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सुप्रीम कोर्ट के आदेश की परवाह किसे है? भोपाल गैस राहत अस्पताल की 'बीमारी' का नहीं हुआ इलाज

भोपाल त्रासदी के 40 साल बाद भी हजारों गैस पीड़ित यातना शिविरों में ही रहने को अभिशप्त हैं. वे बीमार हैं और इलाज के लिए जिन गैस राहत अस्पतालों में जाते हैं वहां ना डॉक्टर हैं, ना नर्सिंग-पैरामेडिकल स्टाफ. गैस राहत अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी के चलते भोपाल गैस पीड़ितों को लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. NDTV के स्थानीय संपादक अनुराग द्वारी ने इन्हीं हालात का मौके पर जाकर जायजा लिया.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की परवाह किसे है? भोपाल गैस राहत अस्पताल की 'बीमारी' का नहीं हुआ इलाज

Bhopal Gas Tragedy News: गोद में मां से लिपटा बच्चा, भोपाल गैस त्रासदी की ये मार्मिक मूर्ति, आरिफ और जेपी नगर के मुहाने पर है, यहां से सामने की सड़क को पार करके यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) का कारखाना है. 1985 में डच नागरिक रूथ वाटरमैन (Ruth Waterman) ने ये मूर्ति बनाई थी. दरअसल भोपाल गैस त्रासदी को सुनकर उन्हें अपने माता-पिता याद आ गई थी जिन्हें हिटलर के नाजी कैंप में गैस चैंबर में बंद करके मार दिया गया था, वो भी सिर्फ इसलिये क्योंकि वो यहूदी थे. खुद रूथ किसी तरह इन यातना शिविरों से बचकर निकली थीं.आप कहेंगे हम आपको ये कहानी क्यों बता रहे हैं तो वो इसलिए क्योंकि इस त्रासदी के 40 साल बाद भी हजारों गैस पीड़ित यातना शिविरों में ही रहने को अभिशप्त हैं. वे बीमार हैं और इलाज के लिए जिन गैस राहत अस्पतालों में जाते हैं वहां ना डॉक्टर हैं, ना नर्सिंग-पैरामेडिकल स्टाफ. गैस राहत अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी के चलते भोपाल गैस पीड़ितों (Bhopal Gas Victims)को लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. NDTV के स्थानीय संपादक अनुराग द्वारी ने इन्हीं हालात का मौके पर जाकर जायजा लिया.      

भोपाल गैस पीड़ितों की स्थिति बयां करती डच नागरिक रूथ वाटरमैन की बनाई मूर्ति. अब गैस पीड़ितों की स्थिति नहीं सुधरी है.

भोपाल गैस पीड़ितों की स्थिति बयां करती डच नागरिक रूथ वाटरमैन की बनाई मूर्ति. अब गैस पीड़ितों की स्थिति नहीं सुधरी है.

  सबसे पहले हम पहुंचे आरिफ नगर में रहने वाली नूरजहां के घर...बाहर कपड़े डले थे ... अंदर इतनी उमस के बावजूद कूलर चलाकर वो फर्श पर बैठी थीं .उन्हें चलने फिरने में तकलीफ होती है. पति वेल्डर का काम करके कुछ कमा लेते हैं, लेकिन उन्हें भी दिक्कत रहती है. "नूरजहां बताती हैं कि

गैस से मेरे जवान बेटे की मौत हो गई, उस वक्त वो डेढ़-2 साल का था किडनी खराब हुई और कुछ सालों में उसने दम तोड़ दिया. अब मुझे घुटने में दर्द, शुगर, ब्लड प्रेशर की समस्या है. रात भर नींद नहीं आती. एक्सरे करवाने के लिए शाकिर अली अस्पताल जाना पड़ा क्योंकि यहाँ डॉक्टर नहीं हैं.

नूरजहां

गैस पीड़ित

वहां जाओ तो इतनी लंबी लाइन होती है कि सुबह जाओ और शाम हो जाती है. डॉक्टर भी नहीं हैं, दवा भी नहीं मिलती." आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं कि दिक्कत कहां हैं फिर दूसरी और कहानियों पर भी गौर करेंगे. 

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सरकारी प्रयासों की हकीकत आपने जान ली अब  कुछ और पीड़ितों की स्थिति पर गौर कर लीजिए. आरिफ नगर की ही रहने वाली कम्मो बी की भी स्थिति देख लीजिए. उनके  सिर में दर्द रहता है. चलने फिरने में तकलीफ है सरकारी अस्पताल की लाइन में घंटों खड़े रहना उनके बस में नहीं. परेशानी ये है कि जवाहरलाल नेहरू गैस राहत जैसे अस्पतालों में एक्सरे, सोनोग्राफी कुछ नहीं होता.   ऐसी ही कहानी मीना पंथी की भी है. वे घर के बाहर कुर्सी पर बैठी थीं, बगल में 5 साल की पोती खेल रही थी गैस त्रासदी में उनके परिवार के सारे लोगों की मौत हो गई थी, सास-ससुर, पति, सब। वो कहती हैं "ऐड़ी में दर्द रहता है, चलती हूँ तो सांस फूलती है। 6 महीने से परेशान हूँ। गैस राहत अस्पताल में कभी आला लगाकर नहीं देखते, दूर से ही गोली दवा लिख दी जाती है। जब हमने पूछा पैर का एक्स-रे है तो उन्होंने कहा डॉक्टर लिखेगा तब तो एक्सरे होगा।" इन सब गैस पीड़ितों की हालत यूं ही खराब नहीं है. आप जरा अस्पतालों की स्थिति पर गौर करिए.  

