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This Article is From Nov 27, 2023

वे खुशनसीब थे जो उस रात मर गए... 37 के परिवार में बचे हैं सिर्फ दो लोग, भोपाल गैस कांड की 39वीं बरसी

गैस निकलने के अगले दिन सब कुछ नॉर्मल हो चुका था, उसके बावजूद अफवाहों का दौर शुरू हो गया. लोग तरह-तरह की अफवाहें फैलाने लगे जिसकी वजह से गैस निकलने वाले दिन से ज्यादा खौफनाक माहैल बन गया था जिसकी वजह से कई लोग भोपाल छोड़कर आस-पास के शहरों में जाने लगे.

वे खुशनसीब थे जो उस रात मर गए... 37 के परिवार में बचे हैं सिर्फ दो लोग, भोपाल गैस कांड की 39वीं बरसी
भोपाल गैस कांड के 39 साल

Bhopal Gas Tragedy: दरअसल अमेरिकन फैक्ट्री 'यूनियन कार्बाइड' (Union Carbide Corporation) नाम को इंसेक्टिसाइड बनाने के लिए भोपाल (Bhopal) में स्थापित किया गया था. फैक्ट्री शुरू होने के बाद भोपाल के लोगों को लग रहा था कि अब उनके खुशहाली के दिन आएंगे और उनको फैक्ट्री की वजह से रोजगार मिलेगा. मगर 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात एक ज़बरदस्त धमाके (Blast) ने पूरे भोपाल में कोहराम मचा दिया. उस धमाके ने ऐसे ज़ख्म दिए जिनका इलाज आज भी हज़ारों परिवार ढूंढ़ रहे हैं, जिनके जले हुए दामन इस बात के गवाह हैं. उस रात यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली करीब 40 टन ज़हरीली एम.आई.सी गैस (MIC Gas) ने एक भयानक हादसे को अंजाम दिया था. 

कारखाने के प्रबंधन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम करने में लापरवाही बरती थी जिसकी वजह से पानी और अन्य पदार्थो ने एमआईसी के स्टोरेज टैंक में घुसकर एक उग्र क्रिया शुरू की. इस क्रिया की वजह से बने पदार्थ ज़हरीली गैस के रूप में बाहर निकले जो हवा से भारी थी और भोपाल के करीब 40 वर्ग मीटर इलाके में फेल गई. गैस के असर से शहर में सरकारी आकड़ों के हिसाब से 15 हजार लोग मारे गए और लाखों लोग घायल हुए. वह रात बहुत खौफनाक रात थी. उस रात को हर तरफ हाहाकार मचा हुआ था. लोग अपने घरों से निकलकर बेतहाशा भाग रहे थे. कहीं पर लाशों के ढेर लगे थे, कहीं कोई चीख रहा था, कहीं कोई रो रहा था. उस रात को जिन लोगों ने देखा वे आज भी खौफ से कांप उठते हैं.

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37 लोगों के परिवार में बचे हैं सिर्फ 2 लोग

गैस पीड़ितों की हक की लड़ाई लड़ने वाली और खुद गैस पीड़ित और अपने परिवार के कई लोगों को गैस त्रासदी में खोने वाली रशीदा बी कहती हैं कि 1984 से पहले हमें नहीं मालूम था कि यूनियन कार्बाइड नाम की भी कोई चीज यहां पर है और इस तरह की कोई गैस बनाई जाती है. 2 दिसंबर 1984 की रात हम लोग सोने जा रहे थे. नींद लगने ही वाली थी कि बाहर से आवाज आना शुरू हुई, 'भागो, भागो सब मर जाएंगे'. हमारी नंद के लड़के ने बाहर जाकर देखा तो लोग सैलाब की तरह भागते हुए आ रहे थे. किसी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था. ऐसा लग रहा था कि मिर्ची के गोदाम में आग लग गई है. हमारी जॉइंट फैमिली थी जिसमें 37 लोग थे. सर्दियों के दिन थे. सभी ने उठ-उठकर भागना शुरू कर दिया. हम भी बाहर निकले और आधा किलोमीटर भी नहीं जा पाए थे कि आंखें बड़ी-बड़ी हो गईं. ऐसा लग रहा था कि सीने में आग लग गई है.

