बीते हफ्ते कमलनाथ के बीजेपी में आने की खबर मीडिया पर आने लगी तो बीजेपी और कांग्रेस में से किसी पक्ष ने न तो इसे गलत ठहराया और न ही इसकी पुष्टि की. इस स्थिति ने कई सवालों को जन्म दिया जो बीजेपी के लिए भी हैं और कांग्रेस के लिए भी. और, यहां तक कि स्वयं कमलनाथ के लिए भी. मीडिया ने सवाल दागना शुरू किया कि कांग्रेस से ही नेता क्यों छोड़कर जा रहे हैं? बीजेपी से सवाल होने लगे कि उन्हें कांग्रेस के नेताओं की ही जरूरत क्यों पड़ रही है चुनाव जीतने के लिए? कमलनाथ के लिए सवाल था कि कांग्रेस ने आखिर क्या नहीं दिया कि उम्र के इस पड़ाव पर उन्होंने सारी वैचारिक प्रतिबद्धताओं को ताक पर रखते हुए बीजेपी में जाने का फैसला कर लिया?
इंडिया गठबंधन के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के समक्ष मुखर होकर जवाब दिया कि ईजी और पीएमएल का सेक्शन 45 और 50 हटा दीजिए तो उल्टे बीजेपी में भगदड़ मच जाएगी. शिवराज सिंह और वसुंधरा राजे शायद अपनी-अपनी पार्टियां भी बना लें. दिग्विजय सिंह की टिप्पणी में भी यही बात मुखरित हुई कि कमलनाथ ईडी-सीबीआई जैसे दबावों से डरने वाले नहीं हैं- ऐसा उनका विश्वास है. मगर, कमलनाथ ने एक बार भी यह प्रतिक्रिया नहीं दी कि वे बीजेपी में नहीं जा रहे हैं या फिर कांग्रेस नहीं छोड़ रहे हैं. मीडिया में चल रही खबरों को खारिज नहीं करने से स्वयं कमलनाथ एक राजनेता के रूप में संदिग्ध हो गये.
कांग्रेस छोड़ने के सवाल पर बेचैन क्यों नहीं हुए कमलनाथ?
कमलनाथ 1968 से लगातार कांग्रेस में हैं. 56 साल हो चुके. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन पर दिल्ली में सिख दंगे में लिप्त होने के आरोप भी राजनीतिक विरोधियों ने चस्पां करने के प्रयास किए, हालांकि चस्पां हो नहीं सके. कांग्रेस ने हर परिस्थिति में कमलनाथ को अपने से चिपकाए रखा. प्रधानमंत्री और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को छोड़कर कोई अहम पद ऐसा नहीं है जो कांग्रेस की ओर से कमलनाथ को नहीं मिला.
जितना आश्चर्य इस ख़बर पर हुआ कि कमलनाथ बीजेपी में जा सकते हैं उससे अधिक आश्चर्य कलमनाथ की प्रतिक्रिया पर हुआ जब उन्होंने मीडिया से कहा- “कुछ होगा तो सबसे पहले आपको बताऊंगा”. ऐसी बातें आम तौर पर कोई बड़ा पद मिलने की संभावना सामने आने और औपचारिक रूप से एलान होने के बीच पढ़ने, देखने और सुनने को मिलती हैं. मसलन, अगर कोई कमलनाथ से पूछता कि आप राज्यसभा में उम्मीदवार हो रहे हैं या नहीं तो शायद उनका यह जवाब अधिक मुफीद माना जाता. मगर, कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने के सवाल पर ऐसी प्रतिक्रिया के बाद कमलनाथ से सहानुभिति रखने वाला व्यक्ति भी हैरान रह गया!
कांग्रेस के समर्थक उम्मीद कर रहे थे कि कमलनाथ बोलें- “मैं कांग्रेस में था, कांग्रेस में हूं और कांग्रेस में रहूंगा” या “फिर आजीवन कांग्रेस में रहूंगा”. इसके बजाए सवाल के जवाब को महज वक्त के हवाले करते हुए कमलनाथ ने मानो कांग्रेस से जुड़े अपने पूरे वजूद को ही नकार डाला. इस घटना के बाद कमलनाथ कांग्रेस में रहें या न रहें- यह प्रश्न ही दुर्बल हो गया है.
