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Gwalior में छह विधानसभा सीटों में से पांच पर दलबदलू प्रत्याशी, डबरा में मामला सबसे रोचक

ग्वालियर जिले की सभी छह सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है, लेकिन यह चुनाव कुछ मायनों में खास है. एक तो सिंधिया परिवार इस बार बीजेपी में है और कांग्रेस की सियासत में उनका कोई दखल नहीं है. इसलिए उनकी शक्ति की परीक्षा होनी है. वहीं रोचक तथ्य ये भी है कि छह में से पांच सीटों पर दलबदलुओं का दबदबा है.

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Gwalior में छह विधानसभा सीटों में से पांच पर दलबदलू प्रत्याशी, डबरा में मामला सबसे रोचक
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2020 में कमलनाथ सरकार गिराकर बीजेपी का दामन थाम लिया था.

Madhya Pradesh Assembly Election 2023: मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) का प्रचार थम गया है. कल 17 नवंबर को प्रदेश में मतदान (Voting) होना है. ग्वालियर जिले की सभी छह सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है, लेकिन यह चुनाव कुछ मायनों में खास है. एक तो सिंधिया परिवार (Scindia Family) इस बार बीजेपी में है और कांग्रेस की सियासत में उनका कोई दखल नहीं है. इसलिए उनकी शक्ति की परीक्षा होनी है. वहीं रोचक तथ्य ये भी है कि छह में से पांच सीटों पर दलबदलुओं (Defection candidates) का दबदबा है. 

जय विलास पैलेस से चलती आ रही है सियासत

बीजेपी हो या कांग्रेस, ग्वालियर-चंबल अंचल में दोनों ही दलों की सियासत सत्तर के दशक से ही ग्वालियर के महल 'जय विलास पैलेस' (Jaivilas Palace Gwalior) से चलती आ रही है. आजादी के बाद ग्वालियर रियासत की तत्कालीन महारानी राजमाता विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस में शामिल हो गईं थी, लेकिन 1967 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र और विजयाराजे सिंधिया के बीच मतभेद हो गए. यह दूरियां इतनी बढ़ीं कि उन्होंने अपने समर्थकों के साथ पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस की सरकार गिरा दी. इसके बाद विजयाराजे जनसंघ में शामिल हो गईं. 1971 में उनके बेटे माधव राव सिंधिया लंदन से पढ़कर आए तो उन्हें गुना सीट से जनसंघ प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ाया गया. माधवराव ने इस चुनाव को जीतकर सबसे कम उम्र के सांसद के रूप में दिल्ली पहुंचे, लेकिन थोड़े ही दिनों में उनका जनसंघ से मोहभंग हो गया और अपनी मां से भी दूरी हो गई.

1977 में माधवराव जनसंघ से अलग हो गए और कांग्रेस के समर्थन से निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते भी. इसके बाद वे जीवन पर्यंत कांग्रेस में रहे. वे केंद्रीय मंत्री और संगठन के कई पदों पर रहने के साथ ही गांधी परिवार के नजदीकी भी थे. 2001 में माधवराव के निधन के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने विरासत संभाली और कांग्रेस से सांसद और मंत्री रहे. 2020 तक ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों का संचालन जयविलास पैलेस से ही होता था, क्योंकि पहले राजमाता और फिर उनकी दोनो बेटियां वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे का बीजेपी में रसूख रहा. लेकिन 2019 में गुना लोकसभा चुनाव हारने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2020 में कमलनाथ सरकार गिराकर बीजेपी का दामन थाम लिया. 

पहली बार सिंधिया मुक्त कांग्रेस चुनावी मैदान में

स्वतंत्र भारत में पहला मौका है जब कांग्रेस में सिंधिया परिवार का कोई दखल नहीं है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के चुनावी अभियान की कमान संभाल रखी है. इस बार बीजेपी पर भी परिवार की तरफ से उनका ही एकछत्र राज है क्योंकि इस बार उनकी बुआ भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहीं हैं. कांग्रेस बगैर सिंधिया के चुनाव मैदान में है. लिहाजा वह भी नई रणनीति से चुनाव लड़ रही है. सिंधिया काल में उपेक्षित रहे कांग्रेसियों ने पार्टी के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है. 

बीजेपी के छह में से 4 टिकट सिंधिया के खाते में

2020 में सिंधिया के नेतृत्व में मध्य प्रदेश का अब तक का सबसे बड़ा दलबदल हुआ. इसमें सिंधिया के साथ उनके डेढ़ दर्जन से ज्यादा समर्थक विधायक और हजारों कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी बीजेपी में एंट्री ली. जिसका असर बीजेपी के टिकट वितरण पर भी पड़ा. ग्वालियर की छह में से चार सीट पर सिंधिया समर्थकों को टिकट मिला है. बाकी दो सीटों में से एक में ग्वालियर पूर्व से चुनाव लड़ रही माया सिंह ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी लगती हैं. वह उनके दिवंगत पिता माधवराव की मामी हैं. ग्वालियर में सिर्फ दो टिकट संगठन के खाते में गए हैं. इनमें नारायण सिंह कुशवाह को ग्वालियर दक्षिण और भारत सिंह कुशवाह को ग्वालियर पूर्व का टिकट शामिल है.

हर जगह दलबदलू उम्मीदवार

जिले की सियासत का रोचक तथ्य यह भी है कि इस बार छह में से पांच सीट पर दलबदलू नेताओं के बीच मुकाबला है. जिले की ग्वालियर सीट से बीजेपी प्रत्याशी और ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर 2018 में कांग्रेस से जीते थे. ग्वालियर पूर्व से कांग्रेस प्रत्याशी डॉ सतीश सिंह सिकरवार 2018 में बीजेपी प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे, लेकिन वह हार गए थे. 2020 में वे कांग्रेस में आ गए और उप चुनाव लड़कर जीत गए. अब वे फिर चुनावी मैदान में हैं. ग्वालियर ग्रामीण सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी साहब सिंह गुर्जर 2018 में बसपा से चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए थे. इस बार वह कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे हैं.

डबरा के मामला सबसे रोचक

वहीं डबरा सीट का मामला तो और भी रोचक है. यहां 2018 वाले प्रत्याशी ही दल बदल कर मैदान में हैं. 2018 में कांग्रेस प्रत्याशी रहीं इमरती देवी अब बीजेपी से चुनाव लड़ रहीं हैं, जबकि बीजेपी से प्रत्याशी रहे सुरेश राजे अभी कांग्रेस से प्रत्याशी हैं. एक रोचक बात और भी है, दोनों ही प्रत्याशी महज पांच साल के भीतर इस क्षेत्र से विधायक चुने गए हैं. 2018 में इमरती ने सुरेश राजे को हराया था, लेकिन 2020 में उप चुनाव हुए जिसमें राजे ने इमरती को हराकर जीत हासिल की. जिले की भितरवार सीट से बीजेपी ने सिंधिया समर्थक मोहन सिंह राठौड़ को टिकट दिया है. 2018 के चुनाव में वे ग्वालियर जिला ग्रामीण के अध्यक्ष थे अब बीजेपी प्रत्याशी हैं. केवल ग्वालियर दक्षिण ऐसी सीट है जहां दलबदलू नहीं हैं. कांग्रेस प्रत्याशी और विधायक प्रवीण पाठक और बीजेपी प्रत्याशी व पूर्व मंत्री नारायण सिंह कुशवाह दोनों ही 2018 में भी आमने-सामने थे और इस बार भी हैं.

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