MP SIR Campaign: मध्य प्रदेश के आगर-मालवा जिले में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का काम इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. चार नवंबर से शुरू हुई यह प्रक्रिया तय समय में पूरी हो पाएगी या नहीं, यह बड़ा सवाल बन गया है. फील्ड में काम कर रहे बीएलओ पर काम का दबाव बढ़ गया है और ग्रामीण क्षेत्रों में तो हालत और भी खराब हो चुकी है. फॉर्म डिजिटाइजेशन की रफ्तार बेहद धीमी है, 15 दिन में सिर्फ 27% काम ही हो पाया है.
ग्रामीण इलाकों में सबसे ज्यादा दिक्कत
जिले के कई गांवों में हालात बेहद पेचीदा हैं. यहां घुमक्कड़ समाज के लोग ज्यादातर रोजगार के लिए बाहर रहते हैं, घरों में सिर्फ महिलाएं या बुजुर्ग ही मिलते हैं. न पढ़ना आता है, न लिखना. ऐसे में बीएलओ को फॉर्म भरवाना सबसे कठिन काम बन गया है. कई महिलाएं तो बीएलओ पर अपना गुस्सा निकाल देती हैं. लाडली बहना, आवास योजना, राशन कार्ड जैसी योजनाओं की शिकायतें सुनाने लगती हैं. बीएलओ की मुश्किल यह है कि उन्हें फॉर्म भी भरना है और दस्तावेज भी खुद जुटाने पड़ते हैं.
स्कूल छोड़कर घर-घर घूम रहे शिक्षक
जिन शिक्षकों को बीएलओ की ड्यूटी मिली है, उनकी परेशानी दोगुनी है. उनको स्कूल की पढ़ाई भी देखनी है और गांव-गांव जाकर फॉर्म भी भरना है. कई शिक्षक बताते हैं कि बच्चों की पढ़ाई पीछे छूट रही है, क्योंकि उनका अधिकांश समय घर-घर दस्तक देने में ही निकल रहा है.
NDTV ग्राउंड रिपोर्ट: बीएलओ की थकान और ग्रामीणों की नाराज़गी
NDTV टीम ने Ground Zero से पता लगाया कि देरी क्यों हो रही है? खेड़ा माधोपुर में बीएलओ मोहनसिंह यादव भारी झोले और फॉर्मों का गठ्ठर उठाए पथरीले रास्तों पर चढ़ते दिखे. जैसे ही वे एक घर पहुंचे, बुजुर्ग मांगीलाल को दस्तावेज देने को कहा गया तो उन्होंने असमर्थता जताई. घर की महिलाओं ने आधार और फोटो दिए, लेकिन समझ नहीं पा रही थीं कि आखिर यह सब हो क्यों रहा है.
कुछ ही पलों में आस-पास की महिलाएं इकट्ठा हो गईं और बीएलओ को सुनाने लगीं कि वोट तो हर बार डालते हैं, लेकिन आवास में नाम नहीं आता. लाडली बहना भी नहीं मिलती. बस वोट बनाने ही आ जाते हैं!”
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फोन है, पर ऑनलाइन फॉर्म भरना नहीं आता
गांव की करीब 20 साल की लड़कियां भी परेशान हैं. उनका कहना है कि आधार तो सबके पास है, लेकिन पुराने दस्तावेज नहीं हैं. फोटो खिंचवाने के लिए शहर जाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि “मोबाइल तो चलाना आता है, पर ऑनलाइन फॉर्म कैसे भरते हैं, यह नहीं पता. कोई बताता भी नहीं.” इस गांव में 650 मतदाताओं में से अभी तक सिर्फ 300 फॉर्म बांटे जा सके हैं और केवल 70 फॉर्म ही डिजिटाइज हो पाए.
शहरों में भी हालात ठीक नहीं
शहरी मतदाता भी उलझन में हैं. कई लोगों ने वोटर्स पोर्टल पर SIR फॉर्म अपलोड करके रसीद भी ले ली, लेकिन फिर भी उनसे बीएलओ ऑफलाइन फॉर्म भरवा रहे हैं. इससे समय और संसाधन दोनों की बर्बादी हो रही है.
कुछ लोगों ने तो ऐसी समस्याएं बताईं जिनका हल बीएलओ के पास भी नहीं था...
- कुछ का नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं मिल रहा
- कुछ की पारिवारिक मर्प्यताओं के कारण दस्तावेज उपलब्ध ही नहीं
- कुछ का नाम गलती से दूसरे जिले में मैप हो चुका है
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बीएलओ का दर्द: “अधिकारी केवल आदेश देते हैं”
एक बीएलओ ने NDTV को बताया कि “अधिकारी कहते हैं काम पूरा करो, लेकिन जमीनी कठिनाई को कोई नहीं समझता. गांव में न लोग पढ़े-लिखे हैं, न दस्तावेज़ जानते हैं. एक-एक फॉर्म भरने में घंटा लग जाता है. जब लोग दस्तावेज नहीं देते तो हमें कहना पड़ता है कि नाम हट सकता है, तब वे दस्तावेज लाते हैं.”
- सिर्फ 27.83% कार्य पूरा
- गुरुवार सुबह 10 बजे तक जिले में सिर्फ 27.83% फॉर्म डिजिटाइज हो पाए.
- कुल मतदाता: 4,77,558
- अब तक प्रोसेस किए गए फॉर्म: लगभग 1,38,000
यह आंकड़ा बताता है कि निर्वाचन कार्यालय के सामने लक्ष्य पूरा करना बड़ी चुनौती बन चुका है. अधिकारी काम की रफ्तार बढ़ाने के लिए बीएलओ पर दबाव डाल रहे हैं. इसी कारण सोमवार को SDM ने 70 बीएलओ को ‘कारण बताओ नोटिस' भी जारी किया.