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Sukma: याद किए गए नक्सल हिंसा में मारे गए ग्रामीण, जानिए अब तक कितने लोग हुए है शिकार

Bhumkal Diwas: सुकमा जिले के किस्टाराम, चिंतागुफा, दोरनापाल, जगरगुंडा, भेजी, कोंटा, एर्राबोर, गोलापल्ली, गादीरास, सुकमा, गादीरास, मरईगुड़ा, तोंगपाल, कुकानार, पोलमपल्ली, चिंतलनार, केरलापाल और फूल बगड़ी थाना क्षेत्र में घटनाओं को अंजाम दिया है. सबसे ज्यादा निर्दोष आदिवासियों की हत्या एर्राबोर थाने में हुई है. यहां नक्सलियों ने 92 लोगों को पुलिस मुखबिर का आरोप लगाकर मौत की सजा सुनाई है.

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Sukma: याद किए गए नक्सल हिंसा में मारे गए ग्रामीण, जानिए अब तक कितने लोग हुए है शिकार

Police paid Tribute: बस्तर में नक्सलियों की हिंसा में जवानों ने अपने प्राणों की आहूति तो दी है, इसके अलावा क्षेत्र के सैकड़ों निर्दोष ग्रामीण भी मौत के घात उतारे गए हैं. साल 2000 के बाद से सुकमा जिले के अलग-अलग थाना क्षेत्र में नक्सलियों ने 354 ग्रामीणों की हत्या की है. ज्यादातर ग्रामीणों की हत्या पुलिस मुखबिरी के आरोप में हुई है. नक्सल हिंसा में मारे गए ग्रामीणों का पहली बार स्मरण किया गया. भूमकाल दिवस के ख़ास मौके पर पुलिस ने एक कार्यक्रम का आयोजम कर नक्सल हिंसा में मारे गए ग्रामीणों को श्रद्धांजलि दी गई. 

मारे गए ग्रामीणों के नाम का स्मरण 

शनिवार को जिला मुख्यालय के पुलिस लाइन स्थित शहीद स्मारक पर SP किरण चव्हाण समेत विभाग के आला अधिकारियों ने जल, जंगल और जमीन की हक की लड़ाई लड़ने वाले और अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए “भूमकाल आंदोलन” छेड़ने वाले बस्तर के आदिवासी क्रांतिकारी नेता महानायक अमर शहीद " गुण्डाधूर" के संघर्ष की स्मृति में “भूमकाल दिवस” की 114 वीं वर्षगांठ मनाई.उनके प्रतिमा में पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गई. महानायक अमर शहीद "गुण्डाधुर" के द्वारा आदिवासियों को उनके हक दिलाने के संघर्ष की वीरता के संबंध में जवानों को संबोधित किया गया. साथ ही नक्सल हिंसा में मारे गए आम ग्रामीणों के नाम का स्मरण करते हुए SP ने सलामी देते हुए 01 मिनट का मौन धारण किया.

10 फरवरी को भूमकाल दिवस

बता दें कि अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए देश के कई वीर योद्धाओं ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए अपने प्राणों की आहुति दी है. वहीं छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में भी आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भूमकाल आंदोलन की शुरुआत की थी. यह आंदोलन बस्तर के वीर आदिवासी नायकों के बलिदान को लेकर याद किया जाता है. जिन्होंने आजादी और अपने जल, जंगल, जमीन की लड़ाई के लिए अंग्रेजों के गोला बारूद का सामना तीर धनुष और अपने पारंपरिक हथियारों से किया था. आज भी इस आंदोलन और इसके  योद्धाओं की याद में हर साल 10 फरवरी को भूमकाल दिवस मनाया जाता है.

आम लोगों ने भी गंवाई है अपनी जान

बस्तर में बीते 4 दशक से फैले नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच संघर्ष जारी है. नक्सली घटनाओं में पुलिस और सुरक्षाबलों के जवान ही नहीं शहीद हुए हैं बल्कि बड़ी संख्या में निर्दोष आदिवासी, पत्रकार और आम जनप्रतिनिधियों ने भी अपनी जान गंवाई हैं. माओवादियों ने ज्यादातर लोगों को पुलिस मुखबिर के शक में मौत के घाट उतारा है। जिले के किस्टाराम, चिंतागुफा, दोरनापाल, जगरगुंडा, भेजी, कोंटा, एर्राबोर, गोलापल्ली, गादीरास, सुकमा, गादीरास, मरईगुड़ा, तोंगपाल, कुकानार, पोलमपल्ली, चिंतलनार, केरलापाल और फूल बगड़ी थाना क्षेत्रांर्गत घटनाओं को अंजाम दिया है. सबसे ज्यादा निर्दोष आदिवासियों की हत्या एर्राबोर थाने में हुई है. यहां नक्सलियों ने करीब 92 लोगों को पुलिस मुखबिर का आरोप लगाकर मौत की सजा सुनाई है.

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नक्सलियों का सहयोग करना बंद कर दें ग्रामीण 

इस मौके पर SP किरण चव्हाण ने कहा कि नक्सलवाद अंतिम सांसे गिन रहा है. जल्द ही बस्तर को नक्सल मुक्त कर यहां शांति बहाल होगा. साल 2000 के बाद से जीतने भी आदिवासी, पत्रकार और आम नागरिक नक्सली हिंसा का शिकार हुए हैं उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा. भूमकाल दिवस पर नक्सली हिंसा में जान गंवा चुके लोगों को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई है. जिले के किस्टाराम, चिंतागुफा, दोरनापाल, जगरगुंडा, भेजी, कोंटा, एर्राबोर, गोलापल्ली, गादीरास, सुकमा, गादीरास, मरईगुड़ा, तोंगपाल, कुकानार, पोलमपल्ली, चिंतलनार, केरलापाल और फूल बगड़ी थाना क्षेत्र में घटनाओं को अंजाम दिया है. सबसे ज्यादा निर्दोष आदिवासियों की हत्या एर्राबोर थाने में हुई है. यहां माओवादियों ने करीब 92 लोगों को पुलिस मुखबिर का आरोप लगाकर मौत की सजा सुनाई है.

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