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मकर संक्रांति 2024 : जनरल विलियम स्लीमेन हो गए थे तिलवारा घाट पर लगने वाले मेले के दीवाने, जानिए उनकी कहानी

Makar Sankranti 2024: विलियम हेनरी स्लीमैन ने अपने शब्दों में लिखा है संगमरमर की चट्टानों के बीच जब नौका विहार के लिये जब नर्मदा नदी पर नौकायन का आनंद लेते हैं तो यहां खो जाते हैं. संगमरमरी चट्टानों का परिकल्पनापूर्ण दृश्य प्रकृति का नायाब नमूना है. यह भी कह सकते हैं कि पानी की धीमी और मौन कारीगरी ने हमें ईश्वर की तरह ये उपहार भेंट किये हैं.

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मकर संक्रांति 2024 : जनरल विलियम स्लीमेन हो गए थे तिलवारा घाट पर लगने वाले मेले के दीवाने, जानिए उनकी कहानी

Makar Sankranti Fair : जबलपुर और उसके आस-पास के क्षेत्र में विलियम हेनरी स्लीमैन (William Henry Sleeman) का नाम आज भी लोगों की जुबान में रहता है. जबलपुर का लम्हेटा विश्व के सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है. विलियम हेनरी स्लीमैन ने इस क्षेत्र से वर्ष 1928 में डायनासोर के जीवाश्म (Dinosaur Fossils) की खोज की थी. एक ब्रिटिश सैनिक और प्रशासक मेजर जनरल सर विलियम हेनरी स्लीमैन (Major General Sir William Henry Sleeman) ने कई पुस्तकें भी लिखी हैं. इन पुस्तकों में उनके भारत के अनुभव समाहित हैं. मेजर जनरल विलियम स्लीमेन के कई साहित्यिक कार्यों का अनुवाद जबलपुर के राजेन्द्र चंद्रकांत राय ने किया है. मकर संक्रांति के मौके पर हम आपको विलियम हेनरी स्लीमैन द्वारा नर्मदा नदी (Narmada River) के तट पर लगने वाले मेले के अनुभव के बारे में बता रहे हैं. इतिहास के जानकार बताते हैं कि यहां 1100 साल से संक्रांति के मेले का इतिहास मिलता है.

नर्मदा नदी की पतली धारा के नजदीक लगाया गया था स्लीमैन का तंबू

विलियम हेनरी स्लीमैन ने अपने अनुभव साझा करते हुए लिखा है कि हिमालय की लंबी यात्रा पर जाने से पहले हम लोगों ने तय किया कि पहले पवित्र नर्मदा नदी के तट पर जाकर, तिलवारा घाट, जल प्रपात धुआंधार और वहाँ की संगमरमरी चट्टानों के बीच संक्रांति पर लगने वाले मेले का आनंद लिया जाये. इन्हीं दिनों हिन्दू लोग भारत की पवित्र नदियों के तटों पर मेले का आयोजन करते हैं.

मेलों में परंपराओं द्वारा निर्मित धार्मिक रीति-रिवाजों के साथ-साथ लोक गीतों का भी भरपूर प्रयोग होता है. असल में ये मेले जितने पवित्र माने जाते हैं, उतनी ही उत्सव-प्रियता भी इनमें शामिल है. लोग यहां आकर जितना आनंद उठा सकते हैं, उठाते हैं और नदी में स्नान करके पुण्य भी कमाते हैं.

सभी जगहों पर स्त्री-पुरूषों और बच्चों की भारी भीड़ लगती है और रंग बिरंगे तंबू लगाकर लोग उनमें पांच दिनों तक रहते हैं. ये तम्बू छोटे और बड़े आकार के होते है. कुछ तम्बू साधारण दिखाई देते हैं लेकिन बहुत से तंबू उम्दा किस्म के और खासे महंगे प्रतीत होते हैं. हमारा तम्बू नर्मदा नदी के तट पर उसकी एक पतली धारा के करीब ही लगाया गया था. रात होते-होते वहाँ लगे हुये सैंकड़ों तम्बुओं में सजावट आदि का काम पूरा कर लिया गया. तरह-तरह के लैम्प और दिये जगमगाने लगे थे और इतना प्रकाश वहां फैल गया था कि रात में भी दिन जैसा भ्रम होता था. लोग अपने तंबुओं के पास रात का खाना बना रहे थे. लोकगीत गाये जा रहे थे.

