MP School Teachers: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के 46 जिलों में 1,275 स्कूल बिना शिक्षक (Teachers) के हैं, जबकि 47 जिलों में 6,838 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक है. प्रदेश में 94,039 सरकारी स्कूल (Government School) हैं, इनमें से 36,059 सरप्लस शिक्षक शहरी क्षेत्रों में हैं. जबकि गांवों में स्कूल खाली हैं. ये आंकड़ें बताते हैं कि स्कूली शिक्षा के हाल बेहाल हैं. राजधानी भोपाल (Bhopal) के बड़वाई सरकारी स्कूल को ही देख लीजिए. यहां पहली से 5वीं तक 47 बच्चे हैं लेकिन शिक्षक एक ही हैं. एक बोर्ड में ही सभी विषयों की पढ़ाई होती है. वहीं डिंडौरी का अनोखा स्कूल भी हमने आपको दिखाया है, जहां प्रभारी प्राचार्य ही शिक्षक, बाबू और चपरासी भी है.
हमारा बड़ा सवाल, ऐसे में कैसे पढ़ेंगे नौनिहाल?
मध्यप्रदेश में नौनिहाल कैसे पढ़ेंगे? ये सवाल इसलिए क्योंकि मध्यप्रदेश के स्कूली शिक्षा के हाल बेहाल हैं दरअसल मध्यप्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों की कमी है जबकी शहरी क्षेत्रों में शिक्षकों की भरमार है हालत ये हैं कि प्रदेश के 6 हज़ार 798 स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे संचालित हो रहे हैं. राजधानी भोपाल के एक सरकारी स्कूल में पहली से 5वीं तक 47 बच्चे पढ़ते हैं. उन्हें पढ़ाने के लिये 2 शिक्षक थे. सरकार को लगा ये ज्यादा हो गया लिहाजा एक शिक्षक का ट्रांसफर कर दिया. एक बड़े से हॉल में पहली से पांचवी तक के बच्चे एक साथ पढ़ते है. एक ही बोर्ड में हिन्दी, अंग्रेजी, सामाजिक विज्ञान, गणित, विज्ञान सबकुछ पढ़ते हैं.
टीचर की समस्या भी सुनिए...
शिक्षिका सुनीता पाठक कहती हैं कि एक साथ पांच क्लास के बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल है. सबके अलग-अलग विषय हैं. बहुत समस्या है. टीचर ही नहीं रहेंगे तो बच्चे कैसे पढ़ेंगे? BLO की ड्यूटी भी हमारी ही है, चुनाव आयोग कहता है कि घर-घर सर्वे करो स्कूल शिक्षा विभाग कहता है स्कूल में पढ़ाइए. वहीं टीचर आनंद वाणी कहते हैं कि हमें अतिशेष घोषित कर दिया गया है, हमारे स्कूल में दो शिक्षक थे, मुझे अतिशेष घोषित करने से मैं दूसरी जगह चला जाऊंगा, यहां एक ही शिक्षक बचेंगे, सरकार के नियमों के अनुसार प्राइमरी में दो शिक्षक होने चाहिए, हमारे जाने से पढ़ाई व्यवस्था प्रभावित होगी. नियमानुसार अतिशेष की सूची से मेरा नाम हटना चाहिए.
ये हालत सिर्फ भोपाल के नहीं प्रदेश भर के हैं
ज्यादातर सरप्लस शहरी इलाकों में हैं, यानी गांवों में स्कूल खाली है जबकि शहरों में शिक्षकों की भरमार है. अब इन्हें काउंसलिंग के माध्यम से खाली स्कूलों में पदस्थ करने की तैयारी की जा रही है.
हमने डिंडौरी की खबर में आपको बताया था कि यहां प्रभारी प्राचार्य ही, बाबू हैं, शिक्षक हैं, चपरासी हैं और ये दसवीं तक के बच्चों को पढ़ाते हैं. अब आप समझ ही गए होंगे कि देश में अगर 65 लाख बच्चे बोर्ड परीक्षा पास नहीं कर पाते और उसमें मध्यप्रदेश अव्वल राज्यों में शुमार है तो क्यों?
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