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सरकारी जमीन के लिए कितनों का बहेगा खून ? मुरैना से ऐसे हटाया जाएगा अवैध कब्ज़ा

Morena District MP News : मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के मुरैना (Morena) जिले में सरकारी जमीनों पर कब्जा को लेकर दो पक्ष आमने-सामने आने से लगातार आपराधिक घटनाएं बढ़ती जा रही हैं.

सरकारी जमीन के लिए कितनों का बहेगा खून ? मुरैना से ऐसे हटाया जाएगा अवैध कब्ज़ा
सांकेतिक फोटो

MP News in Hindi : मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के मुरैना (Morena) जिले में सरकारी जमीनों पर कब्जा को लेकर दो पक्ष आमने-सामने आने से लगातार आपराधिक घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. जिले में छोटे-छोटे विवाद कोर्ट तक पहुंच रहे हैं. बीते एक साल के दौरान कुछ सैकड़ा वर्गफुट जमीन को लेकर एक ही परिवार के बीच हुए विवाद में 10 लोगों की मौत हो गई. इन घटनाओं में इस्तेमाल किए गए हथियार लाइसेंसी बताए जा रहे हैं. बढ़ते जमीनी विवादों के चलते कोर्ट में भी राजस्व तथा आपराधिक मामलों की संख्या बढ़ रही है. इसके लिए सरकारी वकील पहली नज़र में प्रशासन के राजस्व विभाग और पटवारी को दोषी बता रहे हैं. इसे लेकर पुलिस भी सामाजिक समरसता की पहल करने की योजना बना रही है.

पिछले ही साल हुई 10 लोगों की मौतें

सरकारी जमीन पर कब्जे को लेकर शहर व ग्रामीण इलाकों में मारामारी बहुत तेज है. बीते एक साल के दौरान दो घटनाओं ने जिले को बदनामी के ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया. जिले के सिंहोनिया इलाके के लेपा गांव में सरकारी स्कूल की जमीन पर गोबर डालने को लेकर एक ही परिवार के दो पक्ष आमने-सामने हो गए. लगभग 10 सालों के दौरान दोनों पक्ष के 10 लोग मौत के मुंह में समा गए.

100 फुट की जमीन के पीछे खूनी खेल

गांव में बीते साल हुई घटना का वीडियो देश-प्रदेश के जिन करोड़ों लोगों ने देखा वह सभी सिहर उठे. क्योंकि मात्र 100 फुट जमीन पर गोबर डालने को लेकर एक ही परिवार के 7 लोगों को गोलियों से भून दिया गया था. दोनों परिवार बर्बादी की कगार पर पहुंच गए . जबकि इन दोनों परिवारों के पास एक सैंकड़ा से ज़्यादा की जमीन है और वे काफी जमीनों के मालिक है.

40 बीघा जमीन मालिकों को भी लालच

इसी तरह हाल ही में अम्बाह के गीलापुरा गांव में एक ही परिवार के दो पक्ष मात्र 11 हजार फुट सरकारी बंजर जमीन पर कब्जा करने को आतुर थे. इसका परिणाम तीन लोगों की मौत के रूप में सामने आ गया. एक पक्ष पर 35 बीघा तथा दूसरे पक्ष पर 40 बीघा निजी कृषि जमीन है. इसके बावजूद मात्र 11 हजार फुट के लिए 3 लोगों की जान गंवा दी. इसके साथ ही आजादी से लेकर आज तक सरकारी जमीन पर कब्जे को लेकर हुए मौत के कई मामले तात्कालीन समय में सामने आए थे.

