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फूलों की खेती करके लाखों का मुनाफा... इतना पैसा तो 'बैंक ऑफ अमेरिका' की नौकरी में भी नहीं मिला

Flower Farming in Chhattisgarh: कई लोगों का सपना होता है कि उन्हें बड़े स्कूल में शिक्षा और देश के बड़े शहरों में या विदेश में नौकरी करने का मौका मिले. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका जैसे बड़े देश में नौकरी वो भी सालाना 24 लाख की तनख्वाह और खासी सुविधाएं मिलने के बाद भी बिलासपुर के इंजीनियर ने नौकरी छोड़कर फूलों की खेती को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया.

फूलों की खेती करके लाखों का मुनाफा... इतना पैसा तो 'बैंक ऑफ अमेरिका' की नौकरी में भी नहीं मिला

Flower cultivation in Bilaspur: अक्सर युवा नौकरी की तलाश में दूसरे शहरों या दूसरे देश की ओर जाते हैं ताकि  उन्हें अच्छे पैकेज मिल सके, लेकिन छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक युवा किसान अमेरिका की नौकरी छोड़कर फूल की खेती कर रहे हैं, जिसे लोग फायदे का सौदा नहीं मानते. इतना ही नहीं किसान 'बैंक ऑफ अमेरिका' की नौकरी से महीने में लाखों का कमाई करता था. हालांकि अब युवा इंजीनियर शुभम दीक्षित फूल की खेती से तीन गुना मुनाफा कमा रहे हैं.

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बिलासपुर के युवा किसान ने फूल की खेती में लगाया गजब का दिमाग

बिलासपुर के पास तखतपुर क्षेत्र का ग्राम बिनौरी के रहने वाले शुभम दीक्षित इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. वहीं शुभम को बैंक ऑफ अमेरिका में सालाना 24 लाख रुपये का पैकेज मिलता था, लेकिन युवा किसान ने अमेरिका की नौकरी छोड़कर खेती को अपना करियर बनाने का फैसला किया. जिसके बाद शुभम ने रजनीगंधा, जरबेरा, सेवंती और ग्लेडियस की खेती शुरू की. बता दें कि शुभम बैंक ऑफ अमेरिका में नौकरी करने से पहले मुंबई के जेपी मॉर्गन जैसी कंपनियों में भी काम कर चुके हैं.

शुभम ने 5 एकड़ की जमीन पर 70 हजार रजनीगंधा के पौधे लगाए, जो हर महीने 80 हजार स्टिक का उत्पादन करते हैं. इसके अलावा पॉलीहाउस में 26 हजार जरबेरा के पौधे उगाए हैं, जो हर दिन 500 स्टिक का उत्पादन करते हैं.

बाजार का किया गहन अध्ययन

हालांकि शुभम ने खेती शुरू करने से पहले बाजार का गहन अध्ययन किया और पाया कि देश के बड़े हिस्से में फूलों की आपूर्ति कोलकाता और बेंगलुरु जैसे शहरों पर निर्भर है. वहीं दूसरे शहरों पर निर्भर होने के चलते फूलों की गुणवत्ता पर भी इसके असर पड़ता है. इसके साथ ही फूलो की कीमत भी बढ़ जाती थी.

केले की पौधे से शुरू की खेती

शुभम दीक्षित ने आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर फूलों की खेती शुरू की. दरअसल, शुभम साल 2020 में कोरोना  महामारी के दौरान अपने घर बिलासपुर लौटे और वर्क फ्रॉम होम के साथ उन्होंने खेती में गहन अध्ययन किया. उन्होंने शुरुआत में केले की खेती की, लेकिन पहली फसल में उन्हें काफी नुकसान हुआ. इसके बाद उन्होंने फूलों की खेती का विचार किया, जिसके बाद उन्होंने रजनीगंधा और जरबेरा जैसे फूलों की रोपाई की.

