
Shivraj Singh Chouhan Birthday: शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) एक ऐसा चिरपरिचित नाम है जो केवल मध्य प्रदेश बल्कि पूरा देश में अपनी अलग पहचान स्थापित कर चुका है. प्रदेश की जनता के बीच अपनी पैठ जमा चुके शिवराज सिंह चौहान बहुत ही सरल, सहृदय, मिलनसार, हंसमुख और सहज इंसान हैं, तभी तो वे जनता के बीच पांव-पांव भैया, बहनों के लाडले भाई और बच्चों के बीच मामा के नाम से लोकप्रिय हैं. कभी सबसे कम उम्र में एमपी के सीएम बनने वाले शिवराज सबसे लंबे समय तक प्रदेश का नेतृत्व किया इसके बाद इस समय वे मोदी कैबिनेट में केंद्रीय कृषि विभाग और ग्रामीण विकास विभाग जैसे अहम पोर्टफोलियो संभाल रहे हैं. शिवराज सिंह के 66वें जन्मदिवस पर उनके जीवन पर प्रकाश डालने की यहां पर कोशिश की गई है.
बिन ‘साधना' अधूरे हैं ‘शिव' Shivraj Singh Chouhan Wife Love Story
कहा जाता है कि हर सफल पुरूष के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता हैं, शिवराज सिंह जी की सफलता के पीछे उनकी धर्मपत्नी मती साधना सिंह का हाथ हैं, शिवराज सिंह शादी की बात को अक्सर टालते रहते थे लेकिन पिता जी ने बहुत समझााया लेकिन वे कहां मानने वाले थे मजबूरन उनके पिता को उनसे छोटे भाई और बहन की शादी उनसे पहले करनी पड़ी, 1992 में जब शिवराज सिंह 33 वर्ष के हो गये तो उनकी बहन ने जिद करके उनको शादी के लिये आखिरकार मना ही लिया.
1992 में शिवराज सिंह जी ने गोंदिया के मतानी परिवार के बेटी के साथ सात फेरे में लिये थे, आज उनके जीवन में दो पुत्र कार्तिकेय और कुणाल भी खुशियों का रंग घोल रहे हैं. अब दोनों बच्चों की शादी भी हो गई है. दिन हो या रात सर्दी हो गर्मी हर समय हर मौसम उनका साथ देने वाली साधना जी चुनावों के दौरान और विभिन्न अवसरों पर चौहान के साथ हर जगह पहुंचने की कोशिश करती हैं, तमाम परेशानियों और थका देने वाले आपाधापी में भी वो शिवराज का साथ बड़ी ही शिद्दत से देती हैं.

Shivraj Singh Chouhan Birthday: परिवार के साथ शिवराज सिंह
शिवराज सिंह चौहान बताते हैं कि सार्वजनिक जीवन में सामान्य परिवार की तरह जीवन नहीं जी सकते. मैंने पत्नी से शादी के पहले ही कहा था कि इस पहलू को ध्यान में रखना. ऐसा नहीं कि सबेरे घर से निकले और शाम को घर आ गए. दोपहर में साथ खाना खा रहे हैं. ये नहीं हो पाएगा और उन्होंने स्वीकार किया और आदर्श पत्नी की तरह मेरा साथ निभाया. शिवराज जी भी अपनी पत्नी की तारीफ करते नही थकते हैं वे कहते हैं कि मै घर की चिंताओं से मुक्त हो कर राजनीति करता हूँ क्यों मेरी पत्नी साधना बहुत ही समझदार और एडजस्टिंग महिला हैं.
शिवराज सिंह का जीवन Shivraj Singh Chouhan Life
5 मार्च 1959 के दिन प्रेमसिंह और सुंदरबाई चौहान के घर जन्में शिवराज सिंह चौहान बचपन से ही जुझारू व संघर्षशील रहे है. मध्यमवर्गीय किसान परिवार में पले-बढ़ें शिवारज सिंह चौहान आज भले ही केंद्रीय मंत्री जैसे अहम पद का निर्वहन कर रहे हो लेकिन आज भी उनके अंदर गांव का साधारण व्यक्तित्व जिंदा है. जिसको आप उनसे मिलने के दौरान देख सकते हैं, शिवराज सिंह चौहान अपने गांव और वहां के परिवेश को आज भी बहुत याद करते हैं, उनके अंदर अपनो की कितनी यादें आज भी जिंदा हैं. ये तो आप उनके भाषण व वक्तव्य में प्रसंगवश ही देख ही सकते हैं.
एक विशुद्ध किसान परिवार से ताल्लुक़ रखने वाले चौहान दर्शनशास्त्र से एम.ए किया वह भी गोल्ड मेडलिस्ट डिग्री के साथ, किसी को अपना दुश्मन न मानने वाले मिलनसार व्यक्ति चौहान राजनीति को भी दर्शन के नजरिये से देखते हैं, उनके आलोचकों का कहना हैं कि शिवराज किसी भी मुद्दे पर स्टैण्ड नही लेते हैं क्योंकि वे डर जाते है.

