी करने वाले ने आरोपी से वफादारी निभायी?

4 महीने पहले भी मिला था ख़तरे का अलर्ट

चार महीने पहले ही एसडीएम हरदा (SDM Harda) ने फैक्ट्री का निरीक्षण किया था और उनकी रिपोर्ट के मुताबिक फैक्ट्री में विस्फोटक अधिनियम, 2008 के नियम 13(1) के तहत निर्धारित पर्याप्त पानी के टैंक नहीं थे और अधिनियम की धारा 11(4) के तहत निर्धारित सुरक्षा नियमों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रमाणित फोरमैन भी नहीं था.

एसडीएम ने नर्मदापुरम कमिश्नर (Narmadapuram Commissioner) से कहा था कि फैक्ट्री को सील कर दिया जाए. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई.

साल भर पहले भी फैक्ट्री सील की सिफारिश को कमिश्नर ने नहीं माना

सितंबर 2022 में भी तत्कालीन कलेक्टर ऋषि गर्ग (Collector Rishi Garg) ने एसडीएम श्रुति अग्रवाल की रिपोर्ट के बाद विस्फोटक अधिनियम के तहत फैक्ट्री को सील करने और लाइसेंस रद्द करने की सिफारिश की थी. हालांकि, उनकी सिफारिश को तत्कालीन संभागीय आयुक्त माल सिंह ने 14 अक्टूबर, 2022 को पलट दिया था.

संभागीय आयुक्त पवन शर्मा का इस बारे में कहना है कि, “फैक्ट्री संचालक के पास 4 लाइसेंस थे, जिनमें से दो लाइसेंस 1 महीने के लिए निलंबित कर दिए गए थे. यहां तक कि 15 KG के L2 लाइसेंस भी 1 महीने के लिए निलंबित कर दिए गए, जिस ज़मीन पर फ़ैक्टरी चल रही थी, उसमें से आधी ज़मीन कृषि योग्य थी और आधी ज़मीन व्यवसाय के लिए दी गई थी.

घर-घर में बारूद भेजकर बनते थे पटाखे, हैरत में पड़े सीएम

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री (Chief Minister of Madhya Pradesh) डॉ मोहन यादव (CM Mohan Yadav) ने गुरुवार को विधानसभा (MP Assembly) में चर्चा के दौरान कहा इस बात करते हुए कहा कि मैं तो यह सुनकर दंग रह गया. मैंने यह पूछा कि यहां आखिर इतनी बड़ी शिवा काशी जैसी फैक्ट्री बनी कैसे? तो उन्होंने बताया साहब, बड़ी बात तो यह है कि अब तो एक-दो साल से थोड़ी सख्ती हो गई, नहीं तो फैक्ट्री में आकर नहीं बल्कि वह घर-घर जाकर बम बनाने के लिये बारूद बांटते थे और घर से पटाखे बनवाकर मंगवाते थे.

कारखाने के पास नहीं बनने थे प्रधानमंत्री आवास -  CM मोहन यादव 

वहां जो प्रधानमंत्री आवास (PM Awas) हैं, वह हम में से किसी को भी नहीं देना चाहिये था. चूंकि यह बात सही है कि जब फैक्ट्री बनी तब तो वह एकांत में थी, लेकिन बाद में हमारे द्वारा ही जाने-अनजाने में बस्ती बसा दी गई. बस्ती बसाने में कौन-कौन दोषी है? यह तो जांच में आएगा, लेकन ऐसी चीज में  यह ध्यान रखें कि गरीब को भी अगर किसी को आवास देना है तो उससे बचना चाहिये. आवास इतनी दूरी पर नहीं होने चाहिये.

नौकरी सरकारी, आरोपी से वफादारी

हैरान करने वाली एक बात और भी है. सरकार ने औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के सहायक निदेशक नवीन कुमार बरवा को फिलहाल निलंबित कर दिया है. लेकिन 2015 में फैक्ट्री इंस्पेक्टर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान जब वे हरदा में पदस्थ थे, तो उन्होंने 5 जुलाई और 8 जुलाई 2015 को "अग्रवाल फायरवर्क्स" का निरीक्षण किया था.

नवीन कुमार बरवा ने अपनी जांच में पाया था कि फैक्ट्री बिना लाइसेंस और सुरक्षा उपायों के चल रही थी. अग्निशामक यंत्र के उल्लंघन के लिए उन्होंने फैक्ट्री मालिकों के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी थी. मालिक राजेश अग्रवाल पर मामला दर्ज किया गया था, हालांकि बरवा समन और वारंट के बावजूद अदालत से अनुपस्थित रहे, जिससे मामला रफा-दफा हो गया था और अग्रवाल को बरी कर दिया गया था. सरकार ने इसे घोर कदाचार और सिविल सेवाओं (आचरण नियमों) का उल्लंघन माना है और अब 12 लोगों की मौत के बाद बरवा पर कार्रवाई हुई.

बड़ा सवाल यह है कि मलबे के नीचे क्या है? कहां हैं गुमशुदा?

हरदा हादसे की आग भले ही ठंडी पड़ रही हो लेकिन एक बड़ा व ज्वलंत सवाल मौत के आंकड़ों पर है. हरदा हादसे में मृतकों का आधिकारिक आंकड़ा 12 है, 217 घायल और 4 लापता बताए जा रहे हैं, लेकिन मलबे के नीचे क्या है? फैक्ट्री मलबे में तब्दील हो गई, आनन-फानन में ज़मीन को समतल कर दिया गया, जबकि कई प्रवासी श्रमिक खरगोन, देवास जैसे जिलों और यहां तक कि बिहार जैसे राज्य से भी हरदा में काम रहे थे. दरअसल पटाखा फैक्ट्री में 1000 पटाखे में बारूद भरने पर 230 रुपये की मजदूरी मिलती थी, इसलिए एक कुशल श्रमिक प्रतिदिन 1000 रुपये कमा लेता था. स्थानीय लोगों ने बताया कि फैक्ट्री में कई बच्चे भी काम करते थे.

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यह भी पढ़ें : जीतू पटवारी ने कहा- बीते 9 सालों में 12 ऐसी घटनाएं, 163 से ज्यादा मौतें, हर बार जांच, लेकिन रोक क्यों नहीं?

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