विज्ञापन
This Article is From May 02, 2024

मुरैना में क्या पूर्व डकैत चुनाव में असर डाल पाएंगे ?

Prem Kumar
  • विचार,
  • Updated:
    मई 02, 2024 17:30 pm IST
    • Published On मई 02, 2024 17:30 pm IST
    • Last Updated On मई 02, 2024 17:30 pm IST

मध्यप्रदेश के मुरैना लोकसभा क्षेत्र में 7 मई को चुनाव है. इस सीट पर बीजेपी के शिवमंगल सिंह तोमर, कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार और बीएसपी के रमेश गर्ग के बीच तिकोना मुकाबला है. करीब एक-डेढ़ महीना पहले पूर्व डकैत रमेश सिकरवार ने मुरैना सीट से कांग्रेस का टिकट मांगा था. रमेश सिकरवार ने दावा किया था कि 33 साल से इस सीट पर लगातार हार रही कांग्रेस को केवल वही जीत दिला सकते हैं.कांग्रेस ने इस दावे पर भरोसा नहीं किया और बीजेपी के पूर्व विधायक सत्यपाल सिंह सिकरवार को अपना उम्मीदवार बनाया.रमेश सिकरवार के दावे से यह प्रतीत होता है कि आज के दौर में भी पूर्व डकैत जातीय और सामाजिक समीकरण बनाने-बिगाड़ने में भूमिका अदा कर सकते हैं. चंबल नदी मुरैना जिले में पश्चिम से उत्तर की तरफ बहती है. मुरैना में चंबल के बीहड़ और जंगल अब पहले की तरह नहीं रहे लेकिन सामाजिक रूप से अब भी एक बड़ा दबाव समूह यहां की राजनीति को प्रभावित करता है.

क्या चुनाव में पूर्व डकैत असर डाल सकते हैं ?

दस्यु सरगना रमेश सिकरवार ने 1984 में अपने गिरोह के 32 सदस्यों के साथ जौरा गांव स्थित गांधी सेवाश्रम में आत्मसमर्पण किया था.महान गांधीवादी नेता सुब्बा राव इस सेवाश्रम के संचालक थे. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और सुब्बा राव के प्रयास से यह आत्मसमर्पण संभव हुआ था.रमेश सिकरवार पर तीन लाख रुपये का इनाम था.रमेश सिकरवार को 10 साल की सजा हुई थी। रिहा होने के बाद वे अपने पैतृक गांव लहरौनी में खेती-किसानी करने लगे. फिर राजनीति में आ गये. 2008 में उन्होंने मुरैना लोकसभा क्षेत्र के विजयपुर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें केवल 16 हजार वोट मिले और वे चुनाव हार गये. सिकरवार का दावा है कि चुनाव के समय अगल-अलग राजनीतिक दल उनका समर्थन पाने के लिए कोशिश करते रहे हैं. उनका यह भी दावा है कि जब वे दस्यु जीवन के दौरान जंगलों में रहा करते थे तब उन्होंने कई आदिवासी लड़कियों की अपने पैसे से शादी करायी थी.उनके डर से कोई दबंग आदिवासियों की जमीन पर कब्जा नहीं कर पाता था. इसकी वजह से करीब 60 हजार वोटर आज भी रमेश सिकरवार को अपना रहनुमा मानते हैं. वे जिसे कहते हैं, 60 हजार वोट उसी के खाते में जाता है.

अब पूर्व दस्यु सरगना किसे देंगे समर्थन

2019 के लोकसभा चुनाव में मुरैना से नरेन्द्र सिंह तोमर जीते थे. वे केन्द्र सरकार में मंत्री रहे.अब वे मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं.रमेश सिकरवार के मुताबिक 2019 में वे नरेन्द्र सिंह तोमर के कहने पर बीजेपी में शामिल हुए थे. फिर 2024 में उन्होंने खुद चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर कर दी. इसके लिए उन्होंने कांग्रेस के पास पैगाम भेजा लेकिन बात नहीं बनी.अब देखना है कि रमेश सिकरवार किस पार्टी को अपना समर्थन देते हैं.कांग्रेस मुरैना सीट पर 1991 के बाद लोकसभा का चुनाव नहीं जीत पायी है. रमेश सिकरवार ने कांग्रेस की इसी दुखती रग को छुआ था। उन्होंने 33 साल से जीत के सूखे को खत्म करने आश्वासन दिया था लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस पर गौर नहीं किया.

मुरैना में बीएसपी है कांग्रेस के लिए रोड़ा

मुरैना जिले की उत्तर पूर्वी सीमा उत्तर प्रदेश के आगरा जिले से मिलती है. इसलिए इस इलाके में बहुजन समाज पार्टी का अच्छा खासा प्रभाव है.इस क्षेत्र में करीब 25 फीसदी वोटर अनुसूचित जाति के हैं.इसके बाद क्षत्रिय, ब्राह्मण और गुर्जर समुदाय का प्रभाव है. पिछले तीन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस इसलिए हार गयी क्यों कि बीएसपी ने यहां मुकाबला तिकोना बना दिया था.1957 से मुरैना अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट थी. 2009 में यह सामान्य सीट बनी। 2009 के चुनाव में यहां बीजेपी के नरेन्द्र सिंह तोमर को जीत मिली थी. उन्हें तीन लाख 668 वोट मिले थे.कांग्रेस के रामनिवास रावत को एक लाख 99 हजार 650 वोट मिले थे.बीएसपी ने इस सीट पर एक ब्राह्मण उम्मीदवार (बलवीर दांडोतिया) को उतार कर कांग्रेस का खेल खराब कर दिया था.दांडोतिया को एक लाख 42 हजार 73 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार की हार एक लाख 997 वोट से हुई थी. अगर बीएसपी यहां से चुनाव नहीं लड़ती तो गैरभाजपा वोट कांग्रेस को मिलते थे और वह चुनाव जीत सकती थी.

2014 में भी बीसपी के कारण हारी कांग्रेस

2014 के लोकसभा चुनाव में तो बीएसपी ने कांग्रेस को पछाड़ कर तीसरे स्थान पर ढकेल दिया था. उस समय बीजेपी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा को उम्मीदवार बनाया था.उन्हें 3 लाख 75 हजार 567 वोट मिले थे. बीएसपी के उम्मीदवार वृंदावन सिंह सिकरवार ने 2 लाख 42 हजार 586 वोट लाकर दूसरा स्थान हासिल किया था. इस चुनाव में कांग्रेस के गोविंद सिंह को एक लाख 84 हजार 253 वोट मिले थे और वे तीसरे स्थान पर रहे थे.यानी मुरैना में बसपा का एक बड़ा जनाधार है. वह यहां भले चुनाव नहीं जीत पायी है लेकिन कांग्रेस को हराने की क्षमता रखती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस इस सीट पर करीब एक लाख 13 हजार वोटों से हारी थी. उस समय बीएसपी के करतार सिंह भड़ाना को एक लाख 29 हजार 380 वोट मिले थे. इस बार भी मायावती मुरैना में काफी सक्रिय हैं.वे अपने उम्मीदवार रमेश गर्ग के पक्ष में यहां चुनावी सभा कर चुकी है. इस बार भी यहां त्रिकोणीय मुकाबला है.

प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और  देश की राजनीति की गहरी समझ रखते है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

MPCG.NDTV.in पर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार,लाइफ़स्टाइल टिप्स हों,या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें,सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
Close