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आज भी सीख देती है रायपुर में आचार्य कृपलानी की हार

Prem Kumar
  • विचार,
  • Updated:
    April 26, 2024 19:04 IST
    • Published On April 26, 2024 19:04 IST
    • Last Updated On April 26, 2024 19:04 IST

लोकतंत्र में जनमत सर्वोपरि है. जनता ही मालिक है और वही अपने जनप्रतिनिधियों को चुनती है. लेकिन, कभी-कभी जनता का फैसला ऐसा होता है कि उस पर दिल यकीन नहीं कर पाता. उस वक्त किसी नेता या दल की ऐसी लहर चलती है कि ज्वलंत मुद्दे भी हवा में उड़ जाते हैं. अब जैसे 1967 में रायपुर लोकसभा चुनाव के नतीजे की ही बात कर ली जाय. आचार्य जेबी कृपलानी ने आदिवासी समुदाय के हक-हुकूक के लिए रायपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा था. लोकप्रिय आदिवासी नेता राजा प्रवीर चंद्र देवभंज और उनके सात समर्थकों की हत्या के बाद आचार्य कृपलानी के पक्ष में माहौल भी बना था. लेकिन जब चुनाव हुआ तो तत्कालीन भारत के दिग्गज नेता जेबी कृपलानी कांग्रेस के एक सामान्य नेता लखनलाल गुप्ता से चुनाव हार गये. तब रायपुर मध्यप्रदेश का हिस्सा था लेकिन उस समय भी रायपुर इलाके में आदिवासी समुदाय अपने हक की लड़ाई लड़ रहा था. फिर भी जनादेश पर इसका असर नहीं पड़ा.

आदिवासी नेता प्रवीर चंद्र भंजदेव

प्रवीर चंद्र भंजदेव बस्तर के अंतिम राजा थे. वे आदिवासियों के हक और इंसाफ की बात करते थे. उनकी ऐसी प्रतिष्ठा थी कि आदिवासी समुदाय उनकी पूजा करता था. प्रवीर चंद्र भंजदेव का मानना था कि बस्तर के प्राकृतिक संसाधनों पर स्थानीय आदिवासियों का अधिकार सबसे अधिक है. वे जल, जंगल जमीन पर आदिवासियों के अधिकार का संरक्षण चाहते थे. इस बात को लेकर मध्यप्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार से उनकी ठन गयी. उस समय द्वारिका प्रसाद मिश्र मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. प्रवीर चंद्र भंजदेव 1957 में जगदलपुर से विधायक चुने जा चुके थे. उनके नेतृत्व में आदिवासी समाज एकजुट हो गया. सरकार के साथ इनकी लड़ाई बढ़ती गयी.

गोलीकांड में प्रवीर चंद्र समेत आठ की मौत

आरोप है कि 25 मार्च 1966 की रात को पुलिस ने प्रवीर चंद्र भंजदेव के महल को घेर लिया. पुलिस के डर से कुछ आदिवासी महल में शरण लिये हुए थे. पुलिस उन्हें बाहर निकलने की चेतावनी दे रही थी. आखिरकार पुलिस ने फायरिंग कर दी. इस घटना में राजा प्रवीर चंद्र भंजदेव और उनके सात सहयोगी आदिवासी मारे गये. इस घटना की जांच हुई थी. गोली कांड की आलोचना तो की गयी थी लेकिन इसके लिए किसी को जवाबदेह नहीं माना गया था. उस समय इस घटना के खिलाफ विपक्ष के कुछ नेताओं ने आवाज उठायी थी. इनमें आचार्य जेबी कृपलानी प्रमुख थे. आदिवासी जनसंघर्ष से जुड़े आठ लोगों की हत्या बहुत बड़ी घटना थी. आचार्य कृपलानी पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए जगदलपुर आये थे. फिर वे भी आदिवासी जनसंघर्ष को धार देने के लिए रायपुर और जगदलपुर आने-जाने लगे.

1967 का लोकसभा चुनाव

इस घटना के एक साल बाद ही 1967 का चौथा आमचुनाव आ गया. विपक्ष के नेता और आदिवासी संगठन से जुड़े लोगों ने आचार्य कृपलानी से अनुरोध किया कि वे रायपुर से कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ें. वे देश के प्रसिद्ध शिक्षाविद थे. 1947 में जब भारत को आजादी मिली थी तब वे कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उस समय पंडित नेहरू, सरदार पटेल की तरह आचार्य कृपलानी भी कांग्रेस के शीर्ष नेता थे. लेकिन पंडित नेहरू से नीतिगत विरोध होने के कारण उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी. 1967 में आचार्य कृपलानी के कारण रायपुर एक चर्चित चुनाव क्षेत्र बन गया. प्रवीर चंद्र भंजदेव और उनके समर्थकों की हत्या का जख्म अभी ताजा ही था. चुनाव के पहले जनभावना आचार्य कृपलानी के पक्ष में लग रही थी. वे जन कांग्रेस के बैनर तले चुनाव लड़ रहे थे.

मुद्दा भी, माहौल भी, फिर भी आचार्य कृपलानी हार गये

1967 के चौथे आमचुनाव में कांग्रेस के पास पंडित जवाहर लाल नेहरू का करिश्माई नेतृत्व नहीं था. उनका निधन हो चुका था. कांग्रेस कमजोर हो रही थी. गैरकांग्रेसवाद का माहौल बनने लगा था. 1967 में कांग्रेस ने रायपुर से लखनलाल गुप्ता को उम्मीदवार बनाया था. आचार्य कपलानी की तुलना में लखनलाल गुप्ता का राजनीति अनुभव और प्रभाव बहुत कम था. लेकिन जब चुनाव प्रचार शुरू हुआ तो अंदर ही अंदर माहौल बदलने लगा. ऊपरी तौर पर इसका कोई अंदाजा नहीं लगा रहा था. मतदान के बाद जब वोटों की गिनती हुई तो नतीजे ने सबको चौंका दिया. आचार्य जेपी कृपलानी जिस बड़े मुद्दे (आदिवासी हित) को लेकर चुनाव लड़ रहे थे वे हार गये. उन्हें 79 हजार 448 वोट मिले. जबकि कम अनुभवी माने जाने वाले लखनलाल गुप्ता ने एक लाख 3 हजार 863 वोट लाकर चुनाव जीत लिया. इस नतीजे ने आचार्य कृपलानी का दिल तोड़ दिया. इसके बाद फिर उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा.


 प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और  देश की राजनीति की गहरी समझ रखते है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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