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Soil Health: 15 जिलों की मिट्‌टी में नाइट्रोजन की कमी; MP में खेती की जमीन की सेहत पर संकट, ऐसे हैं आंकड़ें

Soil Health Card Report: वैज्ञानिक मानते हैं कि समय से मिट्टी परीक्षण जरूरी है खासतौर से बुवाई से पहले खेत की मिट्टी को जांचना बेहद जरूरी है, लेकिन मध्य प्रदेश में मिट्टी परीक्षण की लैब कागजों में चलती दिखाई देती हैं. मिट्टी परीक्षण के लिए ये कितनी कारगर हैं उनकी तस्वीर भी कई बार अलग-अलग तरीके से सामने आई हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि मिट्टी परीक्षण के लिए सरकारी व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं या फिर मध्य प्रदेश का किसान जागरुक नहीं.

Soil Health: 15 जिलों की मिट्‌टी में नाइट्रोजन की कमी; MP में खेती की जमीन की सेहत पर संकट, ऐसे हैं आंकड़ें
Soil Health: 15 जिलों की मिट्‌टी में नाइट्रोजन की कमी; MP में खेती की जमीन की सेहत पर संकट, ऐसे हैं आंकड़ें

Soil Health Report: मध्य प्रदेश में खेती की जमीन की सेहत बिगड़ने की कगार पर है. प्राप्त जानकारी के अनुसार नाइट्रोजन की कमी के चलते जमीन में पैदावार का संकट खड़ा हो गया है. रबी की फसल को लेकर मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड सर्वे की जानकारी में सामने आया है कि मध्य प्रदेश के 15 जिलों में नाइट्रोजन की कमी है. इन जिलों में ग्वालियर, भिंड, मुरैना, शिवपुरी अशोक नगर, गुना, विदिशा, रायसेन, नर्मदापुरम, हरदा और बैतूल जैसे जिले शामिल हैं, यहां 70% से अधिक कृषि खेतों में नाइट्रोजन स्तर निर्धारित मानक से काफी कम देखा गया है. आइए जानते हैं क्या है मिट्‌टी की सेहत का हाल.

क्या हैं नुकसान?

जानकारों का मानना है कि इस वजह से रबी फसलों में गेहूं और चना के पौधों में पैदावार कम होने का खतरा बढ़ गया है. सर्वे के अनुमान बताते हैं कि यहां 20 से 25% तक पैदावार घट सकती है जो मध्य प्रदेश के लिए बड़ी चिंता की बात है. दूसरी बड़ी बात इस सर्वे से निकल आयी है कि मध्य प्रदेश के शिवपुरी, नीमच, सागर और शहडोल जिलों में कई खेतों से फास्फोरस भी कम रिकॉर्ड किया गया है.

मृदा वैज्ञानिक जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के डॉक्टर विरेंद्र स्वरूप द्विवेदी का मानना है कि इस वजह से जमीन में बीज का अंकुरण प्रभावित हो सकता है. वह बताते हैं कि इस वजह से पौधों की जड़े ज्यादा गहरी नहीं जाएगी और पौधों को समय से पकने पर संकट के दौर से गुजरना पड़ेगा. वैज्ञानिक बताते हैं कि खेतों में बिना जांच पड़ताल के खाद का डालना घातक हो सकता है और जिन फसलों में खाद दी जाती है उनमें गेहूं चना जैसी फसले प्रभावित होती है.

वैज्ञानिक मानते हैं कि समय से मिट्टी परीक्षण जरूरी है खासतौर से बुवाई से पहले खेत की मिट्टी को जांचना बेहद जरूरी है, लेकिन मध्य प्रदेश में मिट्टी परीक्षण की लैब कागजों में चलती दिखाई देती हैं. मिट्टी परीक्षण के लिए ये कितनी कारगर हैं उनकी तस्वीर भी कई बार अलग-अलग तरीके से सामने आई हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि मिट्टी परीक्षण के लिए सरकारी व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं या फिर मध्य प्रदेश का किसान जागरुक नहीं.

क्या है वैज्ञानिक सलाह?

कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि नाइट्रोजन कम होने पर यूरिया किस्तों में दे रहे हैं और साथ में गोबर खाद खेतों में डाल रहे हैं, साथ में वर्मी कंपोस्ट को मिला रहे हैं तो अपने आप नाइट्रोजन का बैलेंस बना रहता है. किसानों को यह भी सलाह दी जाती है कि फास्फोरस अगर जमीन में कम है तो एसएसपी डीएपी बुवाई के समय खेतों में देना जरूरी है. साथ ही खेत की मिट्टी में फॉस्पो कंपोस्ट मिलना भी फायदेमंद हो सकता है. इसी तरह खेतों में अगर पोटाश की कमी है तो उसे भी उचित मात्रा में खेतों की मिट्टी में मिलाने से फसल अच्छी पैदा होती है. अगर मिट्टी में पोटाश ज्यादा है तो उसके संतुलन के लिए सल्फर जिंक पर ध्यान दें. जिंक कम होने पर सल्फेट का छिड़काव करें या मिट्टी में बसल डोज मिले आयरन कम होने पर आयरन सल्फेट का छिड़काव करें और खेत में जैविक खाद्य पदार्थ मिलाने की कोशिश करें.

