Gwalior Lok Sabha Election 2024: देश में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) की दो चरणों की वोटिंग हो चुकी है. जीत को लेकर कांग्रेस (Congress) हो या भारतीय जनता पार्टी (BJP) दोनों ही पार्टियां अब चुनावी मोड (Election Mode) में आ चुकी है. ग्वालियर संसदीय क्षेत्र (Gwalior Lok Sabha Seat) में भी अब दोनों ही दल अपनी सियासी बिसात बिछाने की तैयारी में जुट गए हैं. अगर पार्टियों के हिसाब से ग्वालियर सीट (Gwalior Seat) का आकलन करें तो यहां के लोगों ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों को बराबर का वजन दिया है, लेकिन अगर इससे इतर विश्लेषण करें तो इस सीट पर सिंधिया राज परिवार (Scindia Family) का दबदबा साफ नजर आता है. इस सीट पर सांसद चाहे कांग्रेस से जीता हो या बीजेपी से लेकिन जीता वही जिस पर सिंधिया परिवार का टैग लगा रहा हो.
पहले देखिए ग्वालियर का सियासी इतिहास
आज तक सिंधिया परिवार का कोई सदस्य नहीं हारा
जब देश आजाद हुआ तो सिंधिया परिवार का हाथ पर्दे के पीछे से हिन्दू महासभा के सिर पर था. तब की महारानी विजयाराजे सिंधिया को कांग्रेस में भले ही शामिल कर लिया था, लेकिन तत्कालीन महाराज और जीवाजी राव सिंधिया हिन्दू महासभा के समर्थक थे. यही वजह है कि 1952 का पहला चुनाव यहां से हिंदू महासभा ने जीता. वीजी पांडे और फिर नारायण भास्कर खरे यहां से सांसद चुने गए. ग्वालियर सीट से अब तक राजमाता विजयाराजे सिंधिया जनसंघ, माधवराव सिंधिया पांच बार कांग्रेस और फिर राजमाता की बेटी यशोधरा राजे सिंधिया दो बार भाजपा से लड़ीं. इनमें से सभी ने हर बार जीत हासिल की, परिणामों ने बताया कि इस सीट पर सिंधिया परिवार का जादू चलता है.
यह रहा ग्वालियर सीट का इतिहास
स्वतंत्रता के बाद गणराज्य बनने के बाद ग्वालियर लोकसभा सीट बनाई गई. पहले आम चुनाव में यहां हिन्दू महासभा के वीजी पांडे सांसद चुने गए, बाद में किसी वजह से नारायण भास्कर उसी कार्यकाल में रिप्लेस किये गए. इसके बाद दौर आया कांग्रेस का, सन 1957 में जब चुनाव हुए तो यह सीट आरक्षित हो गई. उस समय कांग्रेस से सूरज प्रसाद जो कि महल करीबी माने जाते थे, उन्हें जनता द्वारा चुना गया. इसके बाद सन 1962 में राजमाता विजियाराजे सिंधिया कांग्रेस में रहकर खुद ही मैदान में उतर आईं. उन्होंने एकतरफा चुनाव भी जीता.
पूर्व PM तक को हरा दिया
ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में सबसे चर्चित और चौंकाने वाला चुनाव हुआ था 1984 में, तब बीजेपी के दिग्गज नेता जो बाद में प्रधानमंत्री भी बने अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी ने ग्वालियर सीट से लड़ाना तय किया. ग्वालियर अटल जी की जन्मभूमि भी थी और यहां से वे एक बार सांसद रह भी चुके थे, सो अटल जी निश्चिंत थे, लेकिन राजीव गांधी ने एक रणनीति के तहत नामांकन भरने की आखरी तारीख को आखिरी क्षण में गुना से सांसद माधव राव सिंधिया का ग्वालियर क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में नामांकन करके सबको चौंका दिया. अटल जी को ग्वालियर में सिंधिया परिवार के जादू का अहसास था, लिहाजा उन्होंने अंतिम क्षणों में बहुत कोशिश की कि किसी अन्य सीट से भी नामांकन कर दें लेकिन उतना समय ही नहीं मिल सका. चुनाव हुआ और सिंधिया को एकतरफा जीत हासिल मिली.
कांग्रेस से अलग हो निर्दलीय भी जीत गए सिंधिया
एक और रोचक चुनाव हुआ 1996 में हुआ. तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के समय हवाला मामला उछला. तब माधव राव सिंधिया उनके मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री थी. हवाला मामले के छींटे उन पर भी डालने की कोशिश हुई. राव ने सिंधिया से अपनी जगह परिवार के किसी अन्य सदस्य को चुनाव लड़ाने को कहा, लेकिन सिंधिया ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर कांग्रेस छोड़ने का निर्णय ले लिया. वे अपने अपने एक मित्र की अनाम पार्टी मध्यप्रदेश विकास कांग्रेस से मैदान में उतर गए, वस्तुतः वे निर्दलीय ही थे. वे उगता सूरज चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में उतरे. कांग्रेस ने उनके मुकाबले अपने बड़े नेता शशि भूषण वाजपेयी को दिल्ली से चुनाव लड़ने ग्वालियर भेजा. इस चुनाव में ग्वालियर संसदीय क्षेत्र की जनता सिंधिया के साथ खड़ी नजर आई. उन्हें बड़ी जीत मिली और कांग्रेस प्रत्याशी जमानत भी नहीं बचा सके.
इस बार बीजेपी ने OBC पर दांव लगाया
ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस बीते पांच चुनावों से ओबीसी प्रत्याशी उतारती रही है. इसमें एक बार जीत मिली. बीते चार चुनावों में से तीन में कांग्रेस जीत भले ही नहीं सकी, लेकिन उसने कड़ी टक्कर दी. यही वजह है कि अब तक सवर्णों को उतारने वाली BJP ने इस बार अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए पहली बार एक ओबीसी कैंडिडेट भारत सिंह को मैदान में उतारा है. भारत सिंह कुशवाह जाति से आते हैं, वे दो बार विधायक और शिवराज सरकार में मंत्री रहे, लेकिन 2023 में विधानसभा चुनाव हार गए. इसके बावजूद ओबीसी वोटों के कारण अब लोकसभा चुनाव के मैदान में उतार दिया है.
लेकिन कम हो रहा है सिंधिया परिवार का दबदबा
धीरे-धीरे सिंधिया परिवार की अंचल पर पकड़ कम होती जा रही है. इसकी शुरुआत हुई 1998 के लोकसभा चुनाव से. कभी ग्वालियर में अटल बिहारी वाजपेयी को लाखों मतों से हराने वाले माधव राव इस चुनाव में भाजपा के एक नवोदित प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया से कड़ी टक्कर में फंस गए थे. तब सिंधिया जीते तो लेकिन महज साढ़े छब्बीस हजार के अंतर से. इसके बाद फिर कभी माधव राव ग्वालियर सीट से चुनाव नहीं लड़े. इसके बाद 2007 और 2009 में उनकी बहन और ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ यशोधरा राजे ग्वालियर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने आईं, लेकिन दोनों ही बार मामूली अंतर से चुनाव जीत सकीं.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राकेश अचल कहते हैं कि स्वतंत्रता पूर्व से तत्कालीन महाराज जीवाजी राव सिंधिया हिन्दू महासभा को सपोर्ट करते थे तो अंचल में उसका दबदबा था. बाद में राजमाता विजयाराजे सिंधिया जनसंघ में गईं तो सियासत पर उसका कब्जा हो गया. फिर 1977 में उनके बेटे माधव राव कांग्रेस के साथ चले गए तो दोनों दलों में सिंधिया परिवार का दबदबा हो गया.
अचल के अनुसार आंकड़े बताते हैं कि ग्वालियर में भी महल का करिश्मा कम हो रहा है. माधव राव ने 1998 का अपना आखिरी चुनाव महज साढ़े छब्बीस हजार से जीता था तो यह सीट छोड़ गए थे. इसके बाद BJP से उतरी यशोधरा राजे भी जीत का अंतर 35 हजार से ऊपर नहीं ले जा पाईं.
यह भी पढ़ें : छत्तीसगढ़ की बेटी ने रचा इतिहास! NEET की असफलता से Army में लेफ्टिनेंट डॉक्टर बनने तक, ऐसी है जोया की कहानी
यह भी पढ़ें : कम वोटिंग से MP के इन मंत्रियों की बढ़ी टेंशन, जानिए BJP हाईकमान ने क्या कहा? ऐसे हैं इनके आंकड़े
यह भी पढ़ें : शांतिपूर्ण वोटिंग के लिए ग्वालियर में अपराधियों पर बड़ा एक्शन, 8 जिला बदर, 37 रोजाना लगाएंगे हाजिरी