छात्र जीवन से ही थी नेतृत्वकर्ता की क्षमता Shivraj Singh Chouhan Leadership
एक कहावत है कि ‘‘पूत के पांव पालने मे ही दिख जाते हैं'' ये बात शिवराज सिंह पर शत प्रतिशत चरितार्थ होती है. शिवराज सिंह किशोरावस्था में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रभावित हो संगठन की सदस्यता ग्रहण की थी, 1975 में विद्यालय समय के दौरान सिंह छात्र यूनियन की ओर से अपने विद्यालय ‘मॉडल हायर सेकण्डरी स्कूल' के अध्यक्ष चुने गये और यहीं से साल दर साल उनके पदो में इजाफा होता गया छात्र नेता के रूप में सिंह 1977-78 में अखिल भरतीय विद्यार्थी परिषद म.प्र. के संगठन सचिव बने, 1978-80 में संयुक्त सचिव, 1980-82 में महासचिव, और 1982-83 में मध्य प्रदेश की ओर से अखिल भारतीय भारती विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य नियुक्त किये गए.
- राजनीतिक पारी की शुरूआत शिवराज सिंह ने 1984-85 में भारतीय जनता युवा मोर्चा मप्र इकाई के संयुक्त सचिव के रूप में की थी, पार्टी में निचले स्तर से अपनी जड़े जमाते हुये चौहान आज राजनीति के वन में वट वृक्ष का आकार ले चुके हैं.
- राजनीति न तो उन्हे विरासत में मिली न ही उन्हें तोहफे के रूप में मिली. राजनीतिक जीवन में उन्होंने जो मुकाम हासिल किया है, वह अपने ही बलबूते किया है.
- 1985-88 में म.प्र. युवा मोर्चा के महासचिव बने, 1988-91 में म.प्र. युवा मोर्चा के अध्यक्ष बनाये गये और इसी दौरान वे पहली बार 1990में बुधनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गये और अगले ही वर्ष 1991 में विदिशा संसदीय क्षेत्र से पहली बार संसद बने.
- शिवराज सिंह चौहान 1991-92 के दौरान अखिल भारतीय केसरिया वाहनी के संरक्षक के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं.
- 1992-96 तक मानव संसाधन विकास मंत्रालय सलाहकार समिति के सदस्य 1996-97 में शहरी एवं ग्रामीण विकास समिति, 1997-98 में हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे.
- 1997 से 2000 तक म.प्र. भाजपा के महासचिव पद पर रहे, 1998-99 में कार्यान्वयन समिति के सदस्य 1999-2000 में कृषि विकास और लोकउपक्रम समिति के सदस्य रहे, 2000-2004 तक संचार मंत्रालय सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं.
- 2005 में उन्हे भाजपा प्रदेशाध्यक्ष का पद सौंपा गया और इसी साल नवंबर में उन्हे प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी गयी, 2007 में हुये विधानसभा चुनाव में 143 सदस्यों के साथ दिसंबर में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और एक बार फिर 14 दिसंबर 2013 को लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत वाली सरकार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की थी.
- मप्र के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह चौहान ने पहली बार 1990 में बुधनी विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी. इसके बाद साल 2006 में उपचुनाव जीतने के बाद उन्होंने 2008, 2013 और 2018 में यह सीट अपने पास बरकरार रखी. 2018 में बीजेपी के हारने के बाद सिर्फ 15 महीनों के लिए कमलनाथ सत्ता में आए लेकिन 2020 में एक बार फिर कुर्सी पर शिवराज सिंह चौहान की वापसी हो गई.
- 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में विदिशा से लोकसभा सांसद भी रहे.

चुनौतियों को हमेशा से चुना
बाहर से साधारण और कमजोर दिखने वाले शिवराज सिंह अंदर से बहुत ही मजबूत इंसान हैं. सकारात्मक ऊर्जा से भरा ये इंसान हार मानना तो कभी सीखा ही नहीं. कर्तव्य को अपना धर्म समझने वाले शिवराज चुनौतियों से भागने के बजाय उनका डटकर सामना करते हैं और विवेकानंद के कहे अनुसार कार्य पूरा न होने तक उसमें लगे रहते हैं.
ऐसा पहली बार नही हैं शिवराज सिंह चौहान जी इससे पहले भी कई बार अपनी दृढ़ निश्चय के बल पर कई चुनौती को साकार किया है, उन्ही में से एक घटना हैं आगरा का राष्ट्रीय अधिवेशन उस समय शिवराज सिंह चौहान युवा मोर्चा में अहम पद पर थे और संपूर्ण अधिवेशन को वे ही संचालित कर रहे थें, उनके दिशा-निर्देश में आयाेजित इस कार्यक्रम में देशभर से आये 62 हजार युवाओं की तंबुओं में रहने की व्यवस्था की गई थी. अधिवेशन में कोई कसर न रह जाये इस लिये शिवराज सिंह महीने भर लगातार दिल्ली से आगरा तक अप डाउन करते रहे, इतना ही नहीं शिवराज सिंह खुद विभिन्न राज्यों में जाकर युवाओं को जोडने के साथ-साथ उन्हें कार्यक्रम में आने के लिये प्रेरित किया.
