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कांग्रेस के ‘एसेट’ नहीं रहे कमलनाथ

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Prem Kumar
  • विचार,
  • Updated:
    December 18, 2023 3:31 pm IST
    • Published On December 18, 2023 15:31 IST
    • Last Updated On December 18, 2023 15:31 IST

मध्यप्रदेश में करारी पराजय के बाद कांग्रेस आलाकमान ने नेतृत्व परिवर्तन किया है तो यह उसकी मजबूती नहीं, कमजोरी को दर्शाता है.कांग्रेस को सिर्फ चुनावी हार नहीं मिली है बल्कि चुनाव से पहले ही सैद्धांतिक और नैतिक पराजय का सामना करना पड़ा है और उसकी वजह रहे कमलनाथ. इंडिया गठबंधन के घटक दलों के सामने कांग्रेस का सिर ऊंचा नहीं, नीचा हुआ है.राहुल-मल्लिकार्जुन की टीम बेबस दिखी है. ऐसे में 2024 से पहले इंडिया गठबंधन भी सैद्धांतिक और नैतिक हार को ओढ़ चुका है, ऐसा कहने पर बहुतेरे आपत्ति कर सकते हैं लेकिन यह जरूरी नहीं कि अंतिम नतीजे आने के बाद ही इस पराजय को स्वीकार किया जाए.

मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने वो सारे हथकंडे अपनाए जो बीजेपी अपनी जीत के लिए अपनाती रही है. अगर यही काम कमलनाथ बीजेपी में रहकर कर रहे होते तो बीजेपी के स्टार लीडर होते. कमलनाथ ये भूल गये कि कांग्रेस और बीजेपी में बहुत फर्क है. कांग्रेस विभिन्न विचारों और धर्मों को साथ लेकर चलने का दावा तो करती रही है लेकिन किसी को वरीयता देती नहीं दिखी. कांग्रेस का नारा कभी ‘हिन्दू राष्ट्र' नहीं रहा. गांधी-नेहरू की विचारधारा से अगर कांग्रेस को जोड़कर देखें तो अंधविश्वास, पाखण्ड, छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों से दूर रही है कांग्रेस. व्यक्तिगत रूप में कोई खास राह पर चले तो कांग्रेस उस पर आपत्ति भी नहीं किया करती है. ऐसे में कमलनाथ ने कांग्रेस के वोटरों को न सिर्फ मध्यप्रदेश में दिग्भ्रमित किया, बल्कि समूचे देश ने आश्चर्य के साथ इस बदलाव को देखा.

‘हिन्दू राष्ट्र' पर बड़ी लकीर नहीं खींच सकते कमलनाथ

कमलनाथ से पूछा गया कि बाबा बागेश्वर तो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात करते हैं. क्या आप भी ऐसा ही समझते हैं? कमलनाथ का जवाब था कि भारत हिन्दू राष्ट्र है, इसे बताने की क्या आवश्यकता है. कायदे से कांग्रेस नेतृत्व को पार्टी सैद्धांतिक स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए थी. लेकिन, चुनावी विवशताओं के अधीन कांग्रेस ने चुप रहकर अपना राष्ट्रव्यापी भारी नुकसान किया. बल्कि, राष्ट्र से इतर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस के इस व्यवहार पर कांग्रेस समर्थक भौंचक रह गये.
हनुमान चालीसा, भव्य हनुमान मंदिर जैसी धार्मिक आस्था के विषयों को कमलनाथ ने वोट मांगने के लिए ठीक उसी तरह इस्तेमाल किया जैसे बीजेपी आए दिन किया करती है. उत्साही कांग्रेसजनों ने इसे बीजेपी को बीजेपी की भाषा में जवाब देना बताया. मगर, बीजेपी की भाषा, शैली, प्रकटीकरण इस क्षेत्र में इतनी ऊंचाई प्राप्त कर चुकी है कि कमलनाथ बीजेपी को उसकी भाषा में जवाब नहीं दे सके और न दे सकते थे.

कांग्रेस की भाषा, शैली, विचार, प्रकटीकरण हमेशा से अलग रही है। पार्टी को इसी रास्ते पर चलना होगा। वास्तव में कमलनाथ के प्रयोग पर कांग्रेस ने चुप रहकर उस तीसरे मोर्चे को जगाने के लिए आधार तैयार करने का काम किया है जो वर्तमान सियासत में अपना अस्तित्व खो चुकी थी.

नेशनल कान्फ्रेन्स, तृणमूल कांग्रेस, वामदल और यहां तक कि बीएसपी की कांग्रेस के सॉफ्ट हिन्दुत्व पर भौहें तन गयीं.

कमलनाथ ने इंडिया गठबंधन को कमजोर किया

समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव के लिए कमलनाथ ने जिस तरीके से ‘अखिलेश-वखिलेश' कहा उसमें इंड़िया गठबंधन के लिए धिक्कार का भाव था. इंडिया गठबंधन की रैली भोपाल में नहीं होने देने पर कमलनाथ अड़ गये. रैली रद्द करने की घोषणा कमलनाथ या रणदीप सुरजेवाला के स्तर से नहीं होनी चाहिए थी. इससे इंडिया गठबंधन के घटक दलों के आत्मसम्मान को चोट पहुंची. यही वजह है कि पांच राज्यों में चुनाव के बाद इंड़िया गठबंधन की बैठक की तारीख पर असमंजस बनी रही। छह दिसंबर को बैठक टालनी पड़ी। नयी तारीख 19 दिसंबर तय हुई. 
मध्यप्रदेश में कांटे के मुकाबले में कांग्रेस हारती तो बात अलग थी. लेकिन मुकाबला एकतरफा रहा तो इसकी जिम्मेदारी कमलनाथ को लेनी चाहिए थी. कमलनाथ ने ऐसा नहीं किया. जवाब में आलाकमान ने जीतू पटवारी, उमंग सिंघार, हेमंत कटारिया के रूप में युवा नेतृत्व की बैटरी पेश कर गदी. मगर, राजनीति जवाबी कार्रवाई का नाम नहीं होती. युवा नेतृत्व हार के बाद थोपा जाने वाला नेतृत्व नहीं होता.

मजबूरी का विकल्प युवा नेतृत्व नहीं बन सकता. ऐसे में इस बात की संभावना बहुत कम है कि मध्यप्रदेश में युवा नेतृत्व चार महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में कोई गुल खिला सकेगा. जाहिर है कमलनाथ के सामने कांग्रेस आलाकमान के घुटने टेक नीति ने न सिर्फ कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव के मददेनजर संभावनाओं पर पलीता लगाया है बल्कि इंडिया गठबंधन को भी जबरदस्त चोट पहुंचायी है.

बघेल-गहलोत अब भी कांग्रेस के एसेट

कांग्रेस अगर सांगठनिक मजबूरियों के तहत कमलनाथ जैसे नेताओं को राष्ट्रीय स्तर पर कोई भूमिका सौंपती है तो यह भी बैक फायर करेगा. इंडिया गठबंधन के घटक दल कमलनाथ को सहयोगी मानने से संकोच करेंगे. उनके सॉफ्ट हिन्दुत्व वाली छवि से दूरी बनाए रखने की कोशिश करेंगे. इंडिया गठबंधन के लिए पनौती साबित हो सकते हैं कमलनाथ. अगर छत्तीसगढ़ और राजस्थान के नेता भूपेश बघेल और अशोक गहलोत की बात करें तो उनके लिए इंडिया गठबंधन में कोई संकोच नहीं है. ये दोनों नेता आत्ममुग्धता और अक्सर आलाकमान की इच्छा से अलग राह लेने के गुनहगार हो सकते हैं जिसका खामिया कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में भुगतना पड़ा, लेकिन कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ ये दोनों नेता नज़र नहीं आते. निश्चित रूप से बघेल-गहलोत कांग्रेस की ऐसेट बने हुए हैं लेकिन कमलनाथ के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता.
मध्यप्रदेश संघ और बीजेपी की प्रयोगशाला रही है। लंबे समय से बीजेपी यहां सत्ता में है। बमुश्किल कांग्रेस ने 2018 में वापसी की थी लेकिन उस वापसी को संभाल नहीं सकी। 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और बीजेपी के बीच फासला बढ़ गया है. बीजेपी ने बड़ी बढ़त ले ली है। 8 प्रतिशत वोटों की बढ़त को पाटना अब कांग्रेस के लिए मुश्किल होगा. कम से कम कमलनाथ के सॉफ्ट हिन्दुत्व वाली कांग्रेस तो बीजेपी का विकल्प नहीं बन सकती। बीजेपी को जन सरोकार के मुद्दों पर घेरकर ही मतदाताओं में पैठ बनायी जा सकती है. मध्यप्रदेश राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए बड़ी सीख दे रही है. क्या सीख ले सकेंगे कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के कर्णधार?

प्रेम कुमार तीन दशक से पत्रकारिता में सक्रिय हैं, और देश के नामचीन TV चैनलों में बतौर पैनलिस्ट लम्बा अनुभव रखते हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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