World Elephant Day: विश्व हाथी दिवस पर पूरे देश में अलग-अलग तरह के आयोजन हो रहे हैं. ऐसे में ये जानना दिलचस्प हो जाता है कि कभी हाथियों का स्वर्ग कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में धरती के इस सबसे बड़े जानवर का इतिहास क्या रहा है? छत्तीसगढ़ में खासकर सरगुजा बेल्ट को हाथियों का स्वर्ग कहा जाता रहा है. एक वक्त अकेले यहां के राजपरिवार के पास 361 हाथियों का बेड़ा था...जबकि आज पूरे राज्य में हाथियों की संख्या महज 350 से कुछ अधिक है. एक वक्त में दिल्ली के मुगल दरबार और हैदराबाद के निजाम के दरबार में यहीं से हाथी भेजे जाते थे...लेकिन सवाल ये है कि आखिर अब क्या हो गया है? क्यों बढ़ रहा है हाथी और इंसानों के बीच संघर्ष (Elephant-Human Conflict). इन सवालों का जवाब जानने के लिए चलिए शुरू से शुरू करते हैं.
सरगुजा हाथियों के लिए खास क्यों?
आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जो सुर+गजा से मिलकर बना है और इसका शाब्दिक अर्थ है स्वर्ग और हाथी.इसका अभिप्राय हाथियों के स्वर्ग से है.सरगुजा इतिहासकारों की माने तो प्राचीन काल में अविभाजित सरगुजा एक अलग स्टेट था. छत्तीसगढ़ प्रदेश का आदिवासी बाहुल्य सरगुजा देश के उन महत्वपूर्ण स्थानों से एक है जहां के जंगलों में कभी हाथियों की संख्या हजारों में थी.यहां की प्राकृतिक सुंदरता,घने जंगल और हाथियों के खाने की प्रचूर मात्रा में भोजन होने से यह क्षेत्र हमेशा हाथियों को आकर्षित करता रहा है. लेकिन बढ़ती मानव आबादी और जंगलों के सिकुड़ते दायरे के कारण आज सरगुजा संभाग में मानव व हाथियों के बीच संघर्ष की बात आम हो गई है. इस द्वंद्व में जहां एक ओर आम इंसान को जानों माल का नुक़सान हो रहा है तो दूसरी ओर सैकड़ों हाथियों की मौत एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है. लेकिन हमेशा से यहां ऐसा नहीं था.
सरगुजा राज परिवार के इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि सरगुजा का एक बड़ा क्षेत्र दंडकारण्य के रूप से जाना जाता था. जब सरगुजा राजपरिवार ने इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित कर राजपाठ का विस्तार किया तब महाराज रामानुजन शरण सिंह देव ने जंगली हाथियों को प्रशिक्षित करना शुरू किया. गोविन्द शर्मा बताते हैं-सरगुजा के इतिहास में इस बात का उल्लेख है कि हाथियों के आतंक से लोग सरगुजा में रहना नहीं चाहते थे. इसलिए तब के सरगुजा महाराज ने इन जंगली हाथियों को प्रशिक्षित हाथियों के माध्यम से पकड़ कर उन्हें प्रशिक्षित किया. बाद में उन्हें मुगल बादशाह और निज़ाम हैदराबाद के पास बतौर लगान भेजा जाने लगा.इतिहासकारों के मुताबिक तब सरगुजा राजपरिवार के पास 361 हाथियों का एक दस्ता था जो कि पूरी तरह से प्रशिक्षित थे.
कांग्रेस के 54वें अधिवेशन में 52 हाथी सरगुजा से गए थे
इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 54वें स्थापना दिवस पर कांग्रेस का 52वां अधिवेशन जबलपुर में हुआ था.उस अधिवेशन को सरगुजा राजपरिवार ने आयोजित किया था. तब सरगुजा राजपरिवार ने 52 हाथियों के साथ अनाज, टेंट और पंडाल जैसी तमाम चीजें अधिवेशन में भेजी थी. इसी अधिवेशन में नेता जी सुभाषचन्द्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे. जहां उनके प्रोसेशन के लिए इन 52 हाथियों को सजा कर भेजा गया था.
राज्य बनने के बाद हाथियों की संख्या में हुई वृद्धि
छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या लगातार बढ़ी है. दरअसल उड़ीसा और झारखंड के हाथी भी अब छत्तीसगढ़ में ठहर गये हैं. दस साल पहले राज्य में क़रीब डेढ़ सौ हाथी थे जो अब बढ़ कर 350 से ज्यादा हो गए हैं. प्रदेश में अभी तीन हाथी कॉरिडोर हैं. गरियाबंद के सीतानादी उदंती टाइगर रिज़र्व में पांच साल पहले तक एक हाथी भी नहीं थे लेकिन हाथियों के एक दल ने यहां अपना स्थाई रहवास बना लिया है. वन विभाग के अनुसार प्रदेश में सरगुजा क्षेत्र में 125, बिलासपुर क्षेत्र में 192 और रायपुर सर्किल में 42 हाथी मौजूद हैं. इसके अलावा धर्मजयगढ़ क्षेत्र में 108 हाथी विचरण कर रहे हैं. ये हालत तब जबकि बीते लगभग दो दशक में राज्य में 77 हाथियों की मौत हुई है.
मानव-हाथी संघर्ष की अक्सर आती रहती है खबर
हाथियों और मानव द्वन्द पर जानकारों का कहना है हमने हाथियों की ज़मीन छीनी है. जैसे-जैसे विकास हो रहा है हाथियों के रहने की जगह कम होती जा रही है. बीते कुछ ही दिनों में जशपुर और कोरबा क्षेत्र में हाथी और इंसानों के बीच संघर्ष में 9 लोगों की मौत हो चुकी है. इस संघर्ष को रोकने के लिए वन विभाग इस क्षेत्र में रेडियो बुलेटिन जारी करता है. जिसमें हाथियों के विचरण करने के बारे में जानकारी दी जाती है. इस बुलेटिन में हाथियों से बचने के उपाय भी बताए जाते हैं. इसके अलावा उदंती सीतानदी रेंज के उप निदेशक वरुण जैन ने निर्देश पर एलीफैंट एलर्ट ऐप बनाया गया है जिसमें हाथियों की जानकारी दी जाती है.
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