Tiger in Madhya Pradesh: मध्यप्रदेश के पास टाइगर स्टेट (Tiger State)का तमगा है. वो इस पर इतरा सकता है क्योंकि यहां बाघों की आबादी (tiger population ) 526 से बढ़कर 785 पहुंच गई है. यहां 7 टाइगर रिजर्व (Tiger Reserve) हैं और साल भर में 25 लाख से अधिक पर्यटक यहां बाघों का दीदार करने आते हैं...ये आंकड़े वाकई गर्व करने के लिए काफी हैं लेकिन इससे पहले की आप इतराएं एक दूसरा आंकड़ा भी जान लीजिए...राज्य में पिछले साल 13, 2022 में 9 और 2021 में 12 बाघों की मौत हुई है. इसमें से कई हत्या के भी मामले हैं. NDTV के हाथ मध्य प्रदेश के वन विभाग की एक खास रिपोर्ट लगी है जिसमें राज्य में बाघों की मौतों में बढ़ोतरी का खुलासा हुआ है. वन विभाग की इस रिपोर्ट में इन मामलों के निपटान में गंभीर लापरवाही और प्रक्रियागत कमियों का खुलासा हुआ है, जिससे क्षेत्र में वन्यजीव संरक्षण की स्थिति पर गंभीर चिंता पैदा हो गई है. रिपोर्ट को देखकर लगता है कि यदि प्रशासनिक लापरवाही नहीं होती तो प्रदेश में बाघों की तस्वीर और अच्छी होती. आगे बढ़ने से पहले जान लीजिए हम कैसे बाघों को खोते जा रहे हैं और कैसी लापरवाही प्रशासनिक मोर्चे पर हो रही है?
अब जरा प्रदेश में बाघों के इलाके के भगौलिक विस्तार को भी जान लीजिए.
दरअसल मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) ने 2021, 2022 और 2023 में बाघों की मृत्यु/शिकार की जांच के लिए एक विशेष समिति का गठन करने का आदेश जारी किया. प्रधान मुख्य वन संरक्षक के आदेश संख्या 175 में दिनांक 6 मार्च 2024 के तहत विशेष समिति में बनी जिसमें शामिल थे-
1. रितेश सोनफिया (IFS) - अध्यक्ष, प्रधान अधिकारी स्टेट टाइगर स्ट्राइक फोर्स, भोपाल
2. डॉ. काजल जायसवाल - सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ वाइल्डलाइफ फॉरेंसिक्स एंड हेल्थ, जबलपुर
3. अर्चना जोशी- वकील और वन्यजीव अधिकारी, कटनी
इस जांच समिति ने घटना स्थल पर जाकर हर मामले में अवैध शिकार, आपसी लड़ाई और अन्य कारणों के आधार पर जांच की. समिति ने जांच अधिकारियों, क्षेत्र अधिकारियों और दूसरे संबंधित व्यक्तियों के साथ भी बातचीत की. जिसके आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई. इस रिपोर्ट ने पिछले तीन वर्षों में बाघों की मौतों के प्रमुख कारणों की पहचान की, जिनमें करेंट, संघर्ष, बीमारी, वृद्धावस्था, जहर, सड़क दुर्घटनाएं और अज्ञात कारण शामिल हैं.BTR ने 2021 में 12 बाघों की मौतें, 2022 में 9 बाघों की मौतें और 2023 में 13 बाघों की मौतें दर्ज कीं. सबसे अधिक मृत्यु दर मनपुर बफर जोन में देखी गई, इसके बाद ताल, मगधी और खितौली कोर क्षेत्र आते हैं. लापरवाही का आलम ये है कि बांधवगढ़ में कुल 34 में से 14 मामलों में पीओआर यानी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई. जबकि 20 मामलों में पीओआर दर्ज ही नहीं हुई. ये नियमों का घोर उल्लंघन है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि मनपुर बफर और 'धमोखर बफर' वन परिक्षेत्र में संघर्ष सबसे अधिक है. यह देखा गया कि मनपुर बफर में सबसे अधिक अवैध शिकार की जानकारी मिली थी.यहां तक कि वन परिक्षेत्र में बिना सिर के बाघ का भी एक मामला पाया गया था. सबसे अधिक मवेशियों की हानि भी मनपुर बफर वन परिक्षेत्र में ही देखी गई है.
पोस्टमार्टम के दौरान पशु चिकित्सक अनुपस्थित थे और अधिकांश मापदंडों का पालन नहीं किया गया. रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि घटना स्थलों की सुरक्षा के प्रयास अपर्याप्त थे और डॉग स्क्वॉड या मेटल डिटेक्टर तक का उपयोग नहीं किया गया.इसके अलावा सैंपल खराब तरीके से संभाले गए, जिससे कोर्ट केस के दौरान सबूत प्रभावित हुए. कई मामलों में केस डायरी या दस्तावेज तैयार नहीं किए गए. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और शहडोल वन रेंज के अधिकारियों ने कई मामलों में अंतिम NTCA की रिपोर्ट तक प्रस्तुत नहीं की. सबसे दुखद तो ये है कि कई मामलों में बाघों की मौतों को बिना विस्तृत जांच के आपसी लड़ाई के रूप में दर्शा दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अक्सर संबंधित पशु चिकित्सकों के हस्ताक्षर नहीं होते थे, और कुछ मामलों में कोई वन्यजीव चिकित्सा अधिकारी मौजूद नहीं था.
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 2014 में 63 से बढ़कर 2022 में 165 हो गई. हालांकि, इस बढ़ोतरी के साथ बाघों की मौतों में चिंताजनक वृद्धि भी हुई है.रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बाघों की बढ़ती संख्या और निर्माण कार्यों से बाघों के बीच संघर्ष और मृत्यु दर में वृद्धि की है. रिपोर्ट में पाया गया है कि बाघों की बढ़ती संख्या के कारण युवा और वृद्ध बाघ अक्सर कोर क्षेत्रों से बाहर निकलकर मानव आबादी वाले क्षेत्रों में चले जाते हैं, जहां वे मवेशियों का शिकार करते हैं.इससे मानव-बाघ संघर्ष की घटनाएं बढ़ गई हैं.बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और इसके आसपास सड़क निर्माण, भवन निर्माण और रिसॉर्ट्स जैसे निर्माण बाघों के आवास को कम कर रही हैं जिससे क्षेत्रीय संघर्ष और शिकार की घटनाओं में वृद्धि हो रही है.
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