न साबित हुए बाहुबली न मिली जमीन

जमीनों पर कब्जा कर अपने आपको क्षेत्र का बाहुबली साबित करने के फेर में अपने ही लोगों की जान गंवा दी या फिर जान ले ली, यानी कि दोनों स्थितियों में मौत अपने ही व्यक्ति की हुई है. खास बात यह है कि इन घटनाओं में लाइसेंसी हथियारों का इस्तेमाल किया गया है. मुरैना जिले में लगभग 27 हजार से ज़्यादा लाइसेंसी हथियार हैं जबकि वीर सैनिकों के लाइसेंसी हथियारों की गिनती की जाए तब यह संख्या 33 हजार के लगभग हो जाती है.

पुलिस की तरफ से उठाए जा रहे कदम

सरकारी जमीनों पर अधिकार के लिए हो रहे संघर्ष को रोकने के लिए पुलिस की तरफ से कदम उठाए जा रहे हैं. इसके लिए पुलिस गांव के छोटे विवाद को गांव की चौपाल पर ही निराकरण करने की पहल करना चाहती है. यह पहल कब शुरू होगी और इसके परिणाम कब आएंगे यह तो भविष्य के गर्त में है, लेकिन आज भी सरकारी जमीनों पर कब्जे को लेकर विवाद हो रहे हैं.

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गांव के साथ-साथ शहरी इलाकों में भी यह मानसिकता जोर पकड़े हुए है. इससे शासन की कई योजनाओं की गति धीमी हो जाती है. हालांकि पुलिस को चंबलांचल के जिलों में इस पहल को तत्काल प्रभाव से लागू करने का सुझाव समाजसेवी भी दे रहे हैं. इन घटनाओं से अंचल की छवि धूमिल होना माना जा रहा है.

बढ़ रहे सरकारी जमीन पर कब्ज़े

जमीनी विवादों का प्रभाव आम आदमी के साथ-साथ राजस्व व पुलिस विभाग के अलावा कोर्ट पर भी दिखाई देता है. सरकारी जमीनों पर कब्जों को लेकर विवाद के मामले कोर्ट में निरंतर बढ़ रहे हैं. इनमें राजस्व के साथ-साथ आपराधिक मामलों की संख्या ज़्यादा है. क्योंकि जमीनी विवाद को लेकर राजस्व के मामले के साथ आपराधिक घटनाएं ही होती हैं.

क्या प्रदेश के पटवारी है ज़िम्मेदार ?

कोर्ट में सरकारी वकील आमतौर पर इसके लिए प्रशासन के राजस्व विभाग के पटवारी को पहेली नज़र में दोषी मानते हैं. वहीं, सरकारी भूमि की सुरक्षा व संरक्षा का दायित्व भी पटवारी का ही होता है. इसलिए इसकी निगरानी करने की जिम्मेदारी पटवारी को पूर्ण ईमानदारी के साथ निर्वहन करने का सुझाव देते हैं. गांव और शहर में सरकारी भूमि की निगरानी पूर्ण ईमानदारी से की जाए तब जमीनी कब्जे के विवाद थम सकते हैं.

कब्जा हटाना बड़ा मुश्किल का काम

अतिक्रमणकारियों का खौफ और सांठ-गांठ इतनी ज़्यादा है कि शासन की तरफ से जनहित की योजनाओं के लिए सरकारी जमीन का इस्तेमाल करना अपने आप में बड़ा मुश्किल काम है. अतिक्रमणकारियों से सरकारी भूमि छुड़ाने के लिए राजस्व, पुलिस और प्रशासन के साथ-साथ कोर्ट की शरण लेनी पड़ती है.

कोर्ट में चल रहे अवैध कब्जे के मामले

हाल ही में एक मामला सामने आया जिसमें सरकारी जमीन पर मुख्यमंत्री संजीवनी क्लीनिक निर्मित कराने के लिए अतिक्रमणकारियों को हटाने में लंबा समय लगा था. संजीवनी क्लीनिक के भवन के अलावा बाकी जमीन अभी भी अतिक्रमणकारियों की चपेट में है. यह मामला कोर्ट में लंबित है. इससे साफ है कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने में गांव के साथ-साथ शहर के लोग भी पीछे नहीं हैं.

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