कृषि विज्ञान केंद्र शिवपुरी के कृषि वैज्ञानिक डॉ मुकेश भार्गव बताते हैं कि "किसानों को मिट्टी परीक्षण की सलाह दी जाती है और उन्हें यह सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि कि पोषक तत्व मिट्टी में किस लेवल के हैं, उस लेवल के अनुसार अगर वह फसल में खाद पानी देंगे तो उनकी फसल की पैदावार अच्छी होगी और अगर वह मिट्टी परीक्षण को अनदेखा कर फसल की बुवाई कर देंगे तो फिर पैदावार पर उसका असर पड़ेगा. शिवपुरी जिले की कृषि जमीन में कई पोषक तत्वों की कमी है और उसे लेवल में लाने के लिए हम किसानों को समय-समय पर गाइडलाइन और मार्गदर्शन देने का काम करते हैं"

मिट्टी की जांच क्यों है जरुरी?

कृषि वैज्ञानिक किसानों को सलाह देते हुए बताते हैं कि नाइट्रोजन और फास्फोरस के अलावा मध्य प्रदेश की मिट्टी में अन्य पोषक तत्वों का भी बड़ा असंतुलन है. शिवपुरी, देवास, अलीराजपुर और छतरपुर के कुछ हिस्सों में पोटाश कम मिलता है तो वहीं बैतूल, भिंड और सतना में जिंक की कमी देखी जाती है.

आयरन की कमी की बात करें तो किसानों को सलाह देते हुए कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि मध्य प्रदेश के रीवा, सिंगरौली, सीधी, शिवपुरी, बैतूल और बेस्ड निमाड़ जैसे जिलों में आयरन की कमी रिकॉर्ड की गई है. ऐसे में इस इलाकों में खेती करने वाले किसानों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है. कृषि वैज्ञानिक यहां तक मानते हैं कि मध्य प्रदेश की धरती के कई हिस्सों में PH लेबल भी असंतुलित है. जिन इलाकों में इसकी कमी देखी जाती है वह ग्वालियर, भिंड, मुरैना और शिवपुरी की मिट्टी अम्लीय है, जबकि छतरपुर, पन्ना और टीकमगढ़ की मिट्टी क्षारीय है, यही वजह है कि इन इलाकों में इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

मध्य प्रदेश की धरती के तीन लक्षण

लवणीय मिट्टी इस मिट्टी का पीएच लेवल 8.8 से 9.3 तक रिकॉर्ड किया जाता है, जहां पौधे पर्याप्त पानी धरती से नहीं खींच   पाते, वहां बीज के अंकुरण में भी दिक्कत आती है और पौधे की पत्तियां पीली हो जाती हैं. इसके समाधान के लिए वैज्ञानिक बताते हैं कि इस तरह की मिट्टी में नमक को ज्यादा सहन करने वाली फसलों को पैदा करना ज्यादा बेहतर रहता है और अगर इस खेत में गोबर खाद का उपयोग किया जाए तो खेतों में पैदा होने वाली फसल अच्छा उत्पादन देती है.

इसी तरह क्षारीय मिट्टी जब इस मिट्टी का पीएच लेवल 9.3 से अधिक होता है तो इसमें सोडियम की मात्रा अधिक पाई जाती है. यह मिट्टी सख्त हो जाती है, दरार युक्त और चिपचिपी देखी जाती है, जिसमें पानी आसानी से नीचे नहीं उतरता और अगर इस मिट्टी में चना और सरसों जैसी फसल पैदा की जाए तो बेहतर होता है और बेहतर परिणाम के लिए अगर प्रत्येक हेक्टर एक से 2 टन जिप्सम डाला जाए तो बेहद लाभकारी साबित हो सकता है.

अब तीसरी मिट्टी है अम्लीय मिट्टी. इस मिट्टी को लेकर कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका पीएच लेवल 6.5 से कम होने पर मिट्टी अम्लीय मानी जाती है, पौधों की जड़ कमजोर हो जाती हैं, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है और इस मिट्टी में अगर जुताई से पहले चूने का उपयोग किया जाए तो किसानों के लिए यह मिट्टी फायदेमंद हो सकती है.

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