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1 जुलाई 1992 ! जब पुलिस ने मजदूरों पर दागी थी गोलियां... भिलाई गोलीकांड के ज़ख्म हुए ताज़ा

Bhilai Tragedy : 1 जुलाई का दिन भिलाई का वो काला दिन है जिसे आज भी भिलाईवासी भूल नहीं पाते हैं. सालों पहले इस दिन घटी एक घटना ने ना सिर्फ भिलाई को बल्कि पूरे देश को झंकझोर कर रख दिया था.

1 जुलाई 1992 ! जब पुलिस ने मजदूरों पर दागी थी गोलियां... भिलाई गोलीकांड के ज़ख्म हुए ताज़ा
1 जुलाई 1992 का मंजर! जब पुलिस की अंधाधुंध फायरिंग में हुई थी 16 मौतें

Rail Roko Andolan 1992 : 1 जुलाई का दिन भिलाई का वो काला दिन है जिसे आज भी भिलाईवासी भूल नहीं पाते हैं. सालों पहले इस दिन घटी एक घटना ने ना सिर्फ भिलाई को बल्कि पूरे देश को झंकझोर कर रख दिया था. हम बात कर रहे हैं एक जुलाई साल 1992 में हुए मजदूर आंदोलन की... बात उस समय की है जब उस समय दुर्ग और भिलाई एक साथ जुड़े हुए थे. घटना के बारे में बताया जाता है कि आंदोलन करने वाले मजदूरों पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थी जिससे16 मजदूरों की मौत हो गई थी.

मजदूरों को दी गई श्रदांजलि

इसी कड़ी में आज गोलीकांड की 32 वीं बरसी पर मृत श्रमिकों के परिजन इकट्ठा हुए और एक बार फिर उन्हें श्रद्धांजलि देने पॉवर हाउस रेलवे स्टेशन में जुटे. परिजनों ने आंसुओं का सैलाब के बीच मर चुके अपनों को याद किया और न्याय की गुहार लगाई.

क्या हुआ था 1 जुलाई 1992 ?

दरअसल, इस मंजर को दुर्ग ज़िले के लोग कभी नहीं भूल पाएंगे. इस दिन सन 1992 को भिलाई पावर हाउस के रेलवे स्टेशन पर कई सारे मजदूर इकट्ठा हुए थे. अपंनी मांगों को पूरा करने के लिए मजदूर आक्रोशित होकर प्लेटफार्म नंबर एक पर बैठ गए थे. बताया जाता है कि तब इस भीड़ को काबू करना बेहद मुश्किल हो गया था.

गोलीकांड में मरे 16 मजदूर

प्रशासन ने भीड़ को खदेड़ने के लिए गोली चलाने का आदेश दे दिया था. इस गोलीकांड में 16 मजदूर और 2 पुलिस जवान मारे गए थे. जिसके चलते आज आज भी वेदी बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है. बता दें कि नौ महीने तक नारेबाजी, धरना, प्रदर्शन, ज्ञापन, भूख हड़ताल के बाद भी जब शासन- प्रशासन ने मजूदरों की नहीं सुनी तब सरकार का ध्यान खींचने 1 जुलाई 1992 रेल रोको जैसे आंदोलन करने का फैसला किया.

मजदूर नेता को भी मारी गई गोली

यही नहीं, तब छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी की महज 48 साल की उम्र में हत्या कर दी गई थी. बताया जाता है कि 28 सितंबर 1991 को छत्तीसगढ़ के मशहूर मजदूर नेता को दुर्ग में उनके आवास पर तड़के चार बजे खिड़की से निशाना बनाकर गोली मारी गई थी.

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आज भी नहीं भूल पाए परिजन

इस घटना के बारे में चश्मदीद कहते हैं कि तब पुलिस ने पावर हाउस के मजदूरों पर धाधुंध गोलियां बरसाई थी. फायरिंग की इस घटना में सैकड़ों लोग घायल हुए थे. तब मौके पर भगदड़ जैसे हालात पैदा हो गए थे. हर तरफ दहशत का माहौल पसर गया था. गोलियों की गूंज से आज भी मृतकों के परिजनों का दिल दहल जाता है.

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