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सरकार ने विज्ञापनों में तो डॉक्टरों की नियुक्ति की बात कही है लेकिन सूत्रों का कहना है कि अब डॉक्टरों को मौखिक तौर पर बताया जा रहा है कि उनके चयन से संबंधित 27 जून 2024 का आदेश निरस्त कर दिया गया है.ये हालात तब हैं जब सर्वोच्च न्यायालय और मप्र उच्च न्यायालय ने भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग जिन अस्पतालों को संचालित करता है उनमें पिछले कई वर्षों से रिक्त पड़े पदों को तत्काल भरने के संबंध में कई निर्देश जारी किए हैं. 30 नवंबर 2023 को मप्र उच्च न्यायालय ने अपने आदेशों का पालन न करने पर मुख्य सचिव, एसीएस-स्वास्थ्य और कई अन्य अधिकारियों के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही के तहत नोटिस भी जारी किया था.  
             

जब एनडीटीवी ने गैस राहत एवं पुनर्वास मंत्री विजय शाह से सवाल किया तो उन्होंने कहा- मेरे अंतर्गत 8 अस्पताल हैं जहाँ 15 डॉक्टर्स की नियुक्ति की गई है. आने वाले 10 दिनों में और डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए अखबारों में विज्ञापन दिए गए हैं. नियुक्ति जल्दी होगी, पैसे भी बढ़ा दिए जाएंगे."

          लेकिन डॉ. प्रताप सिंह बताते हैं कि गैस राहत के डेपुटेशन में पोस्टिंग के लिए पद निकले थे, कई डॉक्टरों ने आवेदन किया और प्रक्रिया के दौरान जारी की गई सूची में 15 लोगों के नाम थे. गैस राहत में जॉइनिंग न मिलने पर काफी समय तक कुछ पता नहीं चला.

सब जगह पता करने पर डिपार्टमेंट का कहना था कि उन्होंने अपना काम कर दिया है और दिक्कत शायद मंत्री जी की तरफ से है. मंत्री से मिलने पर उन्होंने ऑर्डर कैंसिल करने के बाद दोबारा से आदेश निकालने की बात कही. मंत्री जी अपने हिसाब से लोगों का चयन करेंगे. फिलहाल जितने भी डॉक्टर हैं, उन्हें सीएमएचओ द्वारा रिलीज नहीं किया गया है.

डॉ. प्रताप सिंह

सूत्रों के मुताबिक डॉक्टरों के अनुसार, जैसे ही यह मंत्री के संज्ञान में आया, आदेश को रोक दिया गया और संबंधित अस्पतालों के सीएमएचओ को जहां डॉक्टर तैनात थे, उन्हें फोन पर बताया गया कि उन्हें कार्यमुक्त नहीं किया जाना चाहिए। 
भोपाल गैस पीड़ितों की चिकित्सा सेवा में बाधक बन रहे गैस राहत अस्पतालों में बड़ी संख्या में रिक्त पदों को भरने के तरीके खोजने के लिए मप्र उच्च न्यायालय के आदेश पर अप्रैल 2024 में निगरानी समिति के साथ राज्य सरकार के शीर्ष अधिकारियों की बैठक के बाद स्वास्थ्य विभाग से गैस राहत विभाग में प्रतिनियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया था. बैठक में अधिकारियों ने समिति को आश्वासन दिया था कि डॉक्टरों के अधिकांश रिक्त पद प्रतिनियुक्ति के जरिए भरे जाएंगे और इसके बाद 16 मई को स्वास्थ्य विभाग से गैस राहत विभाग में प्रतिनियुक्ति के लिए डॉक्टरों के आवेदन मांगने के लिए विज्ञापन जारी किया गया. सरकार ने प्रतिनियुक्ति के लिए 125 पदों का विज्ञापन दिया था और केवल 15 ही मिल पाए और उस सूची को भी रोक दिया गया. दरअसल  यह मामला गैस पीड़ितों के स्वास्थ्य के प्रति ना सिर्फ सरकारी उदासीनता बल्कि अदालत के आदेश की अवमानना को भी बताता है. इस चिकित्सा मंत्री राजेन्द्र शुक्ल का कहना है कि गैस राहत अस्पतालों पर वे लगातार निगरानी करते हैं. वे कोशिश करेंगे कि दिक्कत ना हो. 

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