Madhavi Scindia Last Rites: ग्वालियर के सिंधिया राज परिवार के छत्री परिसर में सिंधिया राज परिवार (Scindia Royal Family) की राजमाता व केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) की मां माधवी राजे सिंधिया (Madhavi Raje Scindia) का अंतिम संस्कार (Madhavi Raje Scindia Funeral) पूरे विधान के साथ हुआ. इसी के साथ राजमाता माधवी राजे सिंधिया पंचतत्व में विलीन हो गईं. माधवी राजे सिंधिया का अंतिम संस्कार वहीं पर हुआ जहां उनके पति माधव राव सिंधिया (Madhav Rao Scindia) की अंत्येष्ठि हुई थी. इस मौके पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव (CM Mohan Yadav), उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ला सहित अनेक मंत्री, राजघरानों के सदस्य और बड़ी संख्या में नागरिक मौजूद रहे, जिन्होंने राजमाता को अंतिम विदाई दी.
शाही ढंग से हुआ अंतिम संस्कार
छत्री परिसर में मराठा-हिन्दू पद्दति से और शाही परंपरा और रीति रिवाज के अनुसार अंत्येष्ठि की रस्म पूरी हुई. सिंधिया राज परिवार के राज पुरोहित चन्द्रकान्त शेंडे और उनके परिजनों ने मंत्रोच्चार के बीच रस्में पूरी की गईं. इसके बाद पार्थिव देह को उतारकर चिता पर रखी गई. यह चिता गोबर के कंडों के अलावा दो किंवटल चंदन की लकड़ी से बनाई गई थीं. इससे पहले राज पुरोहित ने नाग बलि-नारायण बलि का विधान किया गया. इसके बाद पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुखाग्नि दी.
तपती धूप में पैदल चल ज्योतिरादित्य
राजमाता माधवी राजे की पार्थिव देह दिल्ली से विशेष विमान से पौने ग्यारह बजे राजमाता विजयाराजे सिंधिया टर्मिनल पर पहुंची वहां से उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया पुष्पों से सज्जित एम्बुलेंस में लेकर रानी महल पहुंचे जहां साढ़े बारह बजे से ढाई बजे तक उनकी पार्थिव देह अंतिम दर्शन के लिए रखी गई. इस मौके पर अंचल भर से बड़ी संख्या में लोग राजमाता को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे. इसके बाद शाम चार बजे उनकी अंतिम यात्रा शुरू हुई. महल से छत्री तक की लगभग दो किलोमीटर तक की दूरी तपती दोपहर में पैदल ही पूरी की. इस दौरान यात्रा के आगे ज्योतिरादित्य पैदल ही चले. अंत्येष्ठि के बाद वहां राजमाता माधवी राजे अमर रहे के नारे गूंजते रहे.
पूरा सिंधिया परिवार एक साथ
इस मौके पर लम्बे अरसे बाद सिंधिया परिवार एक साथ नजर आया. माधव राव सिंधिया की तीनों बहन उषा राजे नेपाल, वसुंधरा राजे पूर्व सीएम राजस्थान और पूर्व मंत्री यशोधरा राजे भी शोक संतप्त परिवार के साथ खड़ी दिखीं. इस मौके पर ज्योतिरादित्य, उनकी पत्नी प्रियदर्शनी राजे, उनके बेटे महा आर्यमन और बेटी अनन्या राजे ढाढस बंधाने पहुंचे लोगों का हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए दिखे.
यह राजनेता हुए शामिल
राजमाता माधवी राजे को उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ला, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, कैबिनेट मंत्री प्रह्लाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, तुलसी सिलावट, कुंवर विजय शाह, गोविंद राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर के अलावा सांसद विवेक नारायण शेजवलकर, पूर्व गृहमन्त्री डॉ नरोत्तम मिश्रा, पूर्व सांसद जयभान सिंह पवैया, कांग्रेस के विधायक प्रवीण पाठक, साहब सिंह, मेयर शोभा सिकरवार, पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह, पूर्व मंत्री राकेश चौधरी सहित अनेक सांसद और विधायक ग्वलियर पहुंचे.
माधव राव और उनकी मां की अंत्येष्ठि भी यही हुई थी
सिंधिया परिवार का यह छत्री परिसर काफी बड़े भूभाग में फैला है. यह जयविलास पैलेस से बमुश्किल एक किलोमीटर की दूरी पर शाही दशहरा मैदान से ठीक पहले स्थित है. बीते 23 वर्षों में यहां परिवार की तीसरी अंत्येष्ठि हुई है. सन 2000 में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय नेता, माधव राव सिंधिया की मां का निधन हुआ था. 27 जनवरी 2000 को उनका अंतिम संस्कार किया गया था, इसके महज डेढ़ साल बाद ही माधव राव सिंधिया का मैनपुरी के समीप हुए एक विमान हादसे में 30 सितम्बर 2001 को निधन हो गया था, उनकी अंत्येष्टि भी यहीं हुई थी. यहां दोनों की छत्री बनी है और उनमें मूर्तियां भी लगी हैं. इनकी जयंती और पुण्यतिथि पर यहां श्रद्धांजलि और भजन के आयोजन होते है.
कुल तीन जगह है सिंधिया परिवार की छत्रियां
सिंधिया परिवार के दिवंगत सदस्यों की जहां अंत्येष्ठि होती है, वहां आकर्षक छत्रियां बनाई जाती थीं. इनकी सबसे पुरानी छत्री परिसर लश्कर इलाके में है. उस समय सिंधिया परिवार महाराज बाड़ा स्थित गोरखी महल में निवास करता था, लेकिन बाद में इस स्थल के आसपास घनी आबादी हो गई और सिंधिया परिवार गोरखी महल छोड़कर जय विलास पैलेस में रहने आ गया. इसके बाद ये नया छत्री परिसर स्थापित हुआ. महाराज जीवाजी राव सिंधिया की अंत्येष्टि भी यहीं हुई थी. एक और छत्री परिसर शिवपुरी में है. वहां माधो महाराज (माधव राव प्रथम ) और उनकी मां महारानी सख्या राजे की अंत्येष्ठि हुई थी. बाद में इन दोनों की वहां संगमरमर की आकर्षक छत्रियों का निर्माण कराया गया, जो राजपूत और मुगल स्थापत्य के मिश्रण का नायाब नमूना है. यहां मां और बेटे की छत्रियां आमने-सामने बनी थी.
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