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This Article is From Aug 03, 2023

क्या 'वोट फ्रॉम होम' वाले वोटर होंगे गेमचेंजर ? 12 लाख है ऐसे मतदाताओं की संख्या

12 लाख से ज्यादा ऐसे मतदाता हैं, जो गेमचेंजर हो सकते हैं. हर विधानसभा में ऐसे वोटरों की तादाद 7 से 8000 है. बता दें कि दिव्यांग और 80 साल से अधिक के मतदाताओं के लिये चुनाव आयोग ने वोट फ्रॉम होम की व्यवस्था पिछले उपचुनावों से ही कर दी थी. इस दफे राजनीतिक दल इन्हें लेकर खास रणनीति भी बना रहे हैं.

क्या 'वोट फ्रॉम होम' वाले वोटर होंगे गेमचेंजर ? 12 लाख है ऐसे मतदाताओं की संख्या

2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. इसके अलावा अहम ये भी है कि कुछ सीटें ऐसी थीं जो नतीजा तक बदल सकती थीं क्योंकि यहां हार जीत का अंतर 1000 वोटों से भी कम था. इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव हैं लेकिन इस बार एक फर्क है, 12 लाख से ज्यादा ऐसे मतदाता हैं, जो गेमचेंजर हो सकते हैं. हर विधानसभा में ऐसे वोटरों की तादाद 7 से 8000 है. बता दें कि दिव्यांग और 80 साल से अधिक के मतदाताओं के लिये चुनाव आयोग ने वोट फ्रॉम होम की व्यवस्था पिछले उपचुनावों से ही कर दी थी. इस दफे राजनीतिक दल इन्हें लेकर खास रणनीति भी बना रहे हैं.

12.10 लाख मतदाता चुनेंगे ये विकल्प 

 राज्य में कुल 12.10 लाख से अधिक मतदाता वोट फ्रॉम होम का विकल्प चुन सकते हैं, जिनमें 80 वर्ष से अधिक आयु के 7.30 लाख मतदाता और 4.80 लाख से अधिक दिव्यांग शामिल हैं. चुनाव घोषित होने के 5 दिन के अंदर इनसे फॉर्म 12 डी भरवाया जाएगा. चुनाव की तारीख से 7 दिन पहले पोलिंग अफसर इनके घर पहुंचेंगे और बैलेट के जरिये ये वोट डाल सकेंगे, पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होगी.  

यदि वो विकल्प चुनते हैं कि घर से मतदान करना है तो घर से मतदान कर सकते हैं. 1 सप्ताह पहले बैलट से मतदान करवाया जाता है. हम एक पोलिंग पार्टी का गठन करते हैं जो घर से मतदान कराती है और तमाम प्रक्रिया का पालन करती है.

अनुपम राजन

मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी

राजन के मुताबिक वे बिल्कुल न्यूट्रल माहौल में पारदर्शी तरीके इस मतदान को अंजाम देते हैं जो पोस्टल बैलेट है उसे स्ट्रॉग रूम में रखते हैं मतगणना के दिन ही उसे निकाला जाता है.
       

मध्यप्रदेश में फिलहाल 5.41 करोड़ से अधिक मतदाता हैं, जिनमें 2.80 करोड़ से अधिक पुरुष और 2.61 करोड़ से अधिक महिला मतदाताओं के अलावा 1257 तीसरे लिंग के मतदाता शामिल हैं. 80 वर्ष से अधिक आयु वाले मतदाता लगभग 1.35 प्रतिशत और दिव्यांग मतदाताओं का प्रतिशत 0.89% है.

साल के अंत में विधानसभा चुनाव हैं, ऐसे में सारे राजनीतिक दलों की निगाहें इन्हें साधने में हैं लेकिन विपक्ष इस प्रक्रिया को शक और सवाल से भी देख रहा है.

क्या कहते हैं सियासी दल?

कांग्रेस के युवा प्रवक्ता आनंद जाट कहते हैं मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिये चुनाव आयोग लगातार प्रयास कर रहा है लेकिन जो नई व्यवस्था दी गई है उसमें एक हफ्ते पहले दिव्यांग और बुजुर्ग वोट डाल सकेंगे. ऐसे में मैं मानता हूं कि चुनाव आयोग को ये सुनिश्चित करना चाहिये कि सत्ताधारी दल को इसका लाभ ना मिले और कोई बेईमानी ना हो.
   वहीं बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल का कहना है बीजेपी अपने किये गये कामों पर, अपनी संगठानात्मक क्षमता पर जनता के बीच जाती है उनसे आशिर्वाद लेती है, कांग्रेस अपनी प्रत्याशित हार का ठीकरा कैसे फोड़ा जाए इसकी स्क्रिप्ट पहले से ही लिखना प्रारंभ करती है. चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है. कैसे चुनाव का प्रतिशत बढ़े अपने मताधिकार का लोग प्रयोग करें इसके लिये वो प्रयासरत रहती है. उन्होंने कहा कि बीजेपी हर उस फैसले से सहमत है जिनसे मतदान का प्रतिशत बढ़े लेकिन कांग्रेस अपनी प्रत्याशित हार के कारण निरंतर ईवीएम और चुनाव आयोग पर दोष लगाती रहती है.

ये सीटें बढ़ाएंगी धड़कन

राजनीतिक दलों की फिक्र की एक वजह लगभग 25 ऐसी सीटें भी हैं जहां जीत-हार का अंतर काफी कम रहा है. दरअसल 2018 विधानसभा चुनावों में 10 सीटों पर जीत का अंतर 1000 से भी कम था इसमें 7 कांग्रेस ने जीतीं.

 

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                आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो  कम से कम 15 सीटें बीजेपी 5000 से कम वोटों से हारी. मध्य प्रदेश में विधानसभा की 230 सीटें हैं, 2018 में बीजेपी को 109, कांग्रेस को 114 जबकि अन्य को 7 सीटें मिलीं, बीजेपी को 41.02 प्रतिशत और कांग्रेस को 40.89 प्रतिशत वोट मिले थे, कोई भी दल बहुमत का आंकड़ा छू नहीं पाया था.

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