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This Article is From Sep 19, 2023

महिलाओं को 33% सियासी भागीदारी मिलेगी तो मध्यप्रदेश में कैसी होगी तस्वीर?

देश की संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर बहस चल रही है. अगर सियासी नुमाइंदगी में उनकी 33 फीसद भागीदारी सुनिश्चित होती है तो कानून बनाने वाली देश की पंचायत संसद के साथ-साथ विधानसभाओं की तस्वीर भी बदल जाएगी. 33 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित हो जाने पर मध्यप्रदेश विधानसभा की भी तस्वीर बदल जाएगी

महिलाओं को 33% सियासी भागीदारी मिलेगी तो मध्यप्रदेश में कैसी होगी तस्वीर?

देश की संसद में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर बहस चल रही है. अगर सियासी नुमाइंदगी में उनकी 33 फीसदी भागीदारी (Women Reservation Bill) सुनिश्चित होती है तो कानून बनाने वाली देश की पंचायत संसद के साथ-साथ विधानसभाओं की तस्वीर भी बदल जाएगी. 33 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित हो जाने पर मध्यप्रदेश विधानसभा (Madhya Pradesh Assembly) की भी तस्वीर बदल जाएगी. इसके बारे में भी हम आपको बताएंगे लेकिन इससे पहले जान लेते हैं कि मध्यप्रदेश में मतदाताओं का गणित क्या है?  

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आंकड़ों से जाहिर है कि 230 सदस्यीय विधानसभा में फिलहाल महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी से भी कम है. अब सवाल ये है कि देश की सियासत में आधी आबादी को यदि 33 फीसदी आरक्षण हासिल हो जाए तो राज्य की विधानसभा में तस्वीर क्या होगी. इसी के साथ ये भी जान लेते हैं कि हाल के सालों में महिलाओं की भागीदारी कैसी रही है. 

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अच्छी बात ये है कि इस मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस की एक राय दिखती है लेकिन दोनों में इस अहम फैसले का श्रेय लेने की होड़ मची है. कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शोभा ओझा कहती हैं कि बीजेपी ने 2014 के अपने मैनिफेस्टो में कहा था कि वो महिला आरक्षण बिल लागू करेंगे लेकिन ऐसा करने में उन्हें नौ साल लग गए. अब वे ये बिल इसलिए लेकर आ रहे हैं क्योंकि चुनाव आने वाले हैं और इनकी ज़मीन खिसक गई है. उनको मालूम है कि कमरतोड़ महंगाई के कारण महिलाएं उनसे कितना गुस्सा हैं. 

ये जो बिल आ रहा है इसके लिए मैं स्वर्गीय राजीव गांधी जी को धन्यवाद देना चाहती हूँ क्योंकि ये उनकी सोच थी. वे हमेशा से महिलाओं को आगे बढ़ाना चाहते थे.महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए पहले भी कांग्रेस की सरकार ने कई ऐसे बिल पास किए हैं

शोभा ओझा,

नेता,कांग्रेस

दूसरी तरफ भाजपा की वरिष्ठ नेता अलका जैन इसका श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल को देती हैं.वे बताती हैं कि अटल जी के शासनकल में भी महिला आरक्षण बिल को लेकर कोशिश की गई थी लेकिन तब सफलता नहीं मिली थी.

कटनी में 4 विधानसभा हैं लेकिन कोई महिला विधायक नहीं है ये आरक्षण लागू होने से कम से कम एक महिला प्रतिनिधित्व करेंगी, महिलाओं को भी स्वंय निर्णय लेने के लिये आगे आना होगा

अलका जैन

पूर्व मंत्री, बीजेपी

जाहिर है  कोई नारी सम्मान की बात कर रहा है, तो कोई लाडली बहना की...बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अपने-अपने नेताओं को श्रेय दे रहे हैं लेकिन क्या इसका कोई जवाब देगा कि 75 साल तक आधी आबादी को उसका पूरा हक़ क्यों नहीं मिला? चुनावों के वक्त वो पोस्टरों तक सीमित रही.चुनाव के बाद वहां से भी उनको उतार दिया जाता है. इस कड़वी सच्चाई को पार्टियां कैसे झुठलाएंगी.   

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