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    मुरैना में क्या पूर्व डकैत चुनाव में असर डाल पाएंगे ?

    मध्यप्रदेश के मुरैना लोकसभा क्षेत्र में 7 मई को चुनाव है. इस सीट पर बीजेपी के शिवमंगल सिंह तोमर, कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार और बीएसपी के रमेश गर्ग के बीच तिकोना मुकाबला है. करीब एक-डेढ़ महीना पहले पूर्व डकैत रमेश सिकरवार ने मुरैना सीट से कांग्रेस का टिकट मांगा था. रमेश ने दावा किया था कि 33 साल से इस सीट पर लगातार हार रही कांग्रेस को केवल वही जीत दिला सकते हैं. मुरैना में चंबल के बीहड़ और जंगल अब पहले की तरह नहीं रहे लेकिन सामाजिक रूप से अब भी एक बड़ा दबाव समूह यहां की राजनीति को प्रभावित करता है.

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    आज भी सीख देती है रायपुर में आचार्य कृपलानी की हार

    लोकतंत्र में जनमत सर्वोपरि है. जनता ही मालिक है और वही अपने जनप्रतिनिधियों को चुनती है. लेकिन, कभी-कभी जनता का फैसला ऐसा होता है कि उस पर दिल यकीन नहीं कर पाता.अब जैसे 1967 में रायपुर लोकसभा चुनाव के नतीजे की ही बात कर ली जाय. आचार्य जेबी कृपलानी ने आदिवासी समुदाय के हक-हुकूक के लिए रायपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था.लेकिन वे हार गए. आखिर इससे क्या सीख मिलती है?

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    कांकेर में करीबी मुकाबला, बीजेपी बचा पाएगी सीट?

    छत्तीसगढ़ का कांकेर लोकसभा क्षेत्र उत्तरी बस्तर का हिस्सा है. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है.024 में बीजेपी ने आम जनता की नाराजगी से बचने के लिए अपने सीटिंग एमपी मोहन मंडावी का टिकट काट कर नया चेहरा उतारा है. पूर्व विधायक भोजराज नाग कांकेर से बीजेपी के उम्मीदवार हैं.कांग्रेस ने उनके सामने वीरेश ठाकुर को उतारा है जो उन्हें कड़ी टक्कर दे सकते हैं.

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    मध्य प्रदेश में पहले चरण की छह सीटों पर बीजेपी का दबदबा

    MP Lok Sabha Election 2024: पहले चरण में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर चुनाव होने हैं, जहां कांग्रेस ने कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को एक बार फिर उम्मीदवार बनाया. वहीं बीजेपी 2024 में कांग्रेस की जीती हुई इस इकलौती सीट को भी छीनने को आतुर है.

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    कहीं के न रहे कमलनाथ !

    बीते हफ्ते कमलनाथ के बीजेपी में आने की खबर मीडिया पर आने लगी तो बीजेपी और कांग्रेस में से किसी पक्ष ने न तो इसे गलत ठहराया और न ही इसकी पुष्टि की. इस स्थिति ने कई सवालों को जन्म दिया जो बीजेपी के लिए भी हैं और कांग्रेस के लिए भी. और, यहां तक कि स्वयं कमलनाथ के लिए भी. मीडिया ने सवाल दागना शुरू किया कि कांग्रेस से ही नेता क्यों छोड़कर जा रहे हैं? बीजेपी से सवाल होने लगे कि उन्हें कांग्रेस के नेताओं की ही जरूरत क्यों पड़ रही है चुनाव जीतने के लिए?

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    छत्तीसगढ़ में चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाहते हैं कांग्रेस के सीनियर ?

    कांग्रेस का मुकाबला ऐसी पार्टी से जिसने हाल में छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा का चुनाव लड़ने को बाध्य किया था. इसका फायदा भी पार्टी को मिला. छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने चार सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा. कांग्रेस क्यों नहीं ऐसे उदाहरण पेश कर सकती?

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    कांग्रेस के‘एसेट’ नहीं रहे कमलनाथ

    मध्यप्रदेश में करारी पराजय के बाद कांग्रेस आलाकमान ने नेतृत्व परिवर्तन किया है तो यह उसकी मजबूती नहीं, कमजोरी को दर्शाता है.कांग्रेस को सिर्फ चुनावी हार नहीं मिली है बल्कि चुनाव से पहले ही सैद्धांतिक और नैतिक पराजय का सामना करना पड़ा है और उसकी वजह रहे कमलनाथ. इंडिया गठबंधन के घटक दलों के सामने कांग्रेस का सिर ऊंचा नहीं, नीचा हुआ है.

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