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35 साल की बैगा आदिवासी महिला 10वीं बार बनी मां, संघर्ष की कहानी आपको दंग कर देगी

बालाघाट में बैगा आदिवासी समुदाय की एक महिला जुगती बाई ने 10 वें बच्चे को जन्म दिया है. डॉक्टरों की सूझबूझ की वजह से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ्य हैं. आप ये जानकर थोड़ा चौंक जाएंगे कि महिला की उम्र महज 35 साल है और उसके पहली बेटी की उम्र 22 साल है. जब महिला डिलीवरी के लिए आईं तो हालत बेहद नाजुक थी

35 साल की बैगा आदिवासी महिला 10वीं बार बनी मां, संघर्ष की कहानी आपको दंग कर देगी

Baiga Tribe news: बालाघाट में बैगा आदिवासी समुदाय की एक महिला जुगती बाई ने 10 वें बच्चे को जन्म दिया है. डॉक्टरों की सूझबूझ की वजह से मां और बच्चा दोनों स्वस्थ्य हैं. आप ये जानकर थोड़ा चौंक जाएंगे कि महिला की उम्र महज 35 साल है और उसके पहली बेटी की उम्र 22 साल है. 10 वें बच्चे की डिलीवरी के लिए  जब वो अस्पताल में आई थी तब बच्चे का हाथ बाहर निकला हुआ था जो काफी खतरनाक स्थिति थी.  परिस्थिति ऐसी बन गई थी कि महिला की बच्चेदानी निकालकर ही ऑपरेशन संभव था. इस परिस्थिति में डॉ. अर्चना लिल्हारे और उनकी टीम ने सीजेरियन ऑपरेशन करके सुरक्षित डिलीवरी कराई. अच्छी बात ये है कि बच्चेदानी निकालने की जरूरत भी नहीं पड़ी. महिला की जब डिलीवरी हुई तो उसके साथ केवल उसकी 9 साल की बेटी ही थी.सिविल सर्जन डॉ.निलय जैन ने बताया कि वे जिला चिकित्सालय में 30 सालों से काम कर रहे हैं लेकिन अब तक किसी महिला के दसवें प्रसव का मामला उनके संज्ञान में नहीं आया है. ये काफी दुर्लभ मामला है. 

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दरअसल बैगा आदिवासी महिला जुगती बाई मोहगांव नगरपालिका के वार्ड क्रमांक-1 के करू मोहगांव निवासी हैं.  जब उसे प्रसव पीड़ा हुई तो इलाके की आशा कार्यकर्ता रेखा कटरे उसे बिरसा स्वास्थ्य केन्द्र लाई. वहां डॉक्टरों ने उसकी स्थिति गंभीर बताई क्योंकि गर्भ से बच्चे का हाथ बाहर निकल रहा था. इसके बाद उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया.  सीजेरियन से महिला के 10 वें बच्चे की डिलीवरी कराने वाली डॉन अर्चना ने बताया कि ये डिलीवरी कराना काफी मुश्किल था. क्योंकि महिला के पास प्रसव संबंधित कोई सोनोग्राफी या जानकारी नहीं थी. उसका पति भी उसके साथ नहीं था. जिसके बाद ऑपरेशन के लिए सीएचएमओ से कंसर्न लेना पड़ा.डॉ अर्चना ने बताया कि फिलहाल महिला और बच्चा दोनों स्वस्थ्य हैं. उन्होंने बताया कि चूंकि महिला लुप्त होती जाति बैगा समुदाय से है लिहाजा हमने उसकी नसबंदी नहीं की. 

7 बेटे और 3 बेटियों को जन्म दे चुकी हैं 

आशा कार्यकर्ता रेखा कटरे के मुताबिक जुगती बाई का पति अकलु सिंह मरावी काम करने के लिए बाहर गया हुआ है. उसके साथ उसके दो बच्चे भी गए हैं. रेखा के मुताबिक 35 वर्षीय जुगती बाई ने सबसे पहले 13 साल की उम्र में एक बेटी को जन्म दिया. जो वर्तमान में 22 साल की है और उसका भी विवाह हो गया है. जिसके बाद एक बेटा 13 साल, 09 साल, बेटी 08 साल, बेटा 06 साल, बेटा 03 साल और एक दिन का जीवित बच्चा है. जुगती बाई का दूसरे,सातवें एवं आठवें बेटे की प्रसव के बाद दो से तीन महीने में मौत हो गई है. 

बेहद गरीब है परिवार

रेखा कटरे के मुताबिक परिवार की हालत बेहद खराब है. अस्पताल से छुट्टी के बाद महिला के लिए रहने के कोई ठौर ठिकाना भी नहीं है. अभी छह बच्चों को पड़ोसियों के यहां रखकर आए हैं. अस्पताल से छुट्टी के बाद महिला के लिए रहने के कोई ठौर ठिकाना भी नहीं है, अभी 06 बच्चों को पड़ोस वाले के यहां रखकर आए है. जानकारी में पता चला कि महिला के पास शासन का किसी भी प्रकार का कोई ऐसा प्रामाणिक दस्तावेज नहीं है. जिससे उस परिवार को योजना का लाभ मिल सके.फिलहाल सीजेरियन ऑपरेशन के बाद महिला को विशेष देखरेख में रखा गया है. 

ये एक सामाजिक बुराई है: दिनेश 

आदिवासियों के हित में काम करने वाले आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष दिनेश धुर्वे का कहना है कि मेरी जानकारी अनुसार यह हमारे समाज का पहला मामला है. हालांकि यह एक सामाजिक कुरीती है जिसको लेकर हम काम कर रहे हैं. बावजूद इसके सरकार की फेमिली प्लानिंग डिपार्टमेंट को भी इस विषय में अधिक काम करने की आवश्यकता है. यदि संरक्षित जनजाति है तो उन्हें बढ़ाया और संरक्षित किया जाना जरूरी है. उनके समाज में जागरूकता की कमी है और सरकार उनके लिए विशेष सुविधाएं भी नहीं देती. कुल मिलाकर गरीबी-अज्ञानता और सरकारी दिशा-निर्देशों के बीच ये पूरी घटना ढेर सारे सवाल खड़ी करती है. यहां ये भी सही है कि बैगा समुदाय में जागरूकता की बेहद कमी है. सरकार ने नियम तो बना दिए हैं कि इस समुदाय की नसबंदी नहीं हो सकती लेकिन उसी सरकार वैकल्पिक इंतजाम नहीं किए.

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