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MP: वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में बसेंगे चीते ! बाघ-तेंदुआ भी साथ, 15 साल पुराना सपना होगा साकार

Tiger Reserve Sagar: सागर देश का पहला टाइगर रिजर्व होगा, जहां बाघ, तेंदुआ और चीते एक साथ रहेंगे. दरअसल, नामीबिया, बोत्सवाना और दक्षिण अफ्रीका से ‘चीता मेटा पॉपुलेशन प्रोजेक्ट’ के तहत कुछ और चीते भारत लाए जाएंगे और उन्हें नौरादेही सहित चिन्हित क्षेत्रों में बसाया जाएगा.

MP: वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में बसेंगे चीते ! बाघ-तेंदुआ भी साथ, 15 साल पुराना सपना होगा साकार

Virangana Rani Durgavati Tiger Reserve Sagar: मध्य प्रदेश के सागर जिले स्थित वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व (पूर्व में नौरादेही) में अब चीते भी नजर आएंगे. करीब 15 साल पहले तैयार की गई चीता बसाहट की योजना अब मूर्त रूप लेती नजर आ रही है. भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) देहरादून ने गुजरात के बन्नी ग्रासलैंड रिजर्व के साथ सागर के इस टाइगर रिजर्व को चीता परियोजना के लिए उपयुक्त स्थल के रूप में चुना है.

WII, देश में चीता प्रोजेक्ट की नोडल एजेंसी है और माना जा रहा है कि आगामी वर्ष तक यहां चीते शिफ्ट कर दिए जाएंगे. यदि ऐसा होता है तो यह देश का पहला वन्यजीव क्षेत्र होगा, जहां बिग कैट फैमिली के तीन सदस्य- बाघ, तेंदुआ और चीता  एक साथ देखे जा सकेंगे. वर्तमान में रिजर्व में बाघ और तेंदुए पहले से ही मौजूद हैं.

2010 में हुआ था पहला सर्वे

डब्ल्यूआईआई ने सबसे पहले वर्ष 2010 में नौरादेही को चीता बसाहट के लिए उपयुक्त माना था. उस समय मुहली, सिंहपुर और झापन रेंज को चीता के रहवास के लिए आदर्श पाया गया था. इन तीनों रेंज का कुल क्षेत्रफल लगभग 600 वर्ग किमी है, जबकि पूरे रिजर्व का क्षेत्रफल 2339 वर्ग किमी है.

मैदानी मुआयना और तैयारियां शुरू

सूत्रों के अनुसार, हाल ही में एनटीसीए (राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण) के डीआईजी डॉ. वीबी माथुर और WII के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने टाइगर रिजर्व का दो दिवसीय दौरा कर डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एए अंसारी के साथ संभावित रेंजों का मैदानी मुआयना किया. विशेषज्ञों का मानना है कि यहां के खुले मैदान और पर्यावरण चीता के लिए बेहद अनुकूल हैं.

क्या बाघ-तेंदुए के बीच जीवित रह पाएगा चीता?

वन्यजीव विशेषज्ञों के बीच यह सवाल लंबे समय से उठता रहा है कि जहां पहले से बाघ और तेंदुए हों, वहां क्या चीता जीवित रह पाएगा? जानकारों का कहना है कि यह संभव है, क्योंकि तीनों प्रजातियों के शिकार करने की शैली और पसंद अलग-अलग होती है.

बाघ-  नीलगाय, भैंसा और बड़े हिरण प्रजाति का शिकार करता है.

तेंदुआ- जंगली सुअर, नीलगाय के बच्चे और मध्यम आकार के जानवरों को निशाना बनाता है.

चीता- चीतल, काला हिरण और खरगोश जैसे छोटे और तेज दौड़ने वाले जीवों का शिकार करता है. वहीं चीता आमतौर पर बाघ और तेंदुए से दूरी बनाए रखता है, जैसा कि तेंदुआ बाघ के साथ करता है.

सुरक्षा और विस्थापन बड़ा मुद्दा

चीतों की बसाहट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स में से एक है. ऐसे में इनकी सुरक्षा और संरक्षण सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी. हालांकि टाइगर रिजर्व में अभी भी कुछ गांवों का विस्थापन होना बाकी है. इनमें सबसे बड़ा गांव मुहली है, जिसकी आबादी करीब 1500 है. अन्य रेंजों में भी कुछ गांव स्थित हैं. सूत्रों के अनुसार इन गांवों के विस्थापन में करीब 200 करोड़ रुपये की लागत आएगी.

75 साल बाद हो रही वापसी

भारत में कभी चीतों की आबादी मध्य प्रदेश से लेकर दिल्ली और पंजाब तक फैली हुई थी, लेकिन अत्यधिक शिकार के कारण यह प्रजाति विलुप्त हो गई. वर्ष 1952 में कोरिया रियासत के राजा द्वारा अंतिम चीता मारे जाने के बाद यह जीव भारत से पूरी तरह समाप्त हो गया. अब लगभग 75 साल बाद देश में चीता की वापसी हो रही है.

WII के अनुसार, नामीबिया, बोत्सवाना और दक्षिण अफ्रीका से ‘चीता मेटा पॉपुलेशन प्रोजेक्ट' के तहत कुछ और चीते भारत लाए जाएंगे और उन्हें नौरादेही सहित चिन्हित क्षेत्रों में बसाया जाएगा.

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