![वाह रे मोहन सरकार! नारा लगाया स्कूल चलो का और चुपके-चुपके बंद कर दिए इतने स्कूल वाह रे मोहन सरकार! नारा लगाया स्कूल चलो का और चुपके-चुपके बंद कर दिए इतने स्कूल](https://c.ndtvimg.com/2024-02/99u1nlfo_madhya-pradesh-school-education-departmnet_625x300_28_February_24.jpg?downsize=773:435)
Madhya Pradesh School education departmnet: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के जबलपुर (Jabalpur) में स्कूल शिक्षा विभाग (Chool Education Department) की बड़ी नाकामी देखने को मिल रही है. यहां स्कूल शिक्षा विभाग ने 10 सरकारी स्कूल बंद कर दिए हैं और 72 स्कूलों के ऊपर तालाबंदी की तलवार लटकी हुई है. विभाग का कहना है कि अगर इन स्कूलों में छात्रों की संख्या कम पाई जाती है, तो ये स्कूल भी बंद कर दिए जाएंगे. बताया जाता है कि जिन स्कूलों को बंद किया गया है, उन स्कूलों में एक भी छात्र नहीं थे. ऐसे में सवाल पैदा होता है कि स्कूलों में छात्रों को दाखिले के लिए प्रोत्साहित करने और स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने के बजाय स्कूलों को ही बंद करना कितना उचित है.
जिला शिक्षा के अधिकारी घनश्याम सोनी के मुताबिक, बंद किए गए सभी 10 स्कूलों में एक भी छात्र के नाम दर्ज नहीं थे. वहीं, बंद किए जाने वाली सूची में 72 वे स्कूल हैं, जिन पर छात्रों संख्या बहुत ही कम है. ऐसे में विभाग इन स्कूलों को भी बंद कर उनके शिक्षकों को कहीं और स्थानांतरित करने की योजना पर काम कर रहा है. जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम सोनी ने बताया कि स्कूलों की सर्वेक्षण रिपोर्ट भोपाल भेजी जाएगी, भोपाल से अंतिम निर्णय के बाद बंद करने की कार्रवाई की जाएगी. अगर विभाग से सहमति मिल गई, तो सभी 72 स्कूल के निरीक्षण के बाद यह फैला लिया जाएगा कि इन स्कूलों को बंद करना है या नहीं.
छात्रों की घटती संख्या का भी लगाया जा रहा पता
जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम सोनी कहते हैं कि स्कूलों में छात्र संख्या कम होने के कारणों का भी पता किया जा रहा है. इन स्कूलों में अधिकतर स्कूल ग्रामीण क्षेत्र के हैं. जिला शिक्षा अधिकारी का तर्क है कि पलायन के कारण बच्चे काम हो गए हैं. हालांकि, वह इस बात का जवाब नहीं दे पाए कि आखिर इन स्कूलों में छात्रों की संख्या इतनी कम कैसे हो गई. इतने लोगों का पलायन कैसे हो गया कि पूर्व में बढ़ाई गई स्कूल ही अब खाली हो गए, जबकि जनसंख्या भी बढ़ी है और पढ़ने वाले बच्चों की संख्या के आंकड़ों में वृद्धि हुई है.
स्कूलों की जर्जर हालत है जिम्मेदार
वहीं, इस मामले में जब ग्रामीणों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि सरकारी स्कूलों के भवन आज भी छप्पर वाले हैं. उनमें से ज्यादातर की हालत जर्जर हो चुकी है, जिससे किसी भी अनहोनी होने का डर लगा रहता है. वहीं, शिक्षकों की कमी और खराब माहौल की वजह से अभिभावक सरकारी स्कूल में अपने बच्चों का दाखिला नहीं कराने से बच रहे हैं. वे अपने बच्चों को आसपास के निजी स्कूलों में दाखिला दिला रहे हैं. सरकारी स्कूलों में लगातार शून्य हो रहे दाखिले शिक्षा विभाग की नाकामी को उजागर कर रहे हैं. दरअसल, लोगों के दिलो-दिमाग में ये बात बैठ गई है कि सरकारी स्कूल अच्छी शिक्षा प्रदान नहीं कर रहे हैं, जिसकी वजह से वे अपने बच्चों को इन स्कूलों में दाखिला नहीं करा रहे हैं, जिससे सरकारी स्कूल व्यवस्था ही चरमराती जा रही है.
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स्कूल चलो अभियान की उड़ रही है धज्जियां
इसके साथ ही सरकार की ओर से चलाए जा रहे स्कूल चलो अभियान भी पूरी तरह से नाकाम होता दिखाई दे रहा है. एक तरफ सरकार कहती है कि हमें ज्यादा से ज्यादा बच्चों को स्कूल तक लाना है. वहीं, दूसरी तरफ सरकार ही स्कूलों को बंद कर रही है या फिर मर्ज कर रही है , जो सरकार की बहुत बड़ी नाकामी है.
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