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जज्बे को सलाम: दोनों हाथ नहीं होने पर भी नहीं हारी हिम्मत, पैरों से लिखकर डिप्टी कलेक्टर बनने का है सपना

जागेश्वरी गर्ग का सपना है कि वह डिप्टी कलेक्टर बने. इस दिशा में उनकी मदद के लिए शैलेंद्र तिवारी की मंत्र अकैडमी ने उन्हें नि:शुल्क कोचिंग प्रदान की है, ताकि वह एमपी पीएएससी परीक्षा की तैयारी कर अपने लक्ष्य को हासिल कर सकें.

जज्बे को सलाम: दोनों हाथ नहीं होने पर भी नहीं हारी हिम्मत, पैरों से लिखकर डिप्टी कलेक्टर बनने का है सपना

Sagar News: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के बुंदेलखंड (Bundelkhand) क्षेत्र के सागर जिले के नादन गांव की रहने वाली जागेश्वरी गर्ग ()Jageshwari Garg ने अपने बुलंद हौसलों और मेहनत के दम पर डॉ. हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय में बीए द्वितीय वर्ष में प्रवेश लिया है. जन्म से ही दोनों हाथों से दिव्यांग जागेश्वरी अपने पैरों से लिखती हैं और अपने सपनों को साकार करने के लिए लगातार संघर्ष कर रही हैं.

आर्थिक संघर्ष और सामाजिक मदद

जागेश्वरी के पिता शालिकराम मंदिर के पुजारी हैं और परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है. ऐसे में जागेश्वरी की पढ़ाई और उनके सपनों को पूरा करने में समाज सेवक भरत तिवारी फरिश्ता बनकर सामने आए. उन्होंने जागेश्वरी की अब तक की पढ़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. भरत तिवारी ने जागेश्वरी की साल भर का मकान का किराया करीब 22,000 रुपये जमा किया, जिससे वह अपने रहने की व्यवस्था कर सकें.

डिप्टी कलेक्टर बनने का है सपना

जागेश्वरी गर्ग का सपना है कि वह डिप्टी कलेक्टर बने. इस दिशा में उनकी मदद के लिए शैलेंद्र तिवारी की मंत्र अकैडमी ने उन्हें नि:शुल्क कोचिंग प्रदान की है, ताकि वह एमपी पीएएससी परीक्षा की तैयारी कर अपने लक्ष्य को हासिल कर सकें.

मां का समर्थन और समाज की अपेक्षाएं

जागेश्वरी की मां आरती, अपनी बेटी के संघर्ष की कहानी बताते हुए कहती हैं कि जागेश्वरी का नाम भगवान जगन्नाथ के नाम पर रखा गया है, क्योंकि भगवान जगन्नाथ के भी हाथ नहीं थे. हमारी बेटी बचपन से ही बिना हाथों के है, लेकिन उसने हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहने का प्रयास किया है. आरती ने समाज से अपील की है कि उनकी बेटी के भविष्य के लिए सब मिलकर मदद करें, ताकि वह डिप्टी कलेक्टर बन सके और समाज के प्रति अपने दायित्वों को निभा सके.

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सरकार से उम्मीदें

जागेश्वरी और उनका परिवार सरकार से अपील करता है कि दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए ऐसी योजनाएं चलाएं, जिससे उनकी माताएं भी हॉस्टल में रह सकें. जागेश्वरी जैसी छात्राओं को सहारा और समर्थन की आवश्यकता होती है, ताकि वे अपने सपनों को साकार कर सकें.

जागेश्वरी गर्ग की कहानी न सिर्फ एक प्रेरणा है. बल्कि यह दिखाता है कि मेहनत और हौसलों के सामने कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती. बशर्ते कि समाज और सरकार सहयोग करे. 

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