“कांग्रेस को झटका, बीजेपी में नहीं जाएंगे कमलनाथ”
हालत यहां तक जा पहुंची है कि सोशल मीडिया में खबर तैर रही है- “कांग्रेस को झटका, कमलनाथ बीजेपी में नहीं जाएंगे.” कमलनाथ ने एक झटके में अपने आपको कांग्रेस का बोझ बना डाला है.
ऐसा क्यों हुआ कि कमलनाथ का कांग्रेस में रहना ब्रेकिंग न्यूज़ हो गई. दरअसल कांग्रेस छोड़ने और बीजेपी ज्वाइन करने की पूरी मुहिम की हवा निकल गयी. ऐसी स्थिति बनी ही नहीं कि कमलनाथ पत्रकारों को सूचित करते कि आपकी बात सही है और वे बीजेपी में जा रहे हैं. वजह थी खुद बीजेपी में कमलनाथ की आहट को लेकर असंतोष. दिल्ली बीजेपी में चर्चित नेता तेजिन्दर बग्गा ने तो खुला एलान कर दिया था कि बीजेपी कमलनाथ को नहीं लेगी. इससे सिख समुदाय का दिल दुखेगा. तेजिन्दर बग्गा कितने प्रभावी हैं इसे एकतरफ कर दें तब भी कमलनाथ को बीजेपी में एंट्री नहीं मिली- यह तो साबित हो चुकी बात है. एंट्री कमलनाथ ने मांगी थी, इसकी पुष्टि स्वयं कमलनाथ के बयान से होती है कि जब कोई ऐसी खबर होगी तो वे मीडिया को सबसे पहले बता देंगे.
बीजेपी भी हिम्मत न कर सकी
दावे तो यह भी किए गये कि अकाली दल की ओर से कमलनाथ को लेकर एक तरह से वीटो लगा दिया गया था कि कमलनाथ को बीजेपी में स्वीकारने का अर्थ पंजाब में बीजेपी-शिरोमणि अकाली गठबंधन पर इसका बुरा असर. कारण जो हो, कमलनाथ के नजदीकी सज्जन सिंह वर्मा को यह कहना पड़ा कि कमलनाथ कहीं नहीं जा रहे हैं वे कांग्रेस में हैं. वर्मा का दावा था कि राहुल गांधी ने उनसे बात की है और कहा है कि कमलनाथ और नकुलनाथ का कांग्रेस में बड़ा योगदान रहा है. हालांकि कांग्रेस के भीतर सज्जन सिंह के इस दावे पर कोई यकीन करने को तैयार नहीं कि राहुल गांधी ने कमलनाथ को फोन किया और उसके बाद कमलनाथ ने इरादा बदल लिया.
बीते दिनों कांग्रेस के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता को इसलिए कारण बताओ नोटिस दिया गया क्योंकि उन्होंने कहा था कि कमलनाथ कांग्रेस में रहकर बीजेपी के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने ही मध्यप्रदेश में कांग्रेस को हराने का काम किया. हाल की घटना ने आलोक शर्मा का पक्ष मजबूत किया है और स्वयं कांग्रेस का कमजोर जिसने आलोक शर्मा को कारण बताओ नोटिस दिया था. अब लोग कड़ी से कड़ी जोड़ रहे हैं. इंडिया गठबंधन की भोपाल रैली को नहीं होने देने का ऐलान, अखिलेश-वखिलेश कहकर समाजवादी पार्टी को नाराज़ करना, इंडिया गठबंधन के तौर पर मध्यप्रदेश में चुनाव नहीं लड़ना, छिंदवाड़ा रैली में एक बार भी कांग्रेस का नाम नहीं लेना, मुख्यमंत्री मोहन यादव से मुलाकात के बाद छिंदवाड़ा के कलेक्टर का तबादला और स्वयं मुख्यमंत्री का कमलनाथ से मिलने जाना...यानी एक के बाद एक घटनाएं कमलनाथ के कांग्रेस के प्रति निष्ठा पर सवाल बनकर उठ रहे हैं. क्या कांग्रेस में अब इन सवालों का जवाब दे पाएंगे कमलनाथ? कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सामने आखिर क्या मुंह लेकर आएंगे?
(प्रेम कुमार तीन दशक से पत्रकारिता में सक्रिय हैं, और देश के नामचीन TV चैनलों में बतौर पैनलिस्ट लम्बा अनुभव रखते हैं...एक्स पर @AskThePremKumar इनसे संपर्क किया जा सकता है)
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