
MP High Court Gwalior Bench: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने एक बड़ा फैसला दिया है, जिसमें कहा गया है कि किसी कोर्ट का फैसला पुराने समय के निर्णयों और आदेशों को प्रभावित नहीं कर सकता. यह फैसला लोक निर्माण विभाग के एक सब इंजिनीयर की याचिका पर दिया. सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को आधार बनाकर सरकार ने सब इंजिनीयर को रिबर्ट कर दिया था, जबकि उसे यह पदोन्नति सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य मामले मे आये फैसले के पहले ही दी जा चुकी थी.
क्या है मामला?
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने लोक निर्माण विभाग (PWD) के सब इंजीनियर प्रवीण नामदेव के मामले में न्यूनतम वेतनमान पाने के सिद्धांत पर सुप्रीम कोर्ट के 8 साल पुराने आदेश को निरस्त कर राहत दी है. हाईकोर्ट ने कहा है कि जब सब इंजीनियर को साल 1993 के आदेश के मुताबिक श्रम न्यायालय के आदेश से नियमित कर दिया गया है, तो उस पर नए दिशा निर्देश लागू नहीं हो सकते.
सब इंजीनियर के अधिवक्ता देवेश शर्मा ने बताया कि श्रम न्यायालय ने सितंबर साल 1993 से स्थाई वर्गीकरण के आदेश हुए थे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को कंफर्म कर अप्रैल साल 2006 को राज्य सरकार की SLP खारिज की थी. इसके बाद विभाग द्वारा सब इंजीनियर को जनवरी साल 2009 के अनुसार नियमित किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने सर्वोच्च न्यायालय स्थाई वर्गीकृत कर्मचारी को न्यूनतम वेतन लाभ देने के आदेश जारी किए. इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई हाईकोर्ट ने माना कि सब इंजीनियर सभी हितलाभ पाने का अधिकारी है.
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