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Bijapur News: जब किसी ने नहीं सुनी फरियाद, तो गरीब आदिवासियों ने तेल और मसाले के पैसे से तान दी जुगाड़ की पुलिया

Bijapur Latest News: जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर एरामगी में 20 साल पहले PMGSY विभाग द्वारा गुदमा और एरामंगी गांव को जोड़ने वाली प्रमुख सड़क के निर्माण के साथ ही बीच में बहने वाले बरसाती नाले पर  पुलिया का निर्माण किया गया था. दो साल पहले भारी बारिश और बाढ़ के कारण पुलिया टूट गई. दो सालों से ग्रामीण विधायक, कलेक्टर और जिला पंचायत CEO और PMGSY विभाग से नए पुल के निर्माण की मांग करते आ रहे हैं. बावजूद इसके इनकी फरियाद किसी ने नहीं सुनी.

Bijapur News: जब किसी ने नहीं सुनी फरियाद, तो गरीब आदिवासियों ने तेल और मसाले के पैसे से तान दी जुगाड़ की पुलिया

Recent Bijapur News: एक तरफ देश चांद पर अपना परचम लहरा रहा है, तो दूसरी तरफ नक्सल हिंसा (Naxal Violence) से जूझ रहे बस्तर (Bastar) के सुदूर इलाकों में आदिवासियों पर सिस्टम की बेरुखी सितम ढा रही है. कुछ दिनों पहले बीजापुर (Bijapur) जिले के धनगोल गांव से सिस्टम को मुंह चिढ़ाती एक तस्वीर निकल कर आई थी. जहां सिस्टम की बेरुखी से निराश हो कर ग्रामीणों ने ताड़ के तनों से जुगाड़ की पुलिया तान दी थी.

अपनी खामियों को सरकार प्रशासन सुधार पाता कि धनगोल की तरह मिलती जुलती एक और तस्वीर छत्तीसगढ़ के बीजापुर के एरामंगी गांव से उभरकर आई है, जो न सिर्फ सिस्टम को मुंह चिढ़ा रही है, बल्कि नक्सल इलाको में सरकार के विकास के दावों की पोल भी खोल रही है.

आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला

यहां भी कहानी वही है, बदल गए तो बस बेबस ग्रामीणों के चेहरे, जो बीते एक साल से एक अदद पुलिया की मांग करते-करते थक चुके हैं. ऐसा नहीं कि समस्या पर किसी का ध्यान नहीं गया. गांव वालों के मुताबिक सिस्टम के दायरे में रहकर उनसे जो हो पाया उन्होंने किया. अर्जियां लगाई, मंदिर के भूमिपूजन के लिए इसी रास्ते विधायक का काफिला भी गुजरा,  उनसे भी गुहार लगाई. मगर धनगोल के बाशिंदों की तरह इनके हिस्से में भी बस आश्वासन ही आया. सिस्टम के सताए ग्रामीण करते भी तो क्या. बारिश शुरू हो चुकी है. बीजापुर में मूसलाधार बारिश जारी है. पिछली बारिश में जो थोड़ी बहुत मरम्मत से जुगाड़ जमाई थी, उसे भी पानी बहा ले गया.

किसी ने नहीं सुनी फरियाद

दरअसल,  जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर एरामगी में 20 साल पहले PMGSY विभाग द्वारा गुदमा और एरामंगी गांव को जोड़ने वाली प्रमुख सड़क के निर्माण के साथ ही बीच में बहने वाले बरसाती नाले पर  पुलिया का निर्माण किया गया था. दो साल पहले भारी बारिश और बाढ़ के कारण पुलिया टूट गई. दो सालों से ग्रामीण विधायक, कलेक्टर और जिला पंचायत CEO और PMGSY विभाग से नए पुल के निर्माण की मांग करते आ रहे हैं. बावजूद इसके इनकी फरियाद किसी ने नहीं सुनी.

महिला, पुरुष व बच्चों ने मिलकर बनाई पुलिया

आखिरकार बदहाली से त्रस्त होकर ग्रामीणों ने क्षमतानुसार 100 से 500 रुपये चंदा इकट्ठा कर ट्रैक्टर और डोजर गाड़ी किराए पर लेकर दो दिन में एक लकड़ी की पुलिया बना डाली. जिसमें गांव के पुरषों के साथ महिलाएं और स्कूली बच्चों ने भी अपना पसीना बहाया.

ऐसे बनाई जुगाड़ की पुलिया

पुलिया के अभाव में मूसलाधार बारिश में बच्चों का स्कूल जाना दूभर था. मरीज को लेने गांव तक एंबुलेंस नहीं आ सकती थी. हाट बाजार जाना और राशन लाना तक दूभर हो गया था. लिहाजा, परेशानियों से निजात पाने के लिए आखिरकार ग्रामीणों ने खुद को सिस्टम के हाल पर छोड़ने की बजाय अपना हाथ जगन्नाथ समझा. फिर क्या था, जंगल से पेड़ों के गोले काट लाए और श्रमदान से 48 घंटे में ही जुगाड़ की पुलिया तान दी.

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 ऐसा कर ग्रामीणों ने जहां एक मिसाल पेश की है. वहीं, जुगाड की जद्दोजहद के बीच ऐसी मार्मिक बातें भी निकलकर सामने आई है, जिसे सुनकर कलेजा पसीज जाएगा. दरअसल, जुगाड़ की पुलिया बनाने के लिए गांव वालों ने मिलकर चंदा किया. जो सक्षम थे, उन्होंने 500 रुपये दिए. मगर मेहनत मजदूरी से दो जून की रोटी जुगाड़ने वाले ऐसे परिवारों ने भी 100 रुपये का आर्थिक सहयोग किया, जिनके लिए 100 रुपये भी बहुत बड़ी रकम थी. 100 रुपये से इनके हफ्ते भर का गुजारा निकलता था. जिस पैसे से इनके तेल मसाले का जुगाड़ हो जाता था, उन्हीं पैसों से अब जुगाड़ की पुलिया बनाई.

हालांकि, तमाम कठिनाइयों के बाद भी ग्रामीणों को इस बात की तसल्ली है कि पुलिया पक्की न सही मगर बरसात में उन्हें थोड़ी राहत की उम्मीद जरूर है.

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