रशीदा ने आगे बताया, 'तकलीफ ऐसी थी कि उस दिन मौत प्यारी लग रही थी. लोग चीख रहे थे. जो गिर गया वह उठ नहीं पाया. दिन के आलम को बयां करने में ना सुबह में ताकत है, ना दिल में हिम्मत है कि उस दिन क्या आलम था. अगले दिन सुबह ऐलान हुआ कि यूनियन कार्बाइड की गैस बंद हो गई है तो हमने उस दिन यूनियन कार्बाइड का नाम सुना. गाड़ियां आईं और हम लोग को उठाकर अस्पताल ले गईं. अस्पताल में भी किसी को नहीं मालूम था कि क्या इलाज करना है. लोग अस्पताल आ रहे थे और मर रहे थे. गेहूं के बोरों की छल्ली की तरह लाशों की थप्पी लगी हुई थी. अस्पताल में एक तरफ हमारे अब्बा लेटे हुए मिले. उनके मुंह से खून आ रहा था. हमारे जेठ के घरवालों को किसी ने बरेली के अस्पताल में ले जाकर छोड़ दिया था. लगभग 2 साल के बाद अलग-अलग कर जेठ के परिवार के लोगों को गंभीर बीमारियां हुईं और सब लोग खत्म हो गए.'

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'जो उस दिन मर गए, खुशनसीब थे'

उन्होंने बताया,

'परिवार में से सिर्फ दो लोग बचे हैं. बाकी सब खत्म हो गए.'

'वे लोग खुशनसीब थे जो उस रात खत्म हो गए या फिर उसके दो-चार दिन बाद खत्म हुए. जो बदनसीब थे वे आज भी जिंदा हैं और तिल-तिल कर मर रहे हैं. जो उस समय बच्चे थे जिनकी बाद मे शादियां हुईं, अब उनके बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं. कोई देखने वाला नहीं है. मुआवज़े के नाम पर सरकार ने धोखा दिया है. 25-25 हज़ार मुआवजा दिया है, वह भी 200 रुपए महीना कर 7 साल तक दिया. फिर बाद में 10,400 रुपए हाथ में दिए. यह टोटल मुआवजा है जिसके बाद दोबारा कभी कोई बात नहीं सुनी है. अस्पताल के लिए बिल्डिंग तो बना दी लेकिन ना तो उसमें डॉक्टर हैं ना दवाएं. आज तक सरकार यूनियन कार्बाइड से यह पता नहीं कर पाई कि इसका इलाज क्या है. लोगों को कैसे बचाया जाए.'

'उनके दस्तावेजों में साफ लिखा है कि जिसके अंग में यह गैस पहुंच गई उसकी तीन पीढियों तक बच्चे विकलांग पैदा होंगे.'

'लेकिन सरकार ने ना तो विकलांगता का कोई इलाज पता किया और ना उनसे इलाज पता कर सकी. सरकारी यूनियन कार्बाइड की डाउ केमिकल की दलाल हैं. हमने गैस पीड़ितों की लड़ाई लड़ते समय पूरी दुनिया के सामने अपनी बात रखी है.'

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एक ही चिता पर जलाए गए कई-कई लोग

गैस निकलने के अगले दिन सब कुछ नॉर्मल हो चुका था, उसके बावजूद अफवाहों का दौर शुरू हो गया. लोग तरह-तरह की अफवाहें फैलाने लगे जिसकी वजह से गैस निकलने वाले दिन से ज्यादा खौफनाक माहैल बन गया था जिसकी वजह से कई लोग भोपाल छोड़कर आस-पास के शहरों में जाने लगे. गैस निकलने के दो-तीन दिन बाद तक कब्रिस्तानों और शमशानों में बड़ा ही अजीब नज़ारा था.'

'एक-एक गद्दे में कई-कई लोगों को दफनाया गया. एक ही चिता पर कई-कई लोगों को जलाया गया. उस वक़्त के भोपाल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल हमीदिया हॉस्पिटल में मरीजों का अम्बार लगा हुआ था.'

