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Court of Snakes: सांपों की अदालत; MP में यहां नाग देवता खुद देते हैं गवाही, 100 साल से जारी है अनोखी पेशी

Naag Peshi Sehore: गांव लसूडिया परिहार सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था का प्रतीक बन चुका है. यहां न कोई डॉक्टर है, न अस्पताल, फिर भी हर दीपावली के दूसरे दिन यहां जीवन लौट आता है. कांडी की धुन, हनुमानजी की मडिया और हजारों श्रद्धालुओं की आस्था मिलकर इस धरती को एक दिव्य न्यायालय बना देती है.

Court of Snakes: सांपों की अदालत; MP में यहां नाग देवता खुद देते हैं गवाही, 100 साल से जारी है अनोखी पेशी
Court of Snakes: सांपों की अदालत; MP में यहां नाग देवता खुद देते हैं गवाही, 100 साल से जारी है अनोखी पेशी

Court of Snakes: मध्य प्रदेश में सीहोर जिले के लसूडिया परिहार गांव में दीपावली के दूसरे दिन एक ऐसा दृश्य देखने को मिलता है, जो आधुनिक विज्ञान को भी हैरान कर देता है. यहां 100 साल से अधिक पुरानी परंपरा “सांपों की अदालत” (Court of Snakes) आज भी पूरी आस्था के साथ निभाई जाती है. इस अदालत में सर्पदंश से पीड़ित लोग अपने डसने का कारण जानने आते हैं और मान्यता है कि स्वयं नाग देवता मानव शरीर में प्रवेश कर इस बात का जवाब देते हैं कि आखिर उन्होंने (नाग ने) क्यों डसा था?

दीपावली के दूसरे दिन लगती है अदालत

जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर, दीपावली के दूसरे दिन हनुमानजी की मडिया में यह अनोखी अदालत लगती है. कांडी और भरनी की धुनों पर सर्पों को बुलाया जाता है. जैसे ही संगीत गूंजता है, पीड़ितों में से कुछ लोग नाग की तरह लहराने लगते हैं और बताया जाता है कि उस वक्त उनमें नागदेवता की आत्मा प्रवेश करती है. हजारों श्रद्धालु यह दिव्य दृश्य देखने दूर-दूर से पहुंचते हैं.

कांडी की लय पर आते हैं नाग

मंदिर परिसर में जब ढोलक, मंजीरा और मटकी की धुन के साथ विशेष मंत्र गाए जाते हैं, तो पीड़ित व्यक्ति के शरीर में नाग आत्मा प्रवेश करती है. वह व्यक्ति नाग की तरह फन उठाकर झूमता है और उसी के माध्यम से नाग बताता है. “क्यों डसा.” किसी ने उसका घर तोड़ा, किसी ने ट्रैक्टर से कुचल दिया, किसी ने बिना कारण उसे मारा. यही होते हैं सांप के डसने के कारण. सुमित्रा बाई के शरीर में आकर सांप ने बताया कि उसे ट्रैक्टर से कुचल दिया गया था,इसके कारण उसने काटा. सांपों के पेशी में आने का कार्यक्रम सांप के काटे लोगों की संख्या के हिसाब से चलता है. ज्यादा लोगों के आने पर सांपों की पेशी रात तक चलती है. इस बार दो पड़वा होने के चलते कई लोग बुधवार को भी मंदिर पहुंचेंगे.

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तीन पीढ़ियों से जारी है पेशी की परंपरा

गांव के मन्नू गिरी महाराज बताते हैं कि उनके परिवार की तीन पीढ़ियां यह परंपरा निभा रही हैं. दीपावली के दूसरे दिन प्रदेशभर से लोग यहां आते हैं. सांप की आत्मा से प्रश्न पूछे जाते हैं, और फिर बाबा मंत्रोच्चार के साथ पीड़ित को मुक्त करते हैं. यह भी परंपरा है कि नागदेवता से वचन लिया जाता है कि वे दोबारा उस व्यक्ति को नहीं काटेंगे. यदि किसी को सर्प काट ले, तो तुरंत कटे हुए स्थान पर एक बंध लगाना चाहिए. पीड़ित को पानी नहीं पिलाना चाहिए और सीधे बाबा के पास लाना चाहिए. बाबा यहाँ मंत्रों का उच्चारण करके उपचार करते हैं. वे लगाए गए बंद को हटाते हैं, जिससे सर्प का जहर उतर जाता है और व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है. यहाँ उपयोग किए जाने वाले मंत्र बाबा की प्रेरणा से प्राप्त हुए हैं और उन्हें 'भरनी' कहा जाता है, जो रागी में गाए जाते हैं.

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मंगलदास महाराज की दी हुई साधना

गांव के वरिष्ठ ग्रामीण श्याम सिंह बताते हैं कि इस अनुष्ठान की शुरुआत चिन्नोटा से आए संत मंगलदास महाराज ने की थी. उन्होंने ही ग्रामीणों को ‘गुरु मंत्र' दिया और नागों की पेशी की यह साधना प्रारंभ की. आज भी मंदिर में उनकी समाधि स्थित है. माना जाता है कि उन्हीं की कृपा से नागों की आत्माएं यहां आकर संवाद करती हैं.

विश्वास या अंधविश्वास... आस्था का अद्भुत संगम

आधुनिक दौर में जहां लोग चांद और मंगल की यात्रा कर रहे हैं, वहीं यह गांव आज भी परंपरा और आस्था के बीच खड़ा है. यहां कोई विज्ञान नहीं, सिर्फ विश्वास काम करता है. ग्रामीणों के अनुसार, जो भी सांप के काटने से पीड़ित यहां आता है, बाबा के आशीर्वाद और भरनी के मंत्र से स्वस्थ होकर लौटता है. ग्रामीण देवेंद्र त्यागी ने बताया की कांड़ी, भरनी और विशेष मंत्र के साथ दोबारा पीडि़त को न काटे इसका संकल्प लिया जाता है. 

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आस्था का संगम स्थल

गांव लसूडिया परिहार सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था का प्रतीक बन चुका है. यहां न कोई डॉक्टर है, न अस्पताल, फिर भी हर दीपावली के दूसरे दिन यहां जीवन लौट आता है. कांडी की धुन, हनुमानजी की मडिया और हजारों श्रद्धालुओं की आस्था मिलकर इस धरती को एक दिव्य न्यायालय बना देती है. जहां खुद सर्प आत्मा आकर कहती है..मैंने क्यों डसा था.

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