
Shahdol's 'Cashew scandal: 12 किलो ड्राई फ्रूट वो भी सिर्फ एक घंटे में! जी हां- यही वजह है कि मध्यप्रदेश के शहडोल जिले का भदवाही गांव चर्चा में है—क्योंकि यहां अफसरों ने ऐसा 'जल संरक्षण' किया कि काजू-बादाम भी बह गए. लेकिन असली कहानी काजू की प्लेट में नहीं, बिल की पंक्तियों में छुपी है.जिन दुकानों से घी,फल,नमकीन और ड्राई फ्रूट्स खरीदे गए— उन दुकानों में काजू नहीं ईंट-सीमेंट बिकता है, दूसरे में कभी बिल-बुक बना ही नहीं ... NDTV ने गांव जाकर उस "सरकारी स्वाद" की तह तक जाने की कोशिश की—और सामने आई एक ऐसी हकीकत, जिसे देखकर न भूख लगती है, न भरोसा रहता है.
दावा जितना चौंकाता है, असलियत उतनी ही कड़वी है
दरअसल सबकुछ तब शुरू हुआ जब सोशल मीडिया पर वायरल हुई एक सरकारी बिल की कॉपी में दावा किया गया कि जल संरक्षण अभियान के तहत गांव में आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम में अधिकारियों ने महज़ एक घंटे में 12 किलो ड्राई फ्रूट्स खा लिए. ये दावा जितना चौंकाने वाला था, असलियत उतनी ही कड़वी.

इस दुकान से 5 kg काजू खरीदने की बात अपने बिल में अफसरों ने कही थी लेकिन दुकानदार बताते हैं कि उन्होंने कभी 1 kg से ज्यादा काजू रखा ही नहीं.
NDTV की टीम ने इस वायरल खबर की तह तक जाने के लिए भदवाही और उससे जुड़े गांवों की ज़मीन पर जाकर जांच की. 25 मई, 2025 को 'जल गंगा संवर्धन अभियान' के तहत ये आयोजन किया गया था. कार्यक्रम में ज़िले के कलेक्टर,जनपद CEO,SDM समेत 20 से ज़्यादा अधिकारी शामिल हुए थे. कागज़ों पर दावा है कि महज़ एक घंटे की ‘खातिरदारी' में ग्राम पंचायत ने 12 किलो ड्राई फ्रूट्स, 30 किलो नमकीन, 9 किलो फल, 6 लीटर दूध और 5 किलो शक्कर जैसे आइटम्स पर ₹24,270 खर्च कर डाले.
5 किलो जहां से खरीदा वहां तो 1 किलो भी काजू कभी नहीं रहता !
NDTV जब भर्री गांव में उस दुकान पर पहुंचा जहां से 5 किलो काजू, 5 किलो बादाम और नमकीन की खरीदी दर्शाई गई थी, तो वहां का नज़ारा बिलकुल उल्टा था. दुकान के मालिक एकराम गुप्ता जो बिल में लिखे नाम गोविंद गुप्ता के पिता हैं उन्होंने कहा, "इतना सामान तो मेरे पास आता ही नहीं, मैं तो बिल भी सादे कागज़ पर बनाता हूं.उन्होंने खाली बिल लिया था, बाद में क्या किया, मुझे नहीं मालूम." उनकी दुकान पर ना तो कोई जीएसटी नंबर था,ना बिल बुक और ना ही किलोभर काजू.

अफसरों ने दावा किया कि यहां से आटा, घी, केला, अनार और अंगूर आदि खरीदा लेकिन ये दुकान NDTV की जांच में सीमेंट-सरिए की सप्लाई करती है.
जहां से घी-फल की सप्लाई हुई वो सीमेंट का ठेकादार निकला !
एक और दुकानदार — लल्लू केवट — जिनके नाम से घी और फल की सप्लाई दिखाई गई, दरअसल रेत, गिट्टी और सीमेंट का ठेकेदार निकला. उनकी पत्नी रोशनी ने NDTV को बताया, "हम तो सिर्फ बिल्डिंग मटेरियल बेचते हैं.फल-घी कभी नहीं बेचा." भदवाही गांव में जब NDTV टीम पहुंची और ग्रामीणों से बात की, तो असलियत सामने आई.गांववालों के मुताबिक अफसरों को खिचड़ी और सेवई परोसी गई थी, काजू-बादाम की दो प्लेटें थीं, जिन्हें शायद ही किसी ने छुआ. ग्रामीण मंगलदीन यादव ने कहा, "हमने तो काजू कभी देखा ही नहीं, ना किशमिश.खिचड़ी और दाल थी, वही खाया।" दूसरी तरफ उपसरपंच के पति रामस्वरूप जैसवाल बोले, "समोसा, जलेबी कुछ नहीं मिला. जो भी था, वो साहब लोग खा गए. हमने बोरी बंधान में काम किया, हमें तो पैसा भी नहीं मिला. "

जो बोरियां लगाईं वो पहली बारिश में ही बह गई
बोरी बंधान यानी पारंपरिक जल संरक्षण के नाम पर गांव के झूंझा नाले में रेत की बोरियां लगाई गई थीं. लेकिन, बारिश आते ही सब बह गया. ग्रामीण विमल सिंह कहते हैं, “जिंदा नाला है, कुछ नहीं रुका।” NDTV ने इस मामले में ज़िला पंचायत की एडिशनल CEO मुद्रिका सिंह से बात की. उन्होंने स्वीकार किया, "हां, हमने चौपाल और बोरी बंधान कार्यक्रम किया था.वहां खान-पान की व्यवस्था थी.काजू-किशमिश का बिल कैसे जुड़ गया, ये जांच का विषय है." भाजपा के वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने NDTV से बातचीत में कहा, "मुझे इस मामले की जानकारी नहीं है।" उधर भदवाही के गांववाले अब व्यंग्य में कहते हैं कि उनके यहां बच्चों का नाम ‘काजू' और ‘किशमिश' रख देना चाहिए, क्योंकि ये दो नाम सिर्फ सरकारी फाइलों में दिखे हैं, थाली में कभी नहीं. दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार कहती है “जल बचाओ”, अधिकारी कहते हैं “बिल बचाओ”, और गांव वाले कहते हैं – “हमें बचाओ”. NDTV की इस ग्राउंड रिपोर्ट से ये साफ हो गया है कि ‘काजू क्रांति' असल में भ्रष्ट व्यवस्था की मीठी चाय में घुली हुई कड़वाहट है – जिसमें 6 लीटर दूध और 5 किलो शक्कर की चाय तो बनी, लेकिन गांववालों को सिर्फ खिचड़ी ही नसीब हुई.
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