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PM मोदी ने जिस वैदिक घड़ी का किया शुभारंभ, जानिए उसी के निर्माता से इसे बनाने की कहानी

आरोह के अनुसार 2017 में घड़ी बनाने का आइडिया आने पर नौकरी छोड़ लखनऊ से कन्याकुमारी तक साइकिल यात्रा की. समय का देवता शिवजी माने जाते हैं, इसलिए 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के दौरान जानकारों से मिलता रहा.

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PM मोदी ने जिस वैदिक घड़ी का किया शुभारंभ, जानिए उसी के निर्माता से इसे बनाने की कहानी

Prime Minister Narendra Modi attends the Viksit Bharat, Viksit MP programme: बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में आज कालगणना के नए युग का शुभारंभ हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) विश्व की पहली वैदिक घड़ी "विक्रमादित्य वैदिक घड़ी" का वर्चुअली लोकार्पण किया है. जीवाजी राव वैधशाला में लगाई गई इस विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का लोकार्पण भले ही गुरुवार को हुआ, लेकिन इसका विचार इंग्लैंड के ग्रीनविच म्यूजियम (Greenwich Museum) को देखकर आया था. इसे बनाने के लिए मर्चेंट नेवी (Merchant Navy Job) की नौकरी तो छोड़ी ही 12 ज्योतिर्लिंग (12 Jyotirlinga) के साइकल से दर्शन कर सात साल प्रयास किया तब दुनिया के लिए 30 घंटे की यह घड़ी बन पाई. इसके लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री (Chief Minister of Madhya Pradesh) डॉ मोहन यादव (CM Mohan Yadav) की भी अहम भूमिका है. यह कहना है वैदिक घड़ी के रचयिता लखनऊ निवासी आरोह श्रीवास्तव का. एनडीटीवी (NDTV) को दिए गए विशेष इंटरव्यू में आरोह ने बताया कि कैसे इसका निर्माण हुआ है. 

इतिहास पढ़ने से उज्जैन का महत्व समझा 

आरोह ने एनडीटीवी को दिए विशेष इंटरव्यू में बताया कि इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान पता चला वहां स्थित ग्रीनविच पॉइंट को पृथ्वी का केंद्र माना जाता है. इतिहास पढ़ा तो सच सामने आया कि उज्जैन विश्व का केंद्र माना जाता था और पहले समय की गणना यहीं से होती थी. फिर नेवी में नौकरी के दौरान जहाज की जीपीएस लोकेशन (GPS Location) सूर्य व तारों की गणना से निकालने की तकनीक देख सोचा कि जब हमारा कैलेंडर सूर्य पर आधारित है तो तारीख रात 12 बजे क्यों बदलती है? यह सूर्य उदय होने पर क्यों नहीं बदलती?

पढ़ाई कर रिसर्च की तो पता चला 15वीं शताब्दी में जब मैकेनिक घड़ी का आविष्कार हुआ तो उसकी लिमिटेशन के कारण वह सूर्य को नहीं नाप सकती थी, इसलिए सोचा क्यों ना सूर्य पर आधारित घड़ी बनाई जाए. ऐसी घड़ी बनाने पर रिसर्च की तो मालूम पड़ा कि प्राचीन काल में भारतीय कालगणना में 30 मूहर्त होते थे. यह 30 मुहूर्त तो सूर्य उदय का कालखंड है. इसी के बाद 30 मुहूर्त की ऐसी घड़ी जो विंड टाइम कॉन्सेप्ट या सूर्य घड़ी के कांसेप्ट को दर्शाती है बनना तय कर लिया.

घड़ी के लिए 12 ज्योतिर्लिंग की परिक्रमा की

आरोह के अनुसार 2017 में घड़ी बनाने का आइडिया आने पर नौकरी छोड़ लखनऊ से कन्याकुमारी तक साइकिल यात्रा की. समय का देवता शिवजी माने जाते हैं, इसलिए 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के दौरान जानकारों से मिलता रहा. तय किया कि ईस्ट इंडिया कंपनी अपने हिसाब से समय तय कर सकती है तो विश्व में पूर्व की तरह 30 घंटे क्यो नहीं? इसी यात्रा के दौरान इंदौर आने पर विक्रमादित्य शोध संस्थान के श्री राम तिवारी के माध्यम से तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री और वर्तमान सीएम डॉ मोहन यादव से मिला. उनके प्रयास से उज्जैन में घड़ी लग गई. अब पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा लोकार्पण के बाद पूरे देश में इसे लगाएंगे.

मैकेनिकल से फेल डिजिटल से पास

आरोह ने बताया कि यह बहुत एडवांस टेक्नोलॉजी से बनाई घड़ी है क्योंकि आज का शून्य रात 12 बजे बजता है जबकि हमारी घड़ी में लोकेशन अनुसार सूर्योदय के साथ जीरो बजेगा. हालांकि शुरू में मैकेनिकल तरीके से इस घड़ी को बनाने का प्रयास किया था, फेल होने पर आधुनिक उपकरण जीपीएस, इंटरनेट, सेटेलाइट से डाटा लेकर बनाई. हमारे वेद और शास्त्रों में इसका पहले से ही उल्लेख है इसलिए विक्रमादित्य वैदिक घड़ी नाम दिया.

2 करोड़ पर लगी वैदिक घड़ी

वैदिक घड़ी लगाने में आम भूमिका निभाने वाले विक्रमादित्य शोध संस्थान के निदेशक डॉ श्रीराम तिवारी ने बताया कि डॉक्टर मोहन यादव ने पूर्व में 1.68 करोड रुपए जारी किए थे. नगर निगम ने घड़ी बनाई है, घड़ी में भोपाल के डिजिटल टेक्नीशियन शशि गुप्ता के मदद से सभी प्रमुख स्थानों के चित्र भी दर्शाए गए हैं. इसकी कुल लागत करीब 2 करोड़ रुपये के पार हो गई है. वहीं आरोह ने बताया कि घड़ी बनाने में उनकी खुद की जेब से भी 22 लाख रुपए खर्च हुए हैं. आरोह इसका श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं.

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