'हालात यह थे कि मरीज़ ज्यादा और डॉक्टर काफी कम थे. यही नहीं जिन लोगों को उस वक्त गैस लगी थी वे आज तक उसका शिकार हैं. भोपाल में गैस पीडितों और उनके परिवारों को आज भी तरह-तरह की बीमारियों ने घेरा हुआ है.

35 साल तक लड़ी लड़ाई

गैस पीड़ितों के हकों की लड़ाई लड़ने वाले गैस पीड़ित संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने 35 सालों से ज्यादा समय तक भोपाल गैस हादसे के पीड़ितों की लड़ाई लड़ने के बाद इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं. मगर ना  मुतासरीन को कोई मुआवजा मिला, ना कोई मेडिकल मिला, ना कंपनी को सजा दी गई. अदालतों ने जो गैस पीड़ितों को दिया है वह सिर्फ नाम मात्र है और इसमें केंद्र और राज्य सरकार कुछ नहीं कर रही हैं. 39 साल बाद अदालत में जूनियर कार्बाइड कंपनी को पेशी पर बुलाया है तो उनके लोग आने से बच रहे हैं और तारीख पर तारीख बढ़ाई जा रही है.

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3 से 23 फीसदी बढ़ गया कंपनी का बिजनेस

गैस पीड़ितों के हक की लड़ाई लड़ने वाले संगठन की रचना ढींगरा कहती हैं कि यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी जिसे 'विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी' के रूप में भी जाना जाता है. बहुत से लोग यह नहीं जानते कि वह हादसा आज भी लोगों की जिंदगी में जारी है. 2 लाख से ज्यादा लोग हैं जिनका भूजल रसायनों से प्रदूषित है जिसकी वजह से बच्चों में जन्मजात विकृतियां होती हैं. किसान के जिगर, मस्तिष्क और गुर्दे को नुकसान पहुंचता है.'

'आज भी वह कचरा वहीं दबा हुआ है जिसकी वजह से वह रोज नए लोगों को अपने ज़हर की गिरफ्त में लेता है.'

'कहने को तो सरकार ने डाउ केमिकल से इसकी सफाई के लिए पैसा मांगा है लेकिन उस पैसे को मांगे आज 13 साल हो गए. ना तो कोई पैसा आया है, ना कोई सफाई हुई और प्रदूषण बढ़ता ही गया है. जो कंपनी इसके लिए जिम्मेदार है उसका व्यापार इस देश में 3 से 23% बढ़ गया है. इतने लोगों को मारने और इससे ज्यादा लोगों को घायल करने की जिम्मेदार कंपनी और लोगों को एक भी दिन की जेल नहीं हुई. 8 भारतीय लोगों को भी दोषी पाया गया था, उसमें से एक भी इंसान दोषी पाए जाने के बाद भी जेल नहीं गया है.

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वर्तमान सरकार से है लोगों को उम्मीद

उन्होंने कहा, 'विदेशी कंपनियों की बात करें तो यूनियन कार्बाइड कंपनी, जिसे हमारे देश की अदालत ने 1992 में भगोड़ा घोषित किया था, अक्टूबर के महीने में ही 36 साल बाद एक विदेशी कंपनी भोपाल के कटघरे में खड़ी हुई है. वह भी इसलिए कि गैस पीड़ितों के संगठन इसके लिए हमेशा से लड़ते आए हैं. आज भी उसमें तारीख पर तारीख ही हो रही है. कुल मिलाकर उसमें भी कुछ नहीं हुआ है.'

'इस केस को सीबीआई हैंडल कर रही है तो जो लोग बोलते हैं कि इस केस में कांग्रेस का हाथ है, अब बीजेपी को यह दिखाने की जरूरत है वे अलग कैसे हैं.'

'प्रदूषण के मामले में तो हमने देख लिया अभी तक उस कंपनी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. अब हम डाउ केमिकल के मामले में भी देखना चाहते हैं कि सीबीआई प्रधानमंत्री के अंडर है. वह उन पर कुछ लगाम कसेगी, उनकी असेट्स को इस देश में अटैच करेगी कि नहीं ताकि लोगों को यहां कम से कम इंसाफ तो मिल सके क्योंकि इज्जत की जिंदगी तो सरकार अभी तक नहीं दे पाई है.'

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