Vegetable and fruit cultivation in Neemuch: आज के समय में युवा किसान एक साथ होने वाली कई फसलों की खेती को अपनाकर ज्यादा मुनाफा कमा कर रहे हैं. किसानों के लिए सहफसली खेती बेहद फायदेमंद है. इसमें कम खर्च में अधिक मुनाफा मिलता है. ऐसा ही मध्य प्रदेश के नीमच में देखने को मिल रहा है. हालांकि यहां कोई युवा नहीं, बल्कि 65 वर्षीय किसान इस तरीके से खेती को अपनाया है.
सच कहा गया है कि किसी भी काम को करने के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती केवल जज्बे की जरूरत होती है. यह जज्बा और मेहनत किसी भी काम में सफलता की गारंटी होती हैं.
5 बीघा में बुजुर्ग किसान कर रहे फल और सब्जी की खेती
उम्र के इस पड़ाव में 65 वर्षीय किसान भगतराम पारंपरिक खेती को छोड़कर सहफसली खेती कर रहे हैं और लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं, वो भी महज 5 बीघा जमीन से. बता दें कि भगतराम भाटी युवाओं के लिए एक प्रेरणादायक व्यक्ति साबित हो रहे हैं. दरअसल, उम्र के इस पड़ाव में भी उनकी सोच ओर परिश्रम युवाओं को प्रेरणा दे रही है.
हर दिन 4000 रुपये का मुनाफा
भगतराम भाटी मध्य प्रदेश के नीमच जिले के आमलीखेड़ा गांव के रहने वाले हैं और इनके पास मात्र 5 बीघा जमीन है. भगतराम अपने कुल जमा 5 बीघा खेत के अलग-अलग हिस्सो में विभिन्न प्रकार के फल सब्जियां और फसल बोकर रोजाना 3000 से 4000 रुपये कमा रहे हैं. हालांकि इसमें सरकार या सरकारी सिस्टम का कोई भी योगदान नहीं है.
भगतराम भाटी की फसल बोवने की टाइमिंग इतनी शानदार है कि एक समय में वे एक ही जगह से अलग-अलग फसल का उत्पादन ले रहे हैं. पहली फसल का उत्पादन खत्म होने से पहले ही दूसरी फसल उत्पादन देने लगती है और दूसरी फसल का उत्पादन खत्म होते ही तीसरी फसल उत्पादन देने लगती है.
इन फलों से कर रहे मुनाफा
भगत राम ने करीब 4 साल पहले इस तरह के प्रयोग करना शुरू किया. सबसे पहले किसान ने अपने खेत को चार हिस्सों में बांट दिया. खेत के पहले हिस्से यानी 2 बीघा में बगीचा बनाकर विभिन्न प्रजातियों के फलदार पेड़ पौधे लगाए है. इस बगीचे में अमरुद, अंगूर, चीकू, संतरा, आम, पपीता, निम्बू के पौधे लगाकर वो लगातार उत्पादन ले रहे है. इतना ही नहीं किसान ने अब प्रायोगिक तौर पर बादाम, इलायची, अंगूर, एप्पल बेर, अंजीर के पड़े लागये है, जिसमे अंजीर, एप्पल, बेर के पेड़ में फल लग चुके है. आगे वो परिणाम देखकर उस फल का उत्पादन बढ़ाएंगे.
इन सब्जियों का करते हैं उत्पादन
दूसरा हिस्सा जो एक बीघा से कम है. यहां बारिश में मक्का लगाते हैं. वहीं मक्का के कटने के बाद इसमें मटर की बुआई करते हैं. जिसका उत्पादन वर्तमान में ले रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने भिंडी भी लगाई है, ताकि जैसे मटर का उत्पादन खत्म होने से पहले इसका उत्पादन होने लगे.
इसी तरह तीसरे हिस्से में जो कि एक बीघे से कम है उसमें बारिश के समय मिर्ची की रोपाई की. बता दें कि इस खेत से वो मिर्ची के साथ धनिया पत्ती का उत्पादन ले रहे हैं, जबकि करेले के बीज की भी बुआई इसमें कर दी है. आने वाले दिनों में उन्हें करेले से उत्पादन मिलेगा. किसान इसी हिस्से से 2 लाख रुपये की सफेद मूसली उगाकर मुनाफा कमाया. वहीं करीब 1 लाख रुपये की धनिया-मिर्ची का उत्पादन ले चुके हैं.
किसान ने खेत के अंतिम हिस्से में जो कि करीब डेढ़ बीघा से अधिक है. उसमें काबली चने की बुआई की है. हालांकि जब चने की फसल डेढ़ माह की हुई, तब उनहोंने इसमें ईसबगोल का बुआई कर दी गई.
एक-एक इंच जमीन का भरपूर प्रयोग
इतना ही नहीं किसान ने खेत के चारों ओर मेढ़ पर करीब ढाई सौ पपीते के पौधे लगाए हैं. आमतौर पर ट्रैक्टर से खेत की हकाई जुताई के दौरान यह हिस्सा अछूता और अनुपयोगी रहता है. इस हिस्से पर पपीते के पौधे लगाए हैं. जिसे लगातार 3 वर्षों से लाखों रुपये का मुनाफा उठा चुके हैं. जिन पौधों की उम्र खत्म हो जाती हैं उनकी जगह नया पौधा लगाकर फिर से उत्पादन लेने लगते हैं. इतना ही नहीं पपीते के पौधों के बीच में भी खेत की तार फेंसिंग के सपोर्ट से उन्होंने चारों तरफ कई सब्जियां भी लगाई हैं, जिसमें गराडू, गिलकी, शकरकंद आदि शामिल है. जिसका वो बखूबी उत्पादन ले रहे हैं.
उर्वरकता बढ़ाने के लिए बुजुर्ग किसान करते हैं ये काम
किसान भगत राम बताते हैं कि गर्मी के दो-तीन माह में खेत में कोई भी उपज नहीं लेते है. इस दौरान खेत में आवश्यक हकाई जुताई के काम के साथ ही देसी खाद और अन्य उर्वरकता बढ़ाने वाले उत्पाद खेतों में समय-समय पर डालते रहते हैं. ताकि खेत की उपजाऊ क्षमता बनी रहे.
किसान का कहना है यूं तो फसलों के लिए पर्याप्त पानी है, लेकिन फिर भी पानी की बचत के लिए वे स्पिंगलर के जरिए सिंचाई करते हैं. इससे फसलों को आवश्यकता अनुसार पानी उपलब्ध होता है. तो वही अनावश्यक पानी की बर्बादी नहीं होती है और उत्पादन अच्छा होता है.
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किसान भगतराम चौथी कक्षा तक बमुश्किल से पढ़े लिखे हैं, लेकिन उनके स्मार्ट खेती ने युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं. एग्रीकल्चर के छात्र भी उनके पास खेती का आइडिया लेने के लिए पहुचते हैं. बता दें कि युवक उनके खेत पर आकर उनसे इस खेती का गुर भी सीख रहे हैं.
किसान भगत राम बताते हैं कि खेती के लिए ना तो किसी तरह का प्रशिक्षण लिया, ना ही किसी ने उनका मार्गदर्शन किया. हां कभी कभी वे अपने मोबाइल में यूट्यूब जरूर देख लेते हैं. उनका ये प्रयोग स्वयं के दिमाग की उपज है.
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