कार्यक्रम के समापन अवसर अटल जी ने जहां शिवराज सिंह की प्रसंशा करते हुये कहां कि "मैं आगरा कई बार आया लेकिन इस बार जब मैं आकाश से नीचे देखा तो यह सोचने में विवश हो गया कि ये तंबुओं का आगरा कैसे बन गया, शिवराज ने असंभव को संभव करके दिखाया है." प्रमोद महाजन ने यहां तक कहा कि "यदि आज मुझे कोई मोर्चे का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दे तो मैं वह नहीं कर पाऊँगा जो शिवराज जी ने आज यहां किया हैं."
जीवन का टर्निंग पॉइंट
शिवराज सिंह चौहान जी के जीवन की एक चुनौतीपूर्ण घटना ये भी है, जिसे वे अपने जीवन का टर्निंग प्वाइंट भी मानते हैं. ये घटना है 1988 की बहुचर्चित क्रांति मशाल यात्रा, उस समय चौहान म.प्र. और छत्तीसगढ़ के गांव-गांव जाकर युवाओं को आह्वान्वित किया और यात्रा का हिस्सा बनने के लिये प्रेरित भी किया, उन्होंने यात्रा समापन के अवसर पर भोपाल में 40 हजार युवा जुटाने और राजमाता विजयाराजे सिंधिया को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाने की बात जब कुशाभाऊ ठाकरे और प्यारेलाल खण्डेलवाल को बतायी तो उन्हें शिवराज के इन आंकड़ों में भरोसा ही नहीं हुआ, लेकिन शिवराज सिंह चौहान के दृढ़ निश्चय, विश्वास और अद्भुत उत्साह के चलते 7 अक्टूबर 1988 को भोपाल में यात्रा के समापन अवसर पर जब उनके आंकड़ों के मुताबिक युवा आये तो वहां पधारे अतिथितियों के लिये ये किसी सपने से कम नही था, कहा जाता है कि यही घटनाक्रम शिवराज की राजनीतिक यात्रा का टर्निंग प्वाइंट बना.
सत्ता को सेवा का मंच बनाया
आज की स्वार्थ भरी राजनीति में विरले ही नेता ऐसे होते जोकि नि:स्वार्थ भाव से जनता की संवेदनाओं को समझते हुये जन सेवा को परम धर्म मानते हुये पूर्ण रूपेण उनकी सेवा में तत्पर रहते हैं, उन्ही विरले नेताओं में से एक हैं शिवराज सिंह जिन्होंने सत्ता को सेवा का मंच बनाते हुये हर धर्म, जाति, वर्ग और समुदायों के लिये हितकारी योजनाओं की झड़ी सी लगा दी, उन्हाेने सत्ता के मंच से इतनी घोषणाएं की है कि लोग उन्हे घोषणावीर के नाम भी पुकारने लगे, शिवराज सिंह मंच से न केवल योजनाओं और घोषणाओं को गिनवाते हैं बल्कि उनमें अमल भी करवाते हैं.
शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता के मंच से हर वर्ग को कुछ न कुछ देने का प्रयास किया है, नवजात शिशु की सुरक्षा से लेकर वृद्ध लोगों को तीर्थ कराने तक का काम उन्हाेंने किया. धर्म, जाति और वर्ग से ऊपर उठकर उन्होंने सबको समान रूप से देखने वाले शिवराज सिंह अब लखपति दीदी और ड्रोन दीदी जैसे कार्यक्रमों पर जोर दे रहे हैं.
शिवराज ही भजपा, भाजपा ही शिवराज
पिछले कुछ सालों में मध्यप्रदेश में हालात कुछ ऐसे बने थे कि यदि शिवराज सिंह चौहान को भुला दिया जाये तो यहां भाजपा शिफर नजर आने लगी थी, या यो कहे कि भाजपा शून्य सी दिखती थी. चाहे वर्ष 2013 का विधान सभा चुनाव हो या 2014 का आम चुनाव दोनों में ही शिवराज नाम को ढाल बनाकर भाजपा ने प्रदेश के घर-घर जाकर जनसंपर्क किया लोकसभा चुनाव में जहां एक ओर पूरे देश में मोदी लहर देखने को मिली वही दूसरी ओर मप्र में शिवराज की बयार थी, पार्टी की ओर से फिर भाजपा फिर शिवराज जैसे नारों का उद्घोष किया जा रहा था. पार्टी ने चुनावों में शिवराज सिंह की लोकप्रियता को अच्छा खासा भुनाया है.
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