
पर्यावरण को साफ-सुथरा बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले गिद्धों के लिए सतना की आबोहवा अनुकूल हो रही है. एक दौर में विलुप्त होने की कगार पर जा पहुंचे गिद्धों की संख्या में इस बार बड़ा इजाफा देखने को मिला है. मध्य प्रदेश में साल 2023-24 में की गई गिद्धों की गिनती के सर्वे में सतना जिले की सीमा में गिद्धों के कुल पचास आश्रम मिले और संख्या 1200 तक पहुंच गई. पिछली गिनती में सतना जिले में गिद्धों की संख्या सिर्फ 208 थी. तेजी से बढ़ती गिद्धों की संख्या से वन विभाग सहित पर्यावरण प्रेमी में काफी खुश नजर आ रहे हैं. वन मंडल अधिकारी सतना के निर्देश पर जिले के आठ रेंज अफसरों ने तीन दिनों तक गिद्धों की गिनती की. इस दौरान बरौंधा रेंज में सबसे अधिक गिद्ध पाए गए. जबकि आश्रय स्थल के मामले में सिंहपुर रेज जिले में टॉप पर रहा.
नागौद, मैहर और मझगवां की हालत पतली
वन विभाग की टीम के की तरफ से किए गए सर्वे के मुताबिक सबसे ज़्यादा गिद्ध बरौंधा रेंज में पाए गए हैं... जो कि 13 अवस्यक और 452 वयस्क हैं. इसके बाद चित्रकूट में 57 अवस्यक 251 वस्यक, मझगवां में 06 अवस्यक और 0 वस्यक, अमरपाटन में 17 अवस्यक 167 वस्यक, सिंहपुर में 21 अवस्यक 84 वस्यक, उचेहरा 00 अवस्यक 115 वस्यक , मैहर 00 अवस्यक 05 वस्यक और नागौद 00 अवस्यक 02 वस्यक गिद्ध मिले. यहां नागौद, मैहर और मझगवां की हालत बेहद कमजोर दिखाई दी. यदि आश्रय की बात करें तो जिले में कुल 50 स्थल हैं. जिसमें सबसे अधिक 23 सिंहपुर रेंज में हैं. वहीं बरौंधा में 8, चित्रकूट में 9, मझगवां में 4, अमरपाटन में 3, उचेहरा में 1, मैहर में 3 और नागौद में शून्य है.
प्रदेश भर में गिद्धों को लेकर हुई गिनती
जानकारी के लिए बता दें कि वन विभाग की तरफ से प्रदेश भर में गिद्धों की गिनती की गई है. यह सर्वे हर दूसरे साल कराया जाता है. दो साल पहले यानी कि 2021-22 में गिद्धों की गिनती कराई गई थी तब सतना में कुल 208 गिद्ध मिले थे. जबकि इस बार गिद्धों की संख्या 12 सौ तक पहुंच गई है. इससे वन विभाग के अधिकारी बेहद प्रसन्न हैं. उनका मानना है यदि ऐसी ही जागरूकता बनी रही तो जल्द ही गिद्धों की संख्या पहले के समान हो सकती है. पशुओं में दवाओं का प्रभाव कम हुआ है.
इस मामले को लेकर वन विभाग के SDO लाल सुधाकर सिंह ने बताया कि गिद्धों की घटती संख्या के लिए पशुओं में दूध के उपयोग होने वाले अक्सिटोसिन इंजेक्शन को माना जा सकता है.... क्योंकि उसका असर मृत शरीर में भी रहता है, जिसको खाने वाले गिद्ध और अन्य प्राणी पर भी दुष्प्रभाव होता है. पिछले कुछ समय से इस दिशा में लोग जागरुक हुए हैं. लिहाजा, एक बार पुन: संतुलन बनता दिखाई दे रहा है और गिद्धों की संख्या बढ़ती जा रही है.
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