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फूलों से हर महीने 3.2 लाख की कमाई

अब शुभम ने 5 एकड़ जमीन पर 70,000 रजनीगंधा के पौधे लगाए. जिससे हर महीने 400 स्टिक निकलते हैं, जिन्हें 5-6 रुपये प्रति स्टिक के हिसाब से बेचा जा रहा है. इन पौधे से तीन साल तक फूल निकलते हैं. बता दें कि शुभम हर महीने 80,000 फूलों की स्टिक बेचकर लगभग 3.2 लाख रुपये कमा रहे हैं. लागत और अन्य खर्च निकालने के बाद उनकी सालाना मुनाफा 26.88 लाख से लेकर 30 लाख रुपये तक है. हालांकि शुभम दीक्षित को इस खेती से मकसद केवल पैसे कमाना नहीं बल्कि खेतों में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से हो रहे प्रदूषण और उपजाऊ की कमी को रोकना है.

जरबेरा की खेती से 12 लाख की हो रही कमाई

जरबेरा की खेती के लिए शुभम दीक्षित ने 60 लाख रुपये खर्च कर एक पॉलीहाउस बनाया. इसमें उन्होंने 26 हजार जरबेरा के पौधे लगाए. यहां से रोजाना 500 स्टिक निकल रही हैं, जिनकी कीमत 5-10 रुपये प्रति स्टिक है. इस तरह सालाना जरबेरा की खेती से उन्हें 10-12 लाख रुपये की आय हो रही है.

फूल की खेती में इतने रुपये की आई लागत

बता दें कि शुभम को फूल की खेती में कुल 60 लाख रुपये की लागत आई. हालांकि इसके लिए सरकार ने दीक्षित को 50 फीसदी सब्सिडी दी. वहीं बाकीकी राशि बैंक लोन से जुटाई. वे अपनी सफलता का श्रेय आधुनिक तकनीक और बाजार की गहरी समझ को देते हैं.

शुभम अब तखतपुर रोड पर स्थित अपने परिवार की 14 एकड़ जमीन में से 5 एकड़ पर फूलों की खेती कर रहे हैं. उन्होंने एक एकड़ में पॉलीहाउस बनाकर 26,000 जरबेरा के पौधे लगाए हैं. इसके अलावा ढाई एकड़ में रजनीगंधा, एक एकड़ में ग्लेडियस और आधे एकड़ में सेवंती की खेती की है.

सलाना 26 लाख का मुनाफा 

शुभम दीक्षित ने बताया कि टिश्यू रोपण और पॉलीहाउस की मदद से उन्होंने उत्पादन को बढ़ावा दिया. ईएमआई और अन्य खर्चों को निकालने के बाद भी हर साल लगभग 26 लाख मुनाफा हो रहा है. युवा किसान ने बताया कि प्लास्टिक के फूल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, जबकि प्राकृतिक फूल पर्यावरण के अनुकूल हैं.

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उनके प्रयासों ने न केवल स्थानीय बाजार को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि किसानों को यह दिखाया है कि खेती में आधुनिक तकनीकों के उपयोग से उच्च आय अर्जित की जा सकती है. शुभम की कहानी आज खेती के क्षेत्र में एक नया मिसाल बन गई है.

पर्यावरण के प्रति जागरूकता

दरअसल, प्लास्टिक के फूल पर्यावरण के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं. उनकी मैन्युफैक्चरिंग और डिस्पोजल से पर्यावरण में प्लास्टिक का स्तर बढ़ रहा है. वहीं प्राकृतिक फूलों की खेती पर्यावरण के अनुकूल है. यह न केवल ताजी हवा और मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखती है, बल्कि स्थानीय बाजारों को आत्मनिर्भर भी बनाती है.

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स्थानीय किसानों के लिए प्रेरणा बने शुभम दीक्षित

शुभम की कहानी स्थानीय किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है. उन्होंने साबित किया है कि सही तकनीक, कड़ी मेहनत और बाजार की समझ के साथ खेती में भी उच्च आय अर्जित की जा सकती है. फूलों की खेती का यह मॉडल न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है.

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