विलियम हेनरी स्लीमेन एक अंग्रेज अफसर थे, लेकिन भारत के प्रति आदर उनमें गले तक भरा हुआ था. उन्होंने जबलपुर से शिमला तक कि यात्रा घोड़े से की थी और रास्ते के गांवों-शहरों, राजाओं-नवाबों और भारत की सांस्कृतिक परंपराओं पर जी खोलकर लिखा है.

राजेंद्र चंद्रकांत राय

स्लीमेन के संस्मरणों के अनुवादक

हर दिन के स्नान और डुबकी का वर्णन कुछ ऐसे किया

विलियम हेनरी स्लीमैन ने लिखा है कि पहले दिन लोग वहां पर स्नान करते हैं, जहां धुंआधार जलप्रपात की धाराएं गिरती हैं और संगमरमर की चट्टानें निकट ही दिखाई देती हैं. दूसरे दिन वे इससे जरा ऊपर की ओर, तीसरे दिन दो मील और ऊपर जाकर स्नान करते हैं. इस तरह हर दिन वे ऊपर की ओर बढ़ते जाते हैं. धार्मिक-स्नान का तरीका यह है कि हिंदू लोग अपनी नाक बंद करके पूरे शरीर को पानी में डुबा लेते हैं. इसे डुबकी लगाना कहा जाता है.

संगमरमर की चट्टानों के बीच जब नौका विहार के लिये जब नर्मदा नदी पर नौकायन का आनंद लेते हैं तो यहां खो जाते हैं. संगमरमरी चट्टानों का परिकल्पनापूर्ण दृश्य प्रकृति का नायाब नमूना है. यह भी कह सकते हैं कि पानी की धीमी और मौन कारीगरी ने हमें ईश्वर की तरह ये उपहार भेंट किये हैं.

पत्थरों में बदल गये अर्जुन के तीर

विलियम हेनरी स्लीमैन ने अपने शब्दों में लिखा है कि यहां पर ऐसी रचनाएं मौजूद हैं, जो देखने पर बैलों को बांधने वाली डोर जैसी लगती हैं. लोगों का विश्वास है कि असल में ये महाभारत कालीन पांडवों में से एक अर्जुन के घनुष से निकले हुये तीर हैं. अर्जुन ने अपने प्यासे सैनिकों को पानी पिलाने के लिये भूमि पर तीरों से छेद करके जलधाराएं निकाली थीं. अब ये तीर पत्थरों में बदल गये हैं.

भेड़ाघाट की शंकु आकार वाली पहाड़ी पर गौरीशंकर मंदिर बना हुआ है. ऐसा लगता है जैसे मंदिर नदी की ओर देख रहा हो. इस मंदिर में बैल पर बैठे हुये शिव की मूर्ति है. शिव को संहार का देवता माना जाता है. उनकी पत्नी पार्वती उनके पीछे विराजमान हैं. दोनों के हाथों में साँप हैं. शिव की कमर पर वह इस तरह लिपटा हुआ है, जैसे कि कमरबंध हो. बहुत से भूत-पिशाच मानव मुद्रा में बैल के पेट के नीचे दण्डवत पड़े हुये हैं. सभी आकृतियां कठोर बेसाल्ट पत्थरों को काटकर बनाई गई हैं. यहाँ के लोगों का मानना है कि ‘गौरीशंकर' मंदिर शिव-पार्वती के वास्तविक स्वरूप हैं जो पक्खान यानी पाषाण बन गये हैं.

स्लीमैन आगे लिखते हैं कि मेले में जो स्नान करने आते हैं वे लोग अपने हाथों में पीले फूलों की माला लिये रहते हैं. स्नान के बाद वे गौरीशंकर की पूजा करते हुये इस माला को उनके गले में पहनाते हैं और चावल के दाने उन पर तथा वहां मौजूद सभी आकृतियों पर छिड़कते हैं. इसके बाद वे मूर्ति के चारों ओर घूम कर परिक्रमा करते हैं. मंदिर के अंदर जो अन्य आकृतियां हैं वे ब्रह्मा, विष्णु और शिव की हैं. उनके साथ उनकी पत्नियां भी हैं. मंदिर के चारों ओर चौंसठ योगिनियों की मूर्तियां भी हैं जो अपने-अपने वाहनों के साथ हैं. उनके ये वाहन विभिन्न पशु-पक्षी है, जैसे शेर, हाथी, बैल, हंस, बाज आदि.

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