मध्य प्रदेश में पहले चरण में 1.12 करोड़ वोटर अपने 6 सांसदों का चुनाव करेंगे. कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है. पूरे प्रदेश में कांग्रेस को मिली एक मात्र छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर चुनाव इसी चरण में है, जहां कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ एक बार फिर उम्मीदवार हैं. बीजेपी 2024 में कांग्रेस की जीती हुई इस इकलौती सीट को भी छीनने को आतुर है. वहीं, कांग्रेस मंडला में बाजी पलटने की कोशिश में है, जहां 8 में से 5 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं.
नकुलनाथ के लिए बीजेपी का चक्रव्यूह
बीजेपी ने छिंदवाड़ा से नुकलनाथ के मुकाबले उनसे कम उम्र के युवा प्रत्याशी विवेक बंटी साहू को चुनाव मैदान में उतारा है. बीजेपी ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस में बड़ी सेंधमारी कर दी है. छिंदवाड़ा नगर निगम के महापौर विक्रम अहाके अपने दल-बल के साथ बीजेपी में शामिल हो गए हैं. तीन दिन पहले ही छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में आने वाली अमरवाड़ा सुरक्षित सीट से कांग्रेस विधायक कमलेश प्रताप शाह ने विधानसभा से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होने की घोषणा की थी.
खासकर इसलिए भी कि अब न तो कांग्रेस की प्रदेश में सरकार है और न ही साध देने वालों की. वो जमात जो पांच साल पहले उनके साथ हुआ करती थी. इसके अलावा छिंदवाड़ा की छह में से 5 विधानसभा सीटों पर बीजेपी कब्जा कर चुकी है.
सीधी-जबलपुर में ब्राह्मण बनाम ओबीसी
सीधी और जबलपुर के सांसद रीति पाठक और राकेश सिंह अब विधायक बन चुके हैं. इस वजह से बीजेपी ने प्रत्याशी बदले हैं. जबलपुर की सीट पर बीते 30 साल से बीजेपी का कब्जा है, जबकि सीधी लोकसभा सीट 1998 के बाद से सिर्फ एक उपचुनाव में बीजेपी हारी है. सीधी लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा क्षेत्र हैं-चुरहट, सीधी, धौहनी (सीधी जिला), सिंहावल, चितरंगी, सिंगरौली, देवसार (सिंगरौली जिला). इनमें से केवल चुरहट कांग्रेस के पास है. बीते लोकसभा चुनाव में रीति पाठक ने (6.98 लाख) अजय सिंह उर्फ राहुल भैया को 4.11 लाख मतों से हराया था. पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे हैं अजय सिंह.
सीधी में लड़ाई जातिगत बन गयी है. यहां ब्राह्मण बनाम पटेल की स्पर्धा परंपरागत रही है. भले ही उम्मीदवार चाहे जिस जाति से हो, लेकिन इस बार यह स्पर्धा उम्मीदवार के गिर्द आमने-सामने की हो गयी है.
जबलपुर में बीजेपी ने प्रदेश मंत्री रहे आशीष दुबे को चुनाव मैदान में उतारा है. यह उनके लिए चुनाव लड़ने का पहला अनुभव होगा. उनके मुकाबले कांग्रेस ने दिनेश यादव को चुनाव मैदान में उतारा है. वे 1984 से राजनीति में हैं और जिलाध्यक्ष समेत बड़े पदों पर रह चुके हैं. बीते चुनाव में कांग्रस के दिग्गज नेता विवेक तन्खा को बीजेपी के राकेश सिंह से करारी हार का सामना करना पड़ा था. राकेश सिंह को 8.26 लाख वोट मिले थे, जबकि विवेक तन्खा को 3.71 लाख वोट.
बालाघाट में बीजेपी को कांग्रेस से कड़ी चुनौती
इसके अलावा बालाघाट से सांसद ढाल सिंह बिसेन का टिकट बीजेपी ने काट दिया है. यहां भारती पारधी को चुनाव मैदान में उतारा गया है. वह महिला मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में सदस्य रह चुकी हैं. उनके मुकाबले कांग्रेस ने सम्राट सारस्वत को चुनाव मैदान में उतारा है. इनके पिता अशोक सिंह सारस्वत पूर्व विधायक रह चुके हैं. सम्राट जिला पंचायत अध्यक्ष हैं. लिहाजा पूरा दबदबा है.
मंडला सीट पर कांग्रेस के लिए मौका
मंडला में कांग्रेस के लिए मौका है. यहां 8 विधानसभा सीटों में से 5 कांग्रेस के पास है. हालांकि कई नेता बीजेपी में जा चुके हैं. फिर भी मंडला में डिंडोरी से विधायक ओमकार मरकाम के रूप में युवा चेहरे को उतारकर नये सिरे से उम्मीद पैदा की है. 47 वर्षीय मरकाम कमलनाथ सरकार में मंत्री रह चुके हैं. 2014 में भी ओमकार मरकाम का मुकाबला फग्गन सिंह कुलस्ते से हुआ था, लेकिन बाजी बीजेपी के हाथ लगी थी. दस साल बाद एक बार फिर कुलस्ते बनाम मरकाम की लड़ाई रोचक होने जा रही है. बीते लोकसभा चुनाव में फग्गन सिंह कुलस्ते ने 7.37 लाख वोट हासिल की थी, जबकि कांग्रेस के कमल सिंह मरावी को 6.39 लाख वोट मिले थे.
मंडला में बीजेपी को हराना खेल नहीं
मंडला के अलावा शहडोल में भी कांग्रेस ने विधायक को उम्मीदवार बनाया है. यहां से पुष्पराजगढ़ से विधायक फुंदेलाल मार्को को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है. फुंदेलाल का मुकाबला अपनी ही पार्टी की नेता रहीं हिमाद्री सिंह (37 वर्ष) से होगा जो बीजेपी सांसद हैं. 2019 के आम चुनाव में दिग्गज कांग्रेसी नेता दिवंगत दलबीर सिंह और सांसद दिवंगत राजेश नंदिनी की बेटी हिमाद्री सिंह को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया था. 4.5 लाख के अंतर से हिमाद्रि सिंह ने चुनाव जीता था. कांग्रेस उम्मीदवार फुंदेलाल दो बार के विधायक हैं, लेकिन उनके लिए मंडला में बीजेपी को हराना टेढ़ी खीर है.
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