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Territorial Conflict : टाइगर स्टेट एमपी में बढ़ा बाघों के बीच संघर्ष, घटते जंगल से गहराया अस्तित्व पर संकट

Tigers Territorial Area: टाइगर प्रदेश MP में बाघों के रहवास वन क्षेत्र में लगातार आ रही कमी का असर है कि बाघों के बीच संघर्ष तेजी से बढ़ा है. इससे बाघों के व्यवहार में तेजी से परिवर्तन आया है. पहले जहां बाघ टेरेटरी 200 वर्ग किमी में फैली होती थी, लेकिन अब यह सिमटकर 15-20 वर्ग किमी में रह गई है.

Territorial Conflict : टाइगर स्टेट एमपी में बढ़ा बाघों के बीच संघर्ष, घटते जंगल से गहराया अस्तित्व पर संकट
tigres territory in mp shrunk by 15 to 20 square kilometers

Conflict Between Tigers: देशभर में टाइगर स्टेट के रूप में शुमार मध्य प्रदेश अब एक नई चुनौती से जूझ रहा है. राज्य में बाघों की संख्या तो लगातार बढ़ रही है, लेकिन उनके लिए सुरक्षित वन क्षेत्र यानी जंगल सीमित हो रहे हैं. इसका असर है कि अब बाघों के व्यवहार और उनके अस्तित्व पर संकट गहराने लगा है, जिससे बाघों की आपसी मौतें बढ़ रही हैं.

टाइगर प्रदेश MP में बाघों के रहवास वन क्षेत्र में लगातार आ रही कमी का असर है कि बाघों के बीच संघर्ष तेजी से बढ़ा है. इससे बाघों के व्यवहार में तेजी से परिवर्तन आया है. पहले जहां बाघ टेरेटरी 200 वर्ग किमी में फैली होती थी, लेकिन अब यह सिमटकर 15-20 वर्ग किमी में रह गई है.

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टाइगर प्रदेश एमपी में तेजी घट रही है बाघों की टेरिटरी

एनडीटीवी से बातचीत में वन्य जीव विशेषज्ञ डॉ. अवध बिहारी श्रीवास्तव ने बताया कि एक समय था जब पन्ना टाइगर रिजर्व लगभग बाघ-विहीन हो गया था. उस समय यदि कोई बाघ होता भी, तो उसकी टेरिटरी 200 वर्ग किमी तक फैली होती थी, लेकिन आज कान्हा नेशनल पार्क जैसे सुरक्षित क्षेत्रों में यह क्षेत्र घटकर औसतन 15 से 20 वर्ग किमी तक सिमट गया है.

क्षेत्र पर निर्भर करता है कि जंगल में कितने हैं बाघ-बाघिन

डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार जंगल में बाघों की संख्या घटने का दूसरा कारण निस्संदेह छोटे होते वन क्षेत्र और उनके चारों ओर बढ़ता मानवीय हस्तक्षेप है. अब बाघों का साम्राज्य उनके लिए ही छोटा पड़ने लगा है, जिससे बाघों के बीच संघर्ष तेजी से बढ़ा है, इससे बाघों के व्यवहार में भी बदलाव तेजी से देखा जा रहा हैे.

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एक वयस्क बाघ सालभर में औसतन 50 से 60 जंगली जानवरों का शिकार करता है, लेकिन बूढ़ा होने पर वह गांव के करीब पहुंचकर गाय-बकरी जैसे पालतू पशुओं पर हमला करता है. इससे ग्रामीणों में आक्रोश फैलता है और कई बार बाघों को मार दिया जाता है.

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दो वर्षों में 12 से अधिक बाघों की आपसी संघर्ष में मौत

पेंच और कान्हा जैसे नामी टाइगर रिजर्व में पिछले दो वर्षों में 12 से अधिक बाघ आपसी संघर्ष में मारे गए हैं. एक बाघ अपनी टेरिटरी में दूसरे बाघ का प्रवेश सहन नहीं करता. बलशाली बाघ अक्सर कमजोर बाघों को मार डालते हैं. मौका मिलते ही नर बाघ अपने ही बच्चों को भी मार देता है.

टाइगर रिजर्व मे जंगल कम, रिसॉर्ट ज्यादा हो गए हैं

रिपोर्ट के मुताबिक टाइगर रिजर्व के इर्द-गिर्द रिसॉर्ट्स, होटल्स, और ग्रामीण बस्तियों की बेतरतीब बसावट टाइगर कॉरिडोर को बाधित कर रही है. जैसे-जैसे बाघों की संख्या बढ़ी है, उनके लिए अनुकूल क्षेत्र सीमित हो गए हैं.टाइगर रिजर्व के लिए चिन्हित क्षेत्र में मानव और मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने से जंगल क्षेत्र कम होते जा रहे हैं. 

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सरकार का प्रयास है कि पूरा क्षेत्र जल्द ही वन्यजीवों के लिए सुरक्षित बनाया जा सके. सरकार ने प्रदेश भर में टाइगर कॉरिडोर विकसित करने की योजना शुरू की है. इससे उनकी प्राकृतिक टेरिटरी तय करने में सुविधा होगी और संघर्ष में कमी आएगी.

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वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व एक नई शुरुआत

मध्य प्रदेश सरकार ने बाघों के सिकड़ते रहवास क्षेत्र को देखते हुए वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व के रूप में नई पहल की है. करीब 2,339 वर्ग किमी में फैले इस टाइगर रिजर्व में बाघों की आमद शुरू हो चुकी है. हालांकि अभी यहां 51 गांवों का विस्थापन शेष है. अब तक 44 गांव पुनर्स्थापित हो चुके हैं.

एक से दूसरे रिजर्व तक बिना टकराव घूम सकेंगे बाघ

प्रदेश सरकार ने प्रदेश भर में टाइगर कॉरिडोर विकसित करने की योजना शुरू की है ताकि एक रिजर्व से दूसरे रिजर्व तक बाघ बिना मानवीय टकराव के आवागमन कर सकें. इससे जंगल में बाघों की प्राकृतिक टेरिटरी तय करने में सुविधा होगी और जंगल की कमी से बाघों के बीच संघर्ष में कमी आएगी.

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