Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के बुरहानपुर जिले (Burhanpur) में केले के रेशे से ईको फ्रेंडली राखियां तैयारी की जा रही हैं. मप्र राज्य अजीविका मिशन महिला स्व सहायता समूहों की महिलाओं को केले के रेशे से राखियां तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसमें न केवल महिलाओं को केले के रेशे से राखियां बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है बल्कि उन्हें राखियां बनाने के ऑर्डर भी दिलाए जा रहे हैं.
पर्यावरण को भी मिलेगा काफी फायदा
बुरहानपुर जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित फतेहपुर गांव में महिलाएं ईको फ्रेंडली राखियां बना रही हैं. इन राखियों को बनाने में केले के तने और पर्यावरण के अनुकूल दूसरी वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है. मार्केट में भी इन राखियों की अच्छी खासी मांग है. यहां पर अब तक 7 समूहों की 150 महिलाओं ने करीब 5 हजार राखियां बनाई हैं. इससे न केवल महिलाओं को रोजगार मिला है, बल्कि उन्हें अच्छी खासी आमदनी भी हो रही हैं. इन महिलाओं ने दस हजार राखियां बनाने का लक्ष्य रखा है. इन राखियों की सबसे खास बात यह है कि ये बच्चों के लिए बेहतर है, इससे पर्यावरण को फायदा मिलेगा, साथ ही केमिकल युक्त राखियों से भी निजात मिलेगी.
संस्था आरसेटी ने दिया महिलाओं को प्रशिक्षण
संस्था आरसेटी ने महिलाओं को केले के रेशे से राखी बनाने का प्रशिक्षण दिया था. जिसके बाद अब महिलाएं भी खुद राखी बनाकर बेच रही हैं. इस काम से उनको रोजगार भी मिल रहा है. जिले के आसपास के गांव के साथ महाराष्ट्र में भी केले के रेशे से बनने वाली राखी की डिमांड जोरों पर है. केले के रेशे से बनी राखी की रक्षाबंधन पर डिमांड देखी जा रही है. महिलाएं केले के रेशे से राखियों का विक्रय भी कर रही हैं. जिसको अन्य महिलाएं भी अपने भाइयों की कलाई पर बांधने के लिए खरीद रही हैं.
वेस्टेज का हो रहा है काफी उपयोग
मप्र में सबसे अधिक केले की फसल बुरहानपुर में ही होती है. यहां 20 हजार हेक्टयर से अधिक रकबे में केले की फसल लगाई जाती है. अब तक किसान केला बेचकर अपने खेतों में केले के वेस्टेज को अपने खर्च से हटवाते थे लेकिन जब से बुरहानपुर जिले को एक जिला एक उत्पाद के तहत केले को शामिल किया गया है तब से केले के वेस्टेज से विभिन्न वस्तुएं तैयार की जा रही हैं. इससे वेस्ट मटेरियल को उपयोग भी होता जा रहा है साथ ही महिला स्व सहायता समूहों के जरिए जिले की महिलाओं को आमदनी भी हो रही है. जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं.
केले के वेस्टेज से बन रही हैं कई वस्तुएं
बता दें कि किसान केले के तने को वेस्टेज मानकर अक्सर खेतों में मजदूर लगाकर फेंकवा देते हैं या सूखने पर जला देते हैं. लेकिन अब इस वेस्टेज से महिलाओं के कदम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि अब इन तनों के इस्तेमाल से बेहद आकर्षक कलाकृतियों व रोजमर्रा के जीवन में उपयोगी घरेलू वस्तुएं बनाई जा रही हैं. महिलाएं प्रशिक्षण लेकर केले के तने से झूला, टोकरी, चटाई, पैन स्टैंड, टेबल मैट, इको फ्रेंडली राखियों, फर्टिलाइजर सहित अनगिनत सैंकड़ों ईको फ्रेंडली वस्तुएं बना रही हैं.
राजधानी में भी है इन राखियों की खास डिमांड
इनकी खासियत यह है कि ईको फ्रेंडली होने की वजह से स्थानीय स्तर से लेकर राजधानी तक इसकी खासी डिमांड है. आज जिले की महिलाएं आत्मनिर्भर बनी हैं, उन्हें अच्छी खासी आमदनी भी हो रही है. इस आमदनी से महिलाएं अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ा-लिखा रही हैं. साथ ही परिवार का बेहतर भरण पोषण कर रही हैं.
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