
Dr Ambedkar Jayanti: आज पूरा देश संविधान निर्माता बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर (Baba Saheb Dr BR Ambedkar) की जंयती (Ambedkar Jayanti 2025) मना रहा है. उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के बाद के सुधारों में भी अहम योगदान दिया है. इसके अलावा बाबासाहेब ने भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनके जीवन को जानने पर पता चलता है कि भीमराव अंबेडकर अध्ययनशील और कर्मठ व्यक्ति थे. अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने अर्थशास्त्र, राजनीति, कानून, दर्शनशास्त्र और समाजशास्त्र का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था.
#WATCH | संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर का मानना था कि शिक्षा, हाशिए पर खड़े हर इंसान को बराबरी दिलाने की पहली सीढ़ी है। उनके इसी विजन को साकार करने के लिए केंद्र सरकार लगातार प्रयासरत है।
— PB-SHABD (@PBSHABD) April 13, 2025
सामाजिक न्याय, शिक्षा, और समावेशी विकास को केंद्र में रखते हुए कई ऐतिहासिक कदम उठाए… pic.twitter.com/kBQGDkha1T
उनको अपने जीवन में अनेक सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ा था, लेकिन उन्होंने अपना सारा जीवन पढ़ने-लिखने व ज्ञान हासिल करने में नहीं बिताया. उन्होंने अच्छे वेतन वाले उच्च पदों को ठुकरा दिया, क्योंकि वह अपना जीवन समानता, भाईचारे और मानवता के लिए समर्पित कर दिया था. उन्होंने दलित वर्ग के उत्थान के लिए भरसक प्रयास किये. आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में और उनके प्रेरणादायी विचारों को…
प्रारंभिक जीवन (Early life of Baba Saheb Bhimrao Ambedkar)
बाबासाहेब अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था, वह अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे. इनके पिता सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल थे, जोकि ब्रिटिश सेना में थे. बीआर अंबेडकर के पिता संत कबीर के अनुयायी थे. भीमराव रामजी अंबेडकर लगभग दो वर्ष के थे, तब उनके पिता रिटायर हो गये थे. वहीं जब वह केवल छह वर्ष के थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गई थी.

Ambedkar Jayanti 2025: डॉ बी आर अंबेडकर के विचार
Photo Credit: Ajay Kumar Patel
बाबासाहेब की प्रारंभिक शिक्षा बम्बई (अब मुंबई) में हुई. अपने स्कूली दिनों में ही उन्हें गहरे सदमे के साथ इस बात का एहसास हो गया था कि भारत में छुआछूत क्या होता है. अंबेडकर अपनी स्कूली शिक्षा सतारा में ग्रहण कर रहे थे. तब उनकी माता का निधन हो गया था, ऐसे में चाची ने उनकी देखभाल की. बाद में वह बम्बई चले गये. मैट्रिक करने के बाद 1907 में उनकी शादी बाजार के एक खुले शेड के नीचे हुई.
अपनी स्नातक की पढ़ाई उन्होंने एल्फिन्स्टन कॉलेज से पूरी की, जिसके लिए उन्हें बड़ौदा के सयाजीराव गायकवाड़ से छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी. स्नातक की शिक्षा अर्जित करने के बाद उन्हें अनुबंध के अनुसार बड़ौदा संस्थान में शामिल होना पड़ा. जब वह बड़ौदा में थे, तभी उन्होंने अपने पिता को खो दिया.
इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह लंदन चले गए. वकालत की पढ़ाई के लिए वह ग्रेज़ इन में भर्ती हुए और उन्हें लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस में डीएससी की तैयारी करने की भी अनुमति दी गई, लेकिन बड़ौदा के दीवान ने उन्हें भारत वापस बुला लिया. बाद में, उन्होंने बार-एट-लॉ और डीएससी की डिग्री भी प्राप्त की. उन्होंने कुछ समय तक जर्मनी की बॉन यूनिवर्सिटी में अध्ययन किया. भारत लौटने पर उन्हें बड़ौदा के महाराजा का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, ताकि आगे चलकर उन्हें वित्त मंत्री के रूप में तैयार किया जा सके.

Ambedkar Jayanti 2025: डॉ बी आर अंबेडकर के विचार
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1924 में इंग्लैंड से लौटने के बाद उन्होंने दलित वर्गों के कल्याण के लिए एक एसोसिएशन की शुरुआत की, जिसमें सर चिमनलाल सीतलवाड़ अध्यक्ष और डॉ अंबेडकर चेयरमैन थे. इस एसोसिएशन का तात्कालिक उद्देश्य शिक्षा का प्रसार करना, आर्थिक स्थितियों में सुधार करना और दलित वर्गों की शिकायतों का प्रतिनिधित्व करना था. नए सुधार को ध्यान में रखते हुए दलित वर्गों की समस्याओं को हल करने के लिए 3 अप्रैल, 1927 को बहिष्कृत भारत समाचार पत्र शुरू किया गया. 1928 में, वह गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, बम्बई में प्रोफेसर बने और 1 जून, 1935 को वह उसी कॉलेज के प्रिंसिपल बन गए और 1938 में इस्तीफा देने तक उसी पद पर बने रहे.

Ambedkar Jayanti 2025: डॉ बी आर अंबेडकर के विचार
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Ambedkar Jayanti 2025: डॉ बी आर अंबेडकर के विचार
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1936 में उन्होंने बॉम्बे प्रेसीडेंसी महार सम्मेलन को संबोधित किया और हिंदू धर्म का परित्याग करने की वकालत की. 15 अगस्त, 1936 को उन्होंने दलित वर्गों के हितों की रक्षा के लिए स्वतंत्र लेबर पार्टी का गठन किया, जिसमें ज्यादातर श्रमिक वर्ग के लोग शामिल थे. 1938 में कांग्रेस ने अस्पृश्यों के नाम में परिवर्तन करने वाला एक विधेयक पेश किया. डॉ अंबेडकर ने इसकी आलोचना की. उनका दृष्टिकोण था कि नाम बदलना समस्या का समाधान नहीं है. 1942 में, उन्हें भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में लेबर सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया, 1946 में, वह बंगाल से संविधान सभा के लिए चुने गए.

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आजादी के बाद, 1947 में, उन्हें देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की पहली कैबिनेट में विधि एवं न्याय मंत्री नियुक्त किया गया. लेकिन 1951 में कश्मीर मुद्दे, भारत की विदेश नीति और हिंदू कोड बिल के बारे में प्रधानमंत्री नेहरू की नीति से मतभेद व्यक्त करते हुए उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. 1952 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने में उनके द्वारा दिए गए योगदान को मान्यता प्रदान करने के लिए उन्हें एलएलडी की उपाधि प्रदान की.

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आख़िरकार 21 साल बाद, उन्होंने 1935 में येवला में की गई अपनी घोषणा “मैं एक हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा” को सच साबित कर दिया. 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में एक ऐतिहासिक समारोह में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और 6 दिसंबर 1956 को उनकी मृत्यु हो गई.

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ये है उनके प्रेरणादायी विचार (Dr. Bhim Rao Ambedkar Thoughts)
• यदि मुझे कभी लगा, संविधान का दुरुपयोग हो रहा है, तो मैं पहला शख्स होऊंगा, जो उसे जला डालेगा.
• "कानून एवं व्यवस्था किसी भी राजनीतिक निकाय की दवा हैं, और जब राजनीतिक निकाय बीमार होगा, दवा देनी ही होगी..."

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• छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, अधिकार वसूल करना होता है.
• एक इतिहास लिखने वाला इतिहासकार सटीक, निष्पक्ष और ईमानदार होना चाहिए.
• शिक्षा महिलाओं के लिए भी उतनी ही जरूरी है जितनी पुरुषों के लिए.
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