![MPPSC में संशोधन को चुनौती देने पर हाईकोर्ट की नाराजगी, कहा- 'कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं', लगाया जुर्माना MPPSC में संशोधन को चुनौती देने पर हाईकोर्ट की नाराजगी, कहा- 'कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं', लगाया जुर्माना](https://c.ndtvimg.com/2024-02/i9l9qnlg_jabalpur-high-court_625x300_09_February_24.jpg?downsize=773:435)
Jabalpur News: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के जबलपुर हाईकोर्ट (Jabalpur High Court) ने ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) से संबंधित एक मामले में सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता पर 20 हजार रुपये की जुर्माना लगाया है. दरअसल, याचिकाकर्ता ने मध्य प्रदेश राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 (MPPSC) में राज्य शासन द्वारा किए गए संशोधन को चुनौती देते हुए लगाई गई याचिका के मामले में आवेदन प्रस्तुत किया था. साथ ही उसने याचिका में कहा था कि आरक्षित वर्ग के मैरिटोरियस अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में सम्मिलित करने से रोका जाए.
हाईकोर्ट ने पुन: आवेदन पेश करने पर जताई नाराजगी
बीते साल सितम्बर महीने में अदालत ने आवेदन खारिज कर दिया. जिसके बाद याचिकाकर्ता ने दिसंबर में पुनः समान मांग वाला आवेदन प्रस्तुत किया. वहीं हाईकोर्ट ने समान रिलीफ वाला आवेदन निरस्त करने के बाद दूसरा आवेदन पेश करने पर नाराजगी जताई है.
जानें क्या है पूरा मामला
जबलपुर निवासी भानू प्रताप सिंह ने पिछले साल याचिका दायर कर मांग की थी कि आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को पीएससी की प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में अनारक्षित वर्ग में शामिल नहीं किया जाए. राज्य सेवा परीक्षा नियमों में मध्य प्रदेश शासन ने पूर्व की सरकार द्वारा 17 फरवरी, 2020 किए गए संशोधन को निरस्त करके 20 दिसंबर 2021 को पुन: संशोधन किया था. जिसके तहत चयन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में अनारक्षित पदों को सभी वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों से भरे जाने की व्यवस्था पुनः स्थापित की गई. ये नियम पीएससी 2019 से 2023 तक की समस्त भर्ती परीक्षाओं में लागू किया जा चुका है. याचिकाकर्ता ने इसी मामले में चुनौती दी थी.
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हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर सरकार और पीएससी से मांगा था जवाब
इस मामले में हाईकोर्ट ने 27 अप्रैल, 2023 को नोटिस जारी करके सरकार और पीएससी से जवाब मांगा था. इसी बीच ओबीसी, एससीएसटी एकता मंच व अन्य को इस मामले में अनावेदक बनाया गया. याचिकाकर्ता ने पूर्व में एक आवेदन देकर मांग की थी कि आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में शामिल करने से रोका जाए. कोर्ट ने 23 सितंबर को आवेदन निरस्त कर दिया. इसके बाद याचिकाकर्ता ने 26 दिसंबर को पुन: समान मांग के लिए आवेदन पेश कर दिया. जिस पर अनावेदकों की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने आपत्ति पेश की. इसके बाद अदालत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ता पर 20 हजार की कॉस्ट के साथ आवेदन निरस्त कर दिया.
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