Fake Caste Certificate: मध्य प्रदेश में फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र से नौकरियां पाने के बाद अब फर्जी जाति प्रमाण पत्र से सरकारी नौकरी पाने का जिन्न बाहर निकलकर आया है. अभी राज्य में पुलिस और एसएएफ में काम कर रहे 200 से ज्यादा जवान ऐसे है जिनकी नौकरी फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर लगी है. सबसे चिंता की बात ये है कि पुलिस और प्रशासन दोनों को पता है कि ये फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी कर रहे हैं, लेकिन दोनों की लापरवाही के चलते न्यायालय से इन मामलों में मिला स्थगन आदेश खत्म नहीं हो पा रहा है और उनकी नौकरी बदस्तूर जारी है.
अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र संदेह के घेरे में
प्रधान आरक्षक रामसिंह मांझी वर्तमान में दतिया के पुलिस थाना बड़ौनी में पदस्थ हैं. आरक्षक धर्मेंद्र मांझी स्पेशल ब्रांच (अशोकनगर) में सेवाएं दे रहे हैं. ये नाम केवल उदाहरण है, जबकि हकीकत में मप्र पुलिस और एसएएफ में ऐसे 200 से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी कार्यरत हैं. जिनके अनुसूचित जनजाति के प्रमाण पत्र संदेह के घेरे में हैं.
2019 में हाई कोर्ट में याचिका दायर हुई थी
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, रामसिंह और धर्मेंद्र सहित 10 लोगों के खिलाफ फर्जी जाति प्रमाण पत्र (एसटी) के मामले में मार्च 2019 में एफआईआर दर्ज हुई थी. इन सभी के खिलाफ अप्रैल 2019 में हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई. हालांकि पहली ही सुनवाई में सभी को फौरी राहत मिल गई. हाई कोर्ट में सुनवाई के 5 साल बीतने के बाद भी जांच एजेंसी स्टे नहीं हटवा सकीं. नतीजा मामले में अभी तक फैसला नहीं हो सका. हालांकि तब से इन सभी का प्रमोशन रुका हुआ है.
जिन पर आरोप वे एसएएफ और मप्र पुलिस में दे रहे सेवाएं
प्रहलाद सिंह मांझी (प्रधान आरक्षक-13वीं बटालियन), रामसिंह मांझी (प्रधान आरक्षक- जिला पुलिस बल दतिया), धर्मेंद्र मांझी (आरक्षक - जिला पुलिस बल मुरैना), मोनू मांझी (आरक्षक, जिला पुलिस बल भिंड), अनिल मांझी (आरक्षक, जिला पुलिस बल सिंगरौली), रविकांत कुमार मांझी (मप्र पुलिस), राजेश मांझी (एसएएफ), बसंत कुमार मांझी (एसएएफ), धर्मेंद्र मांझी (मप्र पुलिस मुरैना), महेश मांझी (मप्र पुलिस भिंड).
फर्जी बाड़ा का ऐसे हुआ खुलासा
दरअसल, टिहौली के कई युवकों द्वारा अनुसूचित जनजाति का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाने की शिकायत ग्वालियर निवासी गोविंद पाठक नामक व्यक्ति ने की थी. उन्होंने शिकायत में दावा किया था कि ये युवक भोई और बाथम जाति के हैं और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) से आते हैं. शिकायत दर्ज होने के बाद आरोप की जांच हुई, जिसमें कुल 10 युवकों के प्रमाण पत्र प्रथम दृष्टया फर्जी पाए गए. इसके आधार पर पुलिस थाना सीआईडी मुख्यालय में 13 मार्च 2019 को धोखाधड़ी, कूटरचित दस्तावेज तैयार करने सहित अन्य धाराओं में प्रकरण दर्ज किया गया.
इसके अलावा ग्वालियर के तत्कालीन एसडीएम (लश्कर) के पास फर्जी अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र को लेकर शिकायत की गई थी.आवेदन में दी गई जानकारी की पुष्टि के संबंध में एसडीएम ने कर्मचारी रमेश श्रीवास को नोटिस जारी किया और 11 लोगों के जाति प्रमाण पत्र के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा. वहीं रिकॉर्ड जांच किया गया तो आरोप सही पाए गए. इसके बाद इन पर एफआईआर दर्ज की गई.
इस मामले में कर्मचारी ने कहा कि वह 6 साल पूर्व रिटायर हो चुका है और दायरा पंजी में एंट्री उनके द्वारा नहीं की गई. इस आधार पर एसडीएम ने प्रमाण पत्र निरस्त करने सिफारिश की थी.
पिता के खिलाफ कार्रवाई के बाद भी बेटी का बना एसटी प्रमाण पत्र
अशोक मांझी के खिलाफ फर्जी जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने संबंधी शिकायत की गई थी. उनके जवाब नहीं देने पर एकपक्षीय कार्रवाई करते हुए मप्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड ने उन्हें सदस्य, मंडी समिति ( लश्कर) के कृषक सदस्य पद से सितंबर 2010 में हटा दिया. हालांकि 9 जुलाई 2019 को अशोक मांझी की बेटी राशि का अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र तत्कालीन एसडीएम (गिर्द) ने जारी कर दिया.
कलेक्टर ने जाति प्रमाण पत्र से संबंधित दस्तावेज मांगे
मगरौनी (हरसी) स्थित पोस्ट ऑफिस में पदस्थ आरती मांझी का जाति प्रमाण पत्र भी सवालों के घेरे में हैं. उनके प्रमाण पत्र के संबंध में भी शिकायत हुई है. कलेक्टर ग्वालियर ने आरोप को गंभीरता से लेते हुए संबंधित प्रकरण से जुड़े दस्तावेज तलब किए हैं.
प्रमाण पत्र पर सवाल फिर भी नौकरी कायम
मप्र पुलिस में कार्यरत गीतिका बाथम का प्रमाण पत्र भी सवालों के घेरे में हैं. 16 अप्रैल, 2018 को अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व), ग्वालियर ने मुरैना एसपी को लिखे पत्र में बताया कि गीतिका बाथम निवासी रमटापुरा, ग्वालियर का जाति प्रमाण पत्र रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है. वो अभी भी नौकरी कर रही हैं.
ये भी पढ़े: MP में कमाल का किसान! अपने खेत को बना दिया टूरिस्ट स्पॉट, देखने की फीस 50 रु. और वीडियोग्राफी के 21 सौ रुपये
इस मामले में कलेक्टर ग्वालियर का कहना है कि मामले की जानकारी लेने बाद आगे की कार्रवाई होगी. फिलहाल एसटी प्रमाण पत्र नहीं बनाए जा रहे हैं. जांच के बाद ही इस संबंध में कुछ कहा जा सकता है.
वहीं ग्वालियर जोन के आईजी अरविंद सक्सेना का कहना है कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र का मामला सामने आया था. एफआईआर भी दर्ज हुई है, लेकिन लोग कोर्ट से स्टे ले आये. अब इस मामले में जल्द सुनवाई की अर्जी देंगे. कुछ पुलिसकर्मियों ने शिकायतों पर हाई कोर्ट से स्टे प्राप्त किया है.