Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश में द्वार प्रदाय योजना से जुड़े ट्रांसपोर्टरों पर अंकुश लगाने के लिए शुरू हुई मुख्यमंत्री अन्नदूत स्कीम अब परिवहनकर्ताओं को भारी पड़ रही है.आलम यह है कि अन्नदूतों पर स्वरोजगार की आड़ में आर्थिक बोझ लाद दिया गया है,जिससे तमाम लोग कर्जदार बन गए हैं. यदि अधिकारियों ने इस समस्या का निदान नहीं ढूंढा तो आर्थिक तंगी के जूझ रहे परिवहनकर्ता कहीं राशन पहुंचाने का काम ठप न कर दें. अन्नदूतों के साथ हो रहे अन्याय का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि उनका अनुबंध अधिकतम 954 किमी का है, लेकिन हर माह दस हजार किमी तक गाड़ी चलानी पड़ रही है.
यह स्थिति तब है जब इस मामले में खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण संचालनालय के अपर संचालक कलेक्टर सतना को पत्र लिखकर जांच के निर्देश दे चुके है. लगभग 19 दिन पहले किए गए पत्राचार के संबंध में अब तक अधिकारिक चुप्पी कायम है.
सेक्टर क्रमांक 19 बरौंधा क्षेत्र की 27 दुकानों तक अनाज पहुंचाने का अनुबंध परिवहनकर्ता रामकुमार पयासी से किया गया था. कुल 954.95 किमी दूरी बताकर नान और परिवहनकर्ता के बीच अनुबंध हुआ. इस दूरी में कुल 27 राशन दुकानों का 3000 क्विंटल आवंटन पहुंचाया जाना है. नियम के अनुसार एक बार में मात्र 75 क्विंटल अनाज ही लोड किया जा सकता है.
वहीं यदि स्नेह निगम गोदाम मझगवां से लोडिंग होती है तो यह दूरी लगभग छह हजार किमी तक पहुंचती है. इसके बाद भी उन्हें अनुबंध शर्त के अनुसार ही राशि का भुगतान किया जाता है.
दरों में काफी असमानता
शहरी सेक्टरों में काम करने वाले अन्नदूतों और ग्रामीण क्षेत्र में काम करने वाले परिवहनकर्ताओं के रेट में काफी असमानता भी देखने को मिल रही है. कुछ परिवहनकर्ताओं पर अधिकारियों की मेहरबानी ऐसी है कि उन्हें 53 रुपए प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया जा रहा है जबकि राजकुमार पयासी को मात्र 49.80 रुपए का प्रति क्विंटल भुगतान किया जा रहा है.
नान ने पत्र लिखकर चुप्पी साधी
अन्नदूत परिवहनकर्ता के आवेदन के बाद नागरिक आपूर्ति निगम के जिला प्रबंधक ने जुलाई माह में पत्र क्रमांक 587 के माध्यम से जिला आपूर्ति अधिकारी सतना को दूरी बढ़वाने एवं दरों में संशोधन कराने के लिए पत्र लिखा था.
जबकि उसे दो गुनी से भी अधिक दूरी तय करनी पड़ती है जिससे आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है. इसके बाद भी जिला आपूर्ति अधिकारी ने जिला प्रबंधक के पत्र को कोई महत्व नहीं दिया.
मां-पत्नी के गहने भी गिरवी रखे
मुख्यमंत्री अन्नदूत योजना के परिवहनकर्ताओं से जब अनुबंध हुआ तो उन्हें उम्मीद थी कि आगे आने वाले सात साल तक काम मिलता रहेगा और उनकी निश्चित आमदनी होती रहेगी. लेकिन यहां अधिकारियों की लापरवाही का आलम यह है कि अन्नदूतों को अपने मा-पत्नी के गहने तक गिरवी रखने पड़ रहे हैं.
अधिकारियों के भरोसे पर काम करता रहा और अब उस पर क्रेडिट कार्ड के डेढ़ लाख, मां की चेन और पत्नी के गहने मुक्त कराने का आर्थिक बोझ खड़ा हो गया है. यह कहानी केवल रामकुमार पयासी की नहीं है, अधिकांश परिवहनकर्ता यही परिस्थितियों से जूझ रहे हैं.
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डीएसओ ने दिया निदान का भरोसा
अन्नदूत के ट्रांसपोर्टर पर पड़ रहे भार के संबंध में जब जिला आपूर्ति अधिकारी डिप्टी कलेक्टर एलआर जांगिड़ से बात की गई तो उन्होंने कहा कि समस्या संज्ञान में है. मामले में सुधार के लिए प्रस्ताव भेजा गया है. उम्मीद है कि जल्द से जल्द सुधार होगा. वहीं नागरिक आपूर्ति निगम के जिला प्रबंधक ने मीटिंग में व्यस्तता का हवाला देते हुए प्रकरण के बारे में कुछ भी